Women in Independence Day: भारत देश को आजादी के 76 साल पूरे हो गए हैं और हम आजादी के वक्त जिन्होनें अपना खून पसीना बहा कर देश को आजाद कराया, उनको याद करके उन्हें सम्मान देते है। फिर चाहे पुरुष हो या महिली। अधिकतर लोग पुरुषों के बलिदान की बात करते है, लेकिन महिलाऔं का जिक्र भी नहीं होता। तो चलिए आज हम आपको उन महिलाओं का परिचय देतें है, जिन्होनें देश के लिए योगदान और बलिदान दिया।
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रानी लक्ष्मीबाई
- रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झांसी की रानी और भारत की स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम वनिता थीं।
- अंग्रेज़ों के विरुद्ध रणयज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देने वाले योद्धाओं में वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का नाम सर्वोपरी माना जाता है।
- 1857 में उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम का सूत्रपात किया था।
- दामोदर राव को अपनी पीठ के पीछे बाँधकर घोड़े पर सवार होकर, उसने अकेले ही अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी।
कस्तूरबा गांधी
- कस्तूरबा मोहनदास करमचंद गांधी (गांधी जी) की पत्नी थीं. देश की आजादी के लिए कस्तूरबा गांधी हमेशा महात्मा गांधी का साथ दिया और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
- महिला स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उन्होंने नागरिक अधिकारों के लिए अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई।
- जब गांधी जी अंग्रेजों के खिलाफ धरना देते, प्रदर्शन करते तो वह उनकी देखभाल करती थीं।
सरोजिनी नायडू
- सरोजिनी नायडू प्रमुख महिला स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थीं जिन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
- भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
- सरोजिनी नायडू पहली बार 1914 में महात्मा गांधी से मिलीं तब से वह देश की आजादी के लिए काम करने लगीं।
- स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा। सरोजिनी नायडू किसी भारतीय राज्य की राज्यपाल बनने वाली पहली महिला और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली दूसरी महिला थीं।
सावित्रीबाई फुले
- देश के लिए सराहनीय कार्य करने वाली महिलाओं में से एक हैं सावित्रीबाई फुले जिन्हें भारत की पहली महिला शिक्षिका कहा जाता है।
- सावित्रीबाई फुले ने देश में न सिर्फ लड़कियों की शिक्षा के लिए संषर्ष किया बल्कि कुरीतियों के खिलाफ भी आवाज उठाई।
- बाल विवाह, छुआ-छूत, सती प्रथा जैसी कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और जरुरतमंद महिलाओं की मदद की।
लक्ष्मी सहगल
- कैप्टन डॉ. लक्ष्मी सहगल महान स्वतंत्रता सेनानी और आजाद हिंद फौज की अधिकारी थीं।
- वह आजाद हिंद सरकार में महिला मामलों की मंत्री भी रहीं।
- उनकी पहली पुण्यतिथि पर कुछ यूं पेश हैं उन्हें श्रद्धांजलि ।
अम्मू स्वामीनाथन
- अम्मू ने 1917 में मद्रास में एनि बेसेंट सहित कई महिलाओं के साथ मिलकर एक वुमन इंडिया एसोसिएशन का निर्माण किया था। वह 1946 में मद्रास कंस्टीट्यएंसी की हिस्सा भी थीं।
- अम्मू 1952 में लोक सभा के लिए चुनी गईं थी जबकि 1954 में राज्यसभा की सांसद बनी थीं।
दक्क्षायानी वेल्याधन
- वेल्याधन 1945 में दक्क्षयानी कोचीन लेजिसलेटिव काउंसिल के लिए नामित की गईं।
- वह पहली और अकेली दलित महिला थीं जो 1946 में कंस्टीट्यूट एसेंबली के लिए चयन की गईं।
- संविधान के निर्माण के दौरान दक्क्षयानी ने दलितों से जुड़ी कई समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया था। जिसके बाद संविधान में दलितों के लिए विशेष स्थान दिया गया था।
हंसा जिवराज मेहता
- देश की आजादी के लिए योगदान देने वाली हंसा का जन्म 1897 में बड़ौदा के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ।
- हंसा ने हैदराबाद में आयोजित ऑल इंडिया वुमेन कांफ्रेस के अपने प्रेसिडेंशियल एड्रेस में महिला के अधिकारों की बात की।
- महिला अधिकारों की बात उन्होंने संविधान के निर्माण में कही जिसे प्रमुखता से सुना गया।
कमला चौधरी
- कमला ने क्रांति घर से ही शुरू की थी और 1930 में ही वो गांधी जी से जुड़ी और उनके सविनय अवज्ञा आंदोलन से जुड़ी।
- वह एक फिक्शन लेखिका थी और महिलाओं के अधिकारों पर खुल कर अपनी बात रखती थीं।
- ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के 54 वें सेशन में वो उपाध्यक्ष बनीं और 70 के आखिरी दशकों में लोकसभा तक भी पहुंचीं।
पूर्णिमा बनर्जी
- पूर्णिमा बनर्जी 1930-40 में देश के आजादी से जुड़े कई आंदोलन का हिस्सा बनीं।
- अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन और सत्याग्रह आंदोलन के कारण जेल भी गईं।
- वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इलाहाबाद में सचिव बनीं और महिलाओं से जुड़े कई मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद करती रहीं।