Women Naga Sadhu Mahakumbh 2025:महाकुंभ 2025 में महिला नागा साधुओं (Mahila Naga Sadhus) का होगा आभास, लेकिन क्या आप जानते हैं कि महिलाएं नागा साधु कैसे बनती हैं? इस प्रक्रिया के दौरान महिलाओं को बेहद कठिन और भयानक अनुभवों से गुजरना पड़ता है, जिसके बाद वे इस जीवन का हिस्सा बनती हैं। तो आइए जानते हैं इस प्रक्रिया से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्यों के बारे में।
महिला नागा साधु बनने की कठिन प्रक्रिया
नागा साधु बनना कोई आसान कार्य नहीं है, और यह प्रक्रिया पुरुषों से कहीं ज्यादा कठिन होती है। महिला नागा साधु बनने के लिए एक महिला को कम से कम 6 से 12 साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। इस अवधि के दौरान वे अपने सभी सांसारिक रिश्तों को त्याग कर भगवान के प्रति पूरी तरह से समर्पित हो जाती हैं। महिला नागा साधु बनने के लिए महिला को मानसिक और शारीरिक रूप से पूरी तरह से तैयार करना पड़ता है, ताकि वह संन्यास की कठिन जीवनशैली अपना सके।
नागा एक पदवी होती है और यह विशेष रूप से वैष्णव, शैव और उदासीन अखाड़ों से जुड़ी होती है। एक बार महिला को यह अनुमति मिल जाने के बाद, उसे संन्यास के मार्ग पर चलने की इजाजत मिलती है।
महिला नागा साधुओं के कपड़े और रूप
महिला नागा साधुओं को आमतौर पर गेरुआ वस्त्र पहनने होते हैं, जो बिना सिले होते हैं। ये वस्त्र साध्वी के आध्यात्मिक और सांसारिक जीवन से मुक्त होने का प्रतीक होते हैं। उनका यह कपड़ा एक लंबा और बिना सिला होता है, जो उनके जीवन के एक नए अध्याय की शुरुआत को दर्शाता है।
इसके अलावा, महिला नागा साधुओं के माथे पर तिलक होता है और उनके शरीर पर भस्म भी लगाई जाती है, जो उनके आध्यात्मिक बल और तपस्या को दर्शाता है। महिलाएं नग्न नहीं रहतीं, जैसा कि पुरुष नागा साधु करते हैं, बल्कि गेरुआ वस्त्र पहनती हैं।
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महिला नागा साधु बनने के बाद की प्रक्रिया
महिला नागा साधु बनने के बाद महिलाएं अपने सारे सांसारिक रिश्तों को छोड़ देती हैं और अपना सिर मुंडवाती हैं। हिंदू धर्म में आमतौर पर पिंडदान मरने के बाद किया जाता है, लेकिन महिला नागा साधु अपने जीते जी अपना पिंडदान करवाती हैं। यह एक प्रतीकात्मक क्रिया है, जिसमें वह अपनी पुरानी जिंदगी को समाप्त कर एक नई शुरुआत करती हैं।
महिला नागा साधु कहां रहती हैं?
महिला नागा साधु पुरुषों से अधिक मुखर नहीं होतीं और अधिकांश समय पहाड़ों, जंगलों और गुफाओं में ध्यान लगाते हुए बिताती हैं। वे एकांत में भगवान के साथ अपना जीवन व्यतीत करती हैं, जहां वे तपस्या और साधना करती हैं। हालांकि, महाकुंभ जैसे विशेष आयोजनों के दौरान उन्हें संगम में डुबकी लगाते हुए देखा जा सकता है, जहां वे अपनी आध्यात्मिक शक्ति का प्रदर्शन करती हैं।