Shri Krishna Janmabhoomi Shahi Eidgah Case: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि कटरा केशव देव की भूमि से शाही ईदगाह मस्जिद के अवैध कब्जे को हटाने की मांग को लेकर दाखिल सिविल वादों की पोषणीयता पर अपना फैसला सुनाया है। गुरुवार को न्यायमूर्ति मंयक कुमार जैन की एकल पीठ ने शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट की ओर से दायर ऑर्डर 7, R-11 के आवेदन को खारिज कर दिया। इस आवेदन में मस्जिद ट्रस्ट ने सिविल वादों की सुनवाई पर आपत्ति जताई थी।
इसके साथ ही, हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष की सिविल वाद की पोषणीयता वाली याचिकाओं को मंजूर कर लिया है। इस फैसले के तहत, अब हिंदू पक्ष को उनके दावे की वैधता पर न्यायालय में आगे की सुनवाई का अवसर मिलेगा। इस महत्वपूर्ण फैसले के बाद, इस मामले की कानूनी प्रक्रियाओं में तेजी आ सकती है और दोनों पक्षों को अदालत में अपने-अपने दावे प्रस्तुत करने का मौका मिलेगा।
मुस्लिम पक्षकारों की याचिका खारिज
- मुस्लिम पक्षकारों ने कोर्ट में दलील दी थी कि इस जमीन पर दोनों पक्षों के बीच 1968 में समझौता हुआ है. 60 साल बाद समझौते को गलत बताना ठीक नहीं. लिहाजा, मुकदमा चलने योग्य ही नहीं है।
- उपासना स्थल कानून यानी प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत भी मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है।
- 15 अगस्त 1947 के दिन जिस धार्मिक स्थल की पहचान और प्रकृति जैसी है वैसी ही बनी रहेगी। यानी उसकी प्रकृति नहीं बदली जा सकती।
- लिमिटेशन एक्ट और वक्फ अधिनियम के तहत भी इस मामले को देखा जाए।।
- इस विवाद की सुनवाई वक्फ ट्रिब्यूनल में हो. यह सिविल कोर्ट में सुना जाने वाला मामला है ही नहीं।
हिंदू पक्ष का तर्क
हिंदू पक्ष का तर्क था कि इस मामले पर पूजा स्थल अधिनियम या वक्फ बोर्ड कानून लागू नहीं होता है। उनका कहना है कि शाही ईदगाह परिसर, श्रीकृष्ण जन्मभूमि की जमीन पर स्थित है। हिंदू पक्ष ने दावा किया कि समझौते के तहत मंदिर की जमीन शाही ईदगाह कमेटी को दी गई, जो नियमों के खिलाफ है।
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इदगाह पक्ष का तर्क
हिंदू पक्ष की ओर से दाखिल 18 याचिकाओं को शाही ईदगाह कमेटी के वकीलों ने हाईकोर्ट में ऑर्डर 7, रूल 11 के तहत चुनौती दी। शाही ईदगाह कमेटी के वकीलों ने बहस के दौरान कहा कि मथुरा कोर्ट में दाखिल याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि यह मामला पूजा स्थल अधिनियम 1991 और वक्फ एक्ट के साथ लिमिटेशन एक्ट से बाधित है। इसलिए इस मामले में कोई भी याचिका दाखिल नहीं की जा सकती और न ही इसे सुना जा सकता है।