Sambhal Loksabha Seat: समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि संभल एक बार फिर कड़े मुