Lok Sabha Speaker Election 2024: 18वीं लोकसभा के स्पीकर पद को लेकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले NDA और कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन INDIA के बीच कड़ी टक्कर हो रही है। 48 साल बाद यह पहली बार है जब स्पीकर पद के लिए आम सहमति नहीं बन पाने के कारण चुनाव हो रहा है। आज भारतीय संसद में लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हो रहे हैं, जो राजनीतिक गतिविधियों का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
इस चुनाव के परिणाम भारत की संसदीय राजनीति में आने वाले वर्षों के लिए दिशा तय करेंगे। लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तरफ से प्रत्याशी का चयन किया गया है, वहीं विपक्षी दलों ने संयुक्त रूप से एक उम्मीदवार खड़ा किया है। इस चुनाव में मुख्य उम्मीदवारों के नाम अभी स्पष्ट नहीं किए गए हैं, लेकिन चर्चा में कई वरिष्ठ नेताओं के नाम हैं।
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प्रमुख उम्मीदवार
इस चुनाव में BJP ने ओम बिरला (Om Birla) और कांग्रेस ने के. सुरेश (K. Suresh) को उम्मीदवार बनाया है। ओम बिरला राजस्थान के कोटा से सांसद हैं, जबकि के. सुरेश केरल के मवेलिकारा से सांसद हैं। वोटिंग आज सुबह 11 बजे होगी। हालांकि विपक्ष के पास पर्याप्त संख्या नहीं है, फिर भी के. सुरेश को उम्मीदवार बनाकर उन्होंने मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। दूसरी ओर, BJP गठबंधन की ताकत बढ़ाने के लिए अपनी रणनीति पर काम कर रही है, ताकि NDA का समर्थन 300 के आंकड़े को पार कर सके।
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वर्तमान लोकसभा की स्थिति
लोकसभा में BJP के 240 सांसद हैं और NDA के कुल 293 सांसद हैं। इनमें NDA सहयोगियों के 53 वोट शामिल हैं, जिसमें TDP के 16 और JDU के 12 सांसद हैं। दूसरी तरफ, INDIA के पास 235 सांसद हैं, जिसमें कांग्रेस के 98 सांसद शामिल हैं। अन्य दलों के पास 14 सांसद हैं और एक सीट खाली है।
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क्या है BJP की रणनीति?
BJP की रणनीति स्पीकर चुनाव में NDA का समर्थन 300 तक पहुँचाना है। इस संख्या से विपक्ष पर मनोवैज्ञानिक बढ़त मिल सकेगी। NDTV के सूत्रों के अनुसार, आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की पार्टी YSRCP लोकसभा स्पीकर के चुनाव में ओम बिरला का समर्थन करेगी। YSRCP के 4 सांसदों का समर्थन मिलने से NDA की संख्या 297 हो जाएगी।
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कांग्रेस को नुकसान
लोकसभा सत्र के दूसरे दिन कुछ सांसदों ने शपथ नहीं ली। इनमें खडूर साहिब से अमृतपाल सिंह, बारामूला से रशीद इंजीनियर, तिरुवनंतपुरम से शशि थरूर और तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) के दीपक अधिकारी, शत्रुघ्न सिन्हा और हाजी नूरुल इस्लाम शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से अफजाल अंसारी भी शपथ नहीं ले सके। यदि इन सांसदों ने 26 जून तक शपथ नहीं ली, तो वे स्पीकर चुनाव में वोट नहीं कर पाएंगे, जिससे कांग्रेस (Congress) को नुकसान हो सकता है।
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स्पीकर के चुनाव का इतिहास
देश के इतिहास में यह तीसरी बार है जब स्पीकर के पद के लिए चुनाव हो रहा है। पहली बार 1952 में जीवी मावलंकर और दूसरी बार 1976 में बीआर भगत का चुनाव हुआ था। इस बार ओम बिरला के पक्ष में 13 प्रस्ताव रखे जाएंगे, जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) पहला प्रस्ताव देंगे।
विपक्ष के उम्मीदवार के सुरेश
विपक्षी गठबंधन ने के. सुरेश (K. Suresh) को उम्मीदवार बनाया है, जिनके पक्ष में तीन प्रस्ताव रखे जाएंगे। पहला प्रस्ताव अरविंद सावंत और एनके प्रेमचंद्रन द्वारा, दूसरा आनंद भदौरिया और तारिक अनवर द्वारा और तीसरा सुप्रिया सुले और कनीमोई करुणानिधि द्वारा दिया जाएगा।
ओम बिरला के लिए संभावनाएँ
यदि ओम बिरला (Om Birla) इस बार भी जीतते हैं, तो वह लगातार दूसरी बार स्पीकर बनने वाले पहले BJP सांसद होंगे। इससे पहले कांग्रेस के बलराम जाखड़ ने यह रिकॉर्ड कायम किया था।
लोकसभा स्पीकर की भूमिका
लोकसभा स्पीकर संसद के निचले सदन के प्रमुख होते हैं। उनकी जिम्मेदारियों में सदन की कार्यवाही को संचालित करना, सदस्यों के बीच बहस और चर्चा को सुचारू रखना और संसदीय नियमों का पालन सुनिश्चित करना शामिल है। स्पीकर की भूमिका निष्पक्षता और निष्पक्ष निर्णयों के प्रतीक के रूप में होती है।
इस महत्वपूर्ण चुनाव के परिणाम न केवल संसद की कार्यवाही पर, बल्कि देश की राजनीतिक दिशा पर भी गहरा प्रभाव डालेंगे। सभी की नजरें इस चुनाव पर टिकी हैं, और यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन इस प्रतिष्ठित पद पर काबिज होता है और कैसे वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता है।
चुनाव प्रक्रिया
लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव लोकसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है। यह चुनाव सदन की बैठक के पहले दिन ही संपन्न होता है। चुनाव की प्रक्रिया में उम्मीदवारों के नामांकन के बाद, यदि एक से अधिक उम्मीदवार होते हैं, तो सदस्यों के बीच मतदान कराया जाता है। मतदान के परिणामस्वरूप जो उम्मीदवार सबसे अधिक मत प्राप्त करता है, उसे लोकसभा अध्यक्ष के रूप में चुना जाता है।
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राजनीतिक महत्व
इस चुनाव का राजनीतिक महत्व भी बहुत अधिक है। लोकसभा अध्यक्ष के चयन से सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दलों के बीच संबंधों की दिशा तय होती है। अध्यक्ष का चयन अक्सर सत्ता पक्ष की रणनीतिक सूझबूझ और विपक्ष की राजनीतिक ताकत को दर्शाता है। यदि सत्ता पक्ष का उम्मीदवार चुनाव जीतता है, तो यह प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के लिए एक मजबूत समर्थन का संकेत होगा। वहीं, यदि विपक्ष का उम्मीदवार चुना जाता है, तो यह विपक्षी दलों की एकजुटता और शक्ति को दर्शाएगा।
लोकसभा अध्यक्ष पद का चुनाव भारतीय राजनीति का महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इसके परिणाम न केवल संसद की कार्यवाही पर, बल्कि देश की राजनीतिक दिशा पर भी गहरा प्रभाव डालेंगे। सभी की नजरें इस चुनाव पर टिकी हैं, और यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन इस प्रतिष्ठित पद पर काबिज होता है और कैसे वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता है।