Anti Rape Bill: कोलकाता के सरकारी आरजी कर अस्पताल एवं मेडिकल कॉलेज में हाल ही में हुई महिला चिकित्सक के साथ दुष्कर्म और हत्या की घटना के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान, बंगाल सरकार ने दुष्कर्म विरोधी ‘अपराजिता’ बिल पेश किया, जिसे विधानसभा ने पास कर दिया है। इस बिल का उद्देश्य दुष्कर्म के दोषियों को त्वरित और सख्त सजा दिलाना है और पीड़ितों को न्याय प्रदान करना है।
सख्त सजा का प्रस्ताव
पश्चिम बंगाल के कानून मंत्री मलय घटक ने विधानसभा में ‘अपराजिता वूमेन एंड चाइल्ड बिल, 2024’ पेश किया। इस विधेयक के तहत, दुष्कर्म और सामूहिक बलात्कार के मामलों में दोषियों के लिए मृत्युदंड और आजीवन कारावास की सजा का प्रस्ताव किया गया है। विधेयक में यह भी कहा गया है कि दुष्कर्म पीड़िता की मौत या स्थायी रूप से अचेत अवस्था में चले जाने की सूरत में दोषियों को मृत्युदंड मिलेगा।
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इस विधेयक और बीएनएस में अन्तर
- गैंगरेप के दोषियों को कम से कम 20 साल की सजा होगी, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।
- अगर पीड़िता की उम्र 18 साल से कम है, तो दोषियों को कम से कम उम्रकैद की सजा मिलेगी, और फांसी की सजा का भी प्रावधान है।
- 16 साल से कम उम्र की लड़की के साथ दुष्कर्म पर दोषियों को 20 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा मिलेगी।
- 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ दुष्कर्म पर दोषियों को 20 साल की जेल और मौत की सजा भी हो सकती है।
- धारा 71 के अनुसार, कोई व्यक्ति बार-बार दुष्कर्म का दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम उम्रकैद की सजा होगी।
- दोषी व्यक्ति को पूरी जिंदगी जेल में ही गुजारने होगी और उसे मौत की सजा भी सुनाई जा सकती है।
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पुलिस जांच और ट्रायल की समयसीमा में बदलाव
विधेयक के अनुसार, पुलिस को दुष्कर्म की पहली सूचना मिलने के 21 दिन के भीतर जांच पूरी करनी होगी। यदि जांच 21 दिन में पूरी नहीं होती है, तो कोर्ट 15 दिन का अतिरिक्त समय दे सकती है, बशर्ते पुलिस देरी का कारण लिखित में प्रस्तुत करे। वर्तमान में, पुलिस को जांच पूरी करने के लिए दो महीने का समय मिलता है, जिसमें 21 दिन का अतिरिक्त समय भी होता है।
अगला कदम: विधानसभा से पास होना बाकी
पश्चिम बंगाल सरकार का ‘अपराजिता’ बिल दुष्कर्म और यौन अपराधों के खिलाफ एक सख्त कानूनी पहल का परिचायक है। हालांकि, इस विधेयक की सफलता इसके कार्यान्वयन पर निर्भर करेगी। अब इस विधेयक को विधानसभा से पास करने के बाद राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। राज्यपाल की मंजूरी के बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही यह विधेयक कानून का रूप ले सकेगा।