Mahakumbh 2025: संगम नगरी प्रयागराज में हर साल होने वाला महाकुंभ (Mahakumbh) एक ऐतिहासिक और धार्मिक आयोजन होता है. ये देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। इस साल भी महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी से 26 फरवरी तक होने जा रहा है, जहां त्रिवेणी संगम (Triveni Sangam) में डुबकी लगाने के लिए देश के प्रसिद्ध अखाड़े शामिल होंगे। लेकिन इस बार एक नया अखाड़ा भी महाकुंभ में नजर आएगा। हम बात कर रहे हैं ‘किन्नर अखाड़ा’ की, जो इस बार महाकुंभ में शिरकत करेगा।
9 साल पुराना, लेकिन मान्यता से वंचित
बताते चले कि, किन्नर अखाड़े (Kinnar Akhar) का अस्तित्व 9 साल पहले हुआ था, लेकिन अब तक इसे एक अलग अखाड़े की मान्यता नहीं मिल पाई है। किन्नर अखाड़ा फिलहाल जूना अखाड़े का हिस्सा माना जाता है। हालांकि, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (ABAP) ने किन्नर अखाड़े को अलग अखाड़े के रूप में मान्यता देने के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। ABAP भारतीय संत समाज का सबसे बड़ा संगठन है, जो 13 प्रमुख अखाड़ों का प्रतिनिधित्व करता है और किन्नर अखाड़े की अलग पहचान को लेकर विरोध कर रहा है।
ABAP ने किन्नर अखाड़े (Kinnar Akhara) के प्रयाग अर्धकुंभ में प्रवेश को लेकर भी आपत्ति जताई थी, लेकिन फिर भी किन्नर अखाड़े ने 2019 के प्रयाग अर्धकुंभ में अपनी धूमधाम से एंट्री की थी। इसे ‘देवत्व यात्रा’ या ‘पेशवाई’ नाम दिया गया था, जो किन्नर अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की अगुवाई में आयोजित की गई थी। इस यात्रा में किन्नर समुदाय के प्रमुख संतों ने भी शिरकत की थी, जिनमें महामंडलेश्वर भवानी मां, पीठाधीश्वर प्रभारी उज्जैन की पवित्रा माई और डॉक्टर राजेश्वरी प्रमुख थीं।
किन्नर समुदाय का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
भारत और खासकर हिंदू धर्म में किन्नर समुदाय का हमेशा से महत्वपूर्ण स्थान रहा है। रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन हिंदू ग्रंथों में किन्नरों का उल्लेख मिलता है। रामायण के अनुसार, भगवान राम के जन्म के बाद किन्नरों को आशीर्वाद देने के लिए बुलाया गया था। जब भगवान राम वनवास पर गए, तो किन्नरों ने भी जंगल में 14 साल बिताए और भगवान राम के साथ अयोध्या वापस लौटे थे।
इसके अलावा, महाभारत में शिखंडी नामक पात्र का जिक्र मिलता है, जो एक किन्नर थी और जिन्होंने भीष्म पितामह की मृत्यु का कारण बनीं। इन दोनों उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संस्कृति में किन्नरों को धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से एक विशेष स्थान प्राप्त है।
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ब्रिटिश काल में किन्नर समुदाय के साथ भेदभाव
हालांकि, ब्रिटिश शासन के दौरान किन्नर समुदाय को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अंग्रेजों ने किन्नरों को न केवल हेय दृष्टि से देखा, बल्कि उन्हें समाज से बाहर करने की कोशिश की। ब्रिटिश सरकार ने 1864 में भारत में बुगेरी एक्ट लागू किया, जिसके तहत समलैंगिकता को अपराध मान लिया गया। इसका प्रभाव किन्नर समुदाय पर भी पड़ा और उन्हें समाज में एक नीच जाति के रूप में देखा जाने लगा। संविधान के अनुच्छेद 377 ने भी इस भेदभाव को बढ़ावा दिया, लेकिन 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को रद्द कर दिया, जिससे किन्नर समुदाय को कुछ हद तक न्याय मिला।
किन्नर अखाड़े का महत्व
आपको बता दे कि, किन्नर अखाड़े (Kinnar Akhara) का महाकुंभ (Mahakumbh) में शिरकत करना इस समुदाय की आधिकारिक पहचान को स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके माध्यम से किन्नर समुदाय को समाज में अपना सही स्थान मिलने की उम्मीद है। किन्नर अखाड़े का महाकुंभ में हिस्सा लेना न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उनके सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों को मान्यता देने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है।