लोकसभा चुनाव 2024: आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी की नजरें बनी हुई हैं कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता मगर चुनाव को लेकर जोरशोर की तैयारियां शुरू हो गई हैं। बता दे कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अभी से सभी दलों ने तैयारी शुरू कर दी हैं और अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं।
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गाजियाबाद का इतिहास
उत्तर प्रदेश का जिला गाजियाबाद की स्थापना 1740 में हुआ था जिसे मुगल सम्राट के मुहम्मद शाह के वजीर गाजी-उद-दीन ने कोलकाता से पेशावर तक जाने वाली ग्रैंड ट्रंक रोड पर की थी जिसके बाद इस जगह को उनके नाम पर तब गाजी-उद-दीन नगर कहा जाता था। आपको बताते चले कि मुगल काल में गाजियाबाद और इसके आसपास के क्षेत्र (विशेषकर हिंडन के तट) मुगल शाही परिवार के लिए पिकनिक स्थल थे।
गाजियाबाद यूपी और उत्तर भारत का एक प्रमुख औद्योगिक केन्द्र है जो दिल्ली के पूर्व और मेरठ के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। जिसका मुख्यालय गाजियाबाद जिले में स्थित है। वहीं स्वतंत्रता से पहले गाजियाबाद जिला, मेरठ जिले का भाग था मगर स्वतंत्रता की आजादी मिल जाने के बाद राजनैतिक कारणों से इसे एक पृथक जिला बनाया गया। 2020 के ईज ऑफ लिविंग इंडेक्स के अनुसार गाजियाबाद भारत में रहने योग्य सर्वोत्तम नगरों में 30वें स्थान पर है।
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गाजियाबाद दिल्ली और लाहौर को जोड़ने वाली सिंध, पंजाब और दिल्ली रेलवे की रेल लाइन को अम्बाला से गाजियाबाद तक उसी वर्ष खोला गया था। 1870 में सिंध, पंजाब और दिल्ली रेलवे की अमृतसर-सहारनपुर-गाजियाबाद लाइन के पूरा होने के साथ, नगर मुल्तान से भी सीधी रेल सेवा से जुड़ गया, और गाजियाबाद रेलवे स्टेशन ईस्ट इंडियन रेलवे और सिंध, पंजाब और दिल्ली रेलवे का जंक्शन बन गया। इन्हीं वर्षों में यहां वैज्ञानिक समाज की स्थापना हुई, जिसे सर सैयद अहमद खान के शैक्षिक आंदोलन में एक मील का पत्थर माना जाता है।
गाजी-उद-दीन नगर कैसे बना गाजियाबाद जानें इतिहास
आपको बतादें कि जिला गाजियाबाद हिण्डन नदी के तट पर बसा हुआ है, जो नगर के मध्य से होकर बहती है, और इसे दो हिस्सों में विभाजित करती है। नदी के पश्चिम की ओर बसे हिस्से को ट्रान्स-हिण्डन जबकि पूर्वी ओर के हिस्से को सिस-हिण्डन कहा जाता है। 1985 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के गठन के समय से ही गाजियाबाद एनसीआर का हिस्सा रहा है, और उससे पहले यह दिल्ली के 1962 के मास्टर प्लान में उल्लेखित दिल्ली मेट्रोपोलिटन एरिया (डीएमए) का भी हिस्सा था।
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वहीं इस जिले की पूर्वी सीमा पर गाँव “KOT” स्थित है जो प्रसिद्ध सम्राट समुंद्र गुप्त के साथ जुड़ा हुआ है, जिन्होंने किले और “कोट कुलजम” को नष्ट करने के बाद यहाँ अश्वमेध यज्ञ किया था, जो एक महान ऐतिहासिक महत्व की घटना थी।
वर्ष 1313 में सुल्तान मुहम्मद-बिन-तुगलक के शासन के दौरान, यह पूरा क्षेत्र एक विशाल युद्ध क्षेत्र बन गया था। सुल्तान नसीरुद्दीन जो अपनी सादगी और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध थे, ने अपना बचपन यहाँ लोनी किले में गुजारा। उसी दौरान तैमूर का हमला इस किले पर हुआ था और उसके द्वारा किए गए मानव नरसंहार इतिहास में संदर्भित हैं। मुगल काल के दौरान लोनी का महत्व बढ़ गया क्योंकि मुगल राजा शिकार और आनंद यात्राओं के लिए यहां आते थे।
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आजादी का पहला युद्ध
चौथी शताब्दी में कोट युद्ध लोनी में और तैमूर और भारतीय योद्धाओं के बीच युद्ध लाजपुर में लड़ा गया था। मराठा-मुगल युद्ध, भरतपुर के शासक सूरजमल और नजीब के बीच हिंडन नदी के तट पर और 1803 में सर जनरल लेक और शाही मराठा सेना के बीच युद्ध यहाँ लड़ा गया था, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण लड़ा गया युद्ध हिंडन नदी के किनारे 30-31 मई, 1857 को अंग्रेजों के साथ हुआ था। यह आजादी का पहला युद्ध था और इसने गाजियाबाद को बहुत गौरवान्वित किया।
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वहीं इस जिले के कई गांवों और उप-शहरी क्षेत्रों के अलावा, डासना में धन उधारदाताओं की प्राचीन कॉलोनी के बाद से प्रसिद्धि और महिमा के कई स्थान है, जिन्होंने राजाओं को पैसा उधार दिया, मुरादनगर जो मुराद बेगमाबाद तो वर्तमान में मोदीनगर द्वारा स्थापित किया गया था। प्रसिद्ध मराठा जनरल महादजिन की बेटी बालाबाई की जागीर जलालाबाद, 1857 की क्रांति का केंद्र हापुड़, शाही हाथी का खेत और बाद में बाबूगढ़ में ब्रिटिश काल के दौरान घोड़ा फार्म आदि इस क्षेत्र के प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान हैं जो इस के इतिहास में एक सम्मानजनक स्थान पर हैं।
मराठा-मुगल युद्ध एक और महत्वपूर्ण घटना है जिसने मुगलों के विनाश और मराठा शासन की शुरुआत का मार्ग प्रशस्त किया। मुगल शासन के बाद, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का आगमन हुआ और तब वर्ष 1857 में, रॉयल मराठा सेना का ब्रिटिश सेना के साथ युद्ध हुआ और इस युद्ध को देश की पहली स्वतंत्रता लड़ाई कहा गया है। यह युद्ध शहर के लिए गौरवशाली था।
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मोर्चा संभालने वाले प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी
- प्रेम कृष्ण खन्ना
- उधम सिंह
- सहजानंद सरस्वती
- बनवारी लाल
- राम प्रसाद बिस्मिल
- राममनोहर लोहिया
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आजादी के बाद का गाजियाबाद
आपको बतादें कि आजादी के बाद गाजियाबाद 14 नवंबर 1976 से पहले प्रारंभ में यह तहसील मेरठ जिले में था, मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त जिन्होंने इस तहसील को एक अलग जिले की घोषणा की थी। जिले के गठन के बाद से, इस स्थान ने औद्योगीकरण, बुनियादी ढांचे और विकास के मामले में प्रचुर विकास और परिवर्तन देखा है। गाजियाबाद शहर, जो गाजियाबाद जिले का मुख्यालय है, ग्रैंड ट्रंक रोड पर हिंडन नदी के तट पर स्थित है। साथ ही उत्तर प्रदेश राज्य का प्रवेश द्वार होने के नाते, गाजियाबाद ऐतिहासिक मूल्यों और मान्यताओं के मामले में सबसे पुराना और समृद्ध शहरों में से एक है। बताते चले यह शहर ऐतिहासिक मूल्यों से परिपूर्ण सबसे सांस्कृतिक शहरों में से एक माना जाता है।
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गाजियाबाद का निर्वाचन क्षेत्र
यूपी के गाजियाबाद में संसदीय क्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबला है और चुनाव के नतीजे काफी हद तक जातिगत समीकरणों पर निर्भर करता हैं। इसके तीन मुख्य दावेदार- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) और कांग्रेस हैं। वहीं अगर बात करें गाजियाबाद निर्वाचन क्षेत्र की तो इसमें पांच खंड हैं..
