लोकसभा चुनाव 2024: आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी की नजरें बनी हुई हैं कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता मगर चुनाव को लेकर जोरशोर की तैयारियां शुरू हो गई हैं। बता दे कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अभी से सभी दलों ने तैयारी शुरू कर दी हैं और अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं।
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हमीरपुर का राजनीतिक इतिहास
हमीरपुर उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड की हमीरपुर लोकसभा सीट चित्रकूट धाम बांदा मंडल का हिस्सा है। वहीं अगर बात करें मौजूदा समय की तो इस समय में इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है। यहां से कुंवर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल सांसद हैं। राजनीतिक रूप से इस संसदीय सीट पर सपा, बसपा, कांग्रेस और बीजेपी चारों पार्टियां जीत दर्ज कर चुकी हैं।
आपको बतादें कि हमीरपुर लोकसभा सीट पर आजादी के बाद से अब तक 16 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। इनमें से 7 बार कांग्रेस को जीत मिली जबकि बीजेपी को 4 बार। बसपा यहां से 2 बार जीत का स्वाद चख चुकी है। इसके अलावा एक-एक बार सपा, जनता दल और लोकदल को जीत मिल चुकी है।
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जानें कब तक किसका रहा वर्चस्व
आजादी के बाद पहली बार 1952 में हुए लोकसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के मनुलाल द्विवेदी संसद पहुंचे थे। इसके बाद 1971 तक कांग्रेस लगातार पांच पार जीतने में कामयाब रही। कांग्रेस की जीत का सिलसिला 1977 में लोकदल ने रोका था। हमीरपुर लोकसभा सीट पर 1991 में बीजेपी कमल खिलाने में कामयाब रही थी, इसके बाद 1998 तक बीजेपी लगातार तीन चुनाव जीतने में कामयाब रही। 1999 में बसपा के अशोक चंदेल यहां से जीतकर संसद पहुंचे, लेकिन 2004 में सपा ने राजनारायण भदौरिया को उतारकर जीत दर्ज की। पांच साल बाद 2009 में हुए आम चुनाव में बसपा ने फिर वापसी की और विजय बहादुर सिंह जीतने में कामयाब रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने मोदी लहर में जीत दर्ज की और यहां से कुंवर पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल सासंद बने।
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नेताओं के वादों के भरोसे
बुंदेलखंड का हिस्सा होने की वजह से हमीरपुर-महोबा-तिंदवारी लोकसभा क्षेत्र सियासी दलों के लिए हमेशा खास रहा। चुनाव में हर दल ने सूखा, अन्ना मवेशियों की समस्या से जूझते किसानों के साथ ही आमजन की दुखती रग पर हाथ रखकर हमदर्दी बटोरी। नेताओं के वादों के भरोसे यह क्षेत्र लहर के साथ सियासी सफर करता रहा। लहर के साथ चलने का खामियाजा यहां के लोगों को भुगतना भी पड़ा और प्रमुख मुद्दे दबे रहे गए।
क्षेत्र की सबसे बड़ी विडंबना है कि यहां नेताओं ने विकास के ख्वाब दिखाए लेकिन वह कभी हकीकत का धरातल न छू सके। 16 लोकसभा चुनावों में 6 बार कांग्रेस को जीत मिली जबकि भारतीय जनसंघ व भाजपा ने 5 तो बसपा ने 2 बार सीट पर कब्जा जमाया। एक-एक बार सपा, जनता दल और लोकदल के प्रत्याशियों ने भी यहां का प्रतिनिधित्व किया।
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जातीय जनगणना समीकरण
2011 की जनगणना के अनुसार हमीरपुर लोकसभा सीट पर 82.79 % ग्रामीण और 17.21 % शहरी आबादी है। अनुसूचित जाति की आबादी इस सीट पर 22.63 % है। इसके अलावा राजपूत, मल्लाह और ब्राह्मण मतदाता यहां निर्णायक भूमिका में हैं। यहां 8.26 % मुस्लिम मतदाता भी हैं। हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र के तहत पांच विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें हमीरपुर, राठ, महोबा, चरखारी और तिंदवारी विधानसभा सीटें शामिल हैं। राठ विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। मौजूदा समय में पांचों सीटों पर बीजेपी का कब्जा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में हमीरपुर संसदीय सीट पर 56.11 फीसदी मतदान हुआ था। इस सीट पर बीजेपी के कुंवर पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल ने सपा के बिशंभर प्रसाद निषाद को दो लाख 66 हजार 788 वोटों से मात देकर जीत हासिल की थी।