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विधानसभा क्षेत्र
53-लोनी
54-मुरादनगर
55-साहिबाबाद
56-गाजियाबाद
57-मोदीनगर
58-धौलाना (आंशिक)
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लोकसभा क्षेत्र
11-बागपत (आंशिक, 57-मोदीनगर)
12-गाजियाबाद
देश की आजादी के बाद 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ था लेकिन गाजियाबाद के लोगों को हापुड़ लोकसभा क्षेत्र के लिए 1957 में अपना पहला सांसद चुनने का मौका मिला था। लोनी विधानसभा क्षेत्र को मिलाकर गाजियाबाद लोकसभा सीट का गठन किया गया। यूपी गाजियाबाद सीट को लेकर जैसा कि सभी जानते है कि लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र उत्तर प्रदेश राज्य के 80 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। यह निर्वाचन क्षेत्र 2002 में गठित भारत के परिसीमन आयोग की सिफारिशों के आधार पर संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के कार्यान्वयन के एक भाग के रूप में 2008 में अस्तित्व में आया।
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वहीं अगर बात करें गाजियाबाद के संसद सदस्य की तो…
- 2008 तक : हापुड़…
- 2009 राजनाथ सिंह भारतीय जनता पार्टी
- 2014 विजय कुमार सिंह भारतीय जनता पार्टी
- 2019 विजय कुमार सिंह भारतीय जनता पार्टी
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गाजियाबाद का राजनीतिक सफर
17वीं लोकसभा के गठन का काउंटडाउन शुरू हो गया है। अब तक गाजियाबाद लोकसभा सीट पर छह बार बीजेपी व पांच बार कांग्रेस का कब्जा रहा है। दिल्ली से सटी होने के कारण इस सीट को वीआईपी का दर्जा प्राप्त रहा है। यही कारण है कि इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए सभी दल पूरी ताकत झोंकते हैं। बेशक देश की आजादी के बाद 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ था। लेकिन गाजियाबाद के लोगों को हापुड़ लोकसभा क्षेत्र के लिए 1957 में अपना पहला सांसद चुनने का मौका मिला था। इसमें कांग्रेस के कृष्णचंद शर्मा पहले सासंद बने।
इसके बाद 1962 में कमला चौधरी (कांग्रेस), 1967 में प्रकाशवीर शास्त्री स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर संसद पहुंचे। 1971 में बीपी मौर्य (कांग्रेस), 1977 में कुंवर महमूद अली भारतीय लोकदल की टिकट पर संसद पहुंचे। वहीं 1980 में अनवर अहमद जनता पार्टी सेक्युलर, 1984 में केएनसिंह कांग्रेस, 1989 में केसी त्यागी जनता दल, 1991 से 99 तक चार बार बीजेपी की टिकट पर डॉ. रमेश चंद तोमर चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। जबकि 2004 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े सुरेंद्र प्रकाश गोयल ने जीत दर्ज की।
2009 में लोकसभा क्षेत्र के परिसीमन के बाद हापुड़ का अधिकांश क्षेत्र मेरठ संसदीय क्षेत्र से जोड़ दिया गया। जबकि लोनी विधानसभा क्षेत्र को मिलाकर गाजियाबाद लोकसभा सीट का गठन कर दिया गया। गाजियाबाद जिले की विधानसभा क्षेत्र को बागपत लोकसभा क्षेत्र में शामिल किया गया।
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2009 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने गाजियाबाद से चुनाव लड़ा और उन्होंने उस समय के मौजूदा सांसद कांग्रेस के सुरेंद्र प्रकाश गोयल को हरा कर गाजियाबाद संसदीय सीट से पहले सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया। जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में राजनाथ सिंह ने अपनी सीट बदलकर लखनऊ से चुनाव लड़ने का फैसला किया। इसके बाद बीजेपी ने सेना से रिटायर्ड जनरल वीके सिंह को टिकट दिया और वीके सिंह ने मोदी लहर के सहारे कांग्रेस के स्टार उम्मीदवार राजबब्बर को 5.67 लाख से भी अधिक मतों से चुनाव हराया।