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कुल मतदाता- 17 लाख 38 हजार 107
पुरुष- 9 लाख 47 हजार 611
महिला- 7 लाख 90 हजार 451
फर्स्ट टाइम वोटर – 28 हजार 931
हमीरपुर लोकसभा सीट पर अनुसूचित जाति की आबादी 22.63 फीसदी है। इसके अलावा राजपूत, मल्लाह और ब्राह्मण मतदाता काफी निर्णायक भूमिका में हैं। 8.26 फीसदी मुस्लिम मतदाता भी हैं।
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जानें कब कौन बना सांसद
यहां विभिन्न राजनीतिक दलों के स्टार प्रचारकों ने आकर चुनाव का रुख बदल दिया जबकि कई मर्तबा जनता ने उन्हें भी नकार दिया। 1980 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान इंदिरा गांधी ने यहां आकर पार्टी प्रत्याशी डूंगर सिंह के लिए जनसभा की थी। जिस पर वह एक लाख 43 हजार 821 मत पाकर सांसद बने थे जबकि उनके प्रतिद्धंदी शिवनंदन सिंह को 77 हजार 612 मत मिले थे। वहीं वर्ष 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने जेल में बंद प्रत्याशी अशोक सिंह चंदेल से मुलाकात की थी और जनसभा कर उनके लिए वोट मांगे थे। जिस पर जनता ने दो लाख 17 हजार 732 वोट देकर अशोक सिंह चंदेल को संसद पहुंचाया।
इसी वर्ष सपा प्रत्याशी राजनारायन बुधौलिया के लिए वोट मांगने आए मुलायम सिंह की जनता ने नहीं सुनी। वहीं 2004 में फिर मुलायम सिंह सपा प्रत्याशी राजनारायन बुधौलिया के लिए जनसभा कर वोट मांगे और मायावती ने अशोक सिंह चंदेल के लिए लेकिन इस बार जनता ने मुलायम सिंह की बात को गंभीरता से लिया..और सपा ने इस सीट पर जीत हासिल की।
जनसभा के दौरान मुलायम सिंह ने लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव हारे राजनारायन बुधौलिया के बारे में कहा था कि जनता जब तक उन्हें हराती रहेगी तब तक वह उन्हें अपनी पार्टी के टिकट से प्रत्याशी बनाते रहेंगे। जिसका जनता पर यह असर हुआ कि राजनारायन बुधौलिया दो लाख 20 हजार 917 मत पाकर विजयी हुए। इसी प्रकार वर्ष 2014 में चल रही मोदी लहर के दौरान मोदी ने महोबा में जनसभा कर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल को विजयी बनाने की जनता से अपील की। जिसके बाद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल अब तक के रिकार्ड में सबसे अधिक चार लाख 53 हजार 884 मत पाकर जीत दर्ज कराई।
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इस संसदीय सीट से वर्ष 1996 में कांग्रेस के टिकट पर पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री ने चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था। इतना ही नहीं उनकी जमानत जब्त हो गई थी। इस चुनाव में भाजपा के गंगाचरन राजपूत विजयी हुए थे।
उन्हें 17 फीसदी मत मिले थे जबकि सपा के राजनारायन बुधौलिया 10 फीसद मत पाकर दूसरे व स्वामी प्रसाद नौ फीसद मत पाकर तीसरे नंबर पर रहे थे। वर्ष 1989 में जनता दल से सांसद बने गंगाचरन राजपूत उरई से यहां चुनाव लडऩे आए थे वहीं वर्ष 1991 में झांसी से आए विश्वनाथ शर्मा ने चुनाव जीता था जबकि इसके अलावा स्थानीय निवासी ही यहां के प्रतिनिधि रहे। वर्ष 2009 के बाद हमीरपुर महोबा संसदीय क्षेत्र में जुडऩे से पूर्व जिला फतेहपुर संसदीय क्षेत्र से जुड़ा था। जहां से चुनाव जीतकर वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने थे वहीं तिंदवारी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे।
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लोकसभा संसद सदस्य
1952- मन्नूलाल द्विवेदी – (कांग्रेस)
1957- मन्नूलाल द्विवेदी – (कांग्रेस)
1962- मन्नूलाल द्विवेदी – (कांग्रेस)
1967- स्वामी ब्रह्मानंद – (भाजस)
1971- स्वामी ब्रह्मानंद – (कांग्रेस)
1977- तेजप्रताप सिंह – (बीकेडी)
1980- डूंगर सिंह – (कांग्रेस)
1984- स्वामी प्रसाद सिंह – (कांग्रेस)
1989- गंगाचरण राजपूत – (जद)
1991- विश्वनाथ शर्मा – (भाजपा)
1996- गंगाचरण राजपूत – (भाजपा)
1998- गंगाचरण राजपूत – (भाजपा)
1999- अशोक सिंह चंदेल – (बसपा)
2004- राजनारायण बुधौलिया – (सपा)
2009- विजय बहादुर सिंह – (बसपा)
2014- पुष्पेंद्र सिंह चंदेल – (भाजपा)
2019- पुष्पेंद्र सिंह चंदेल – (भाजपा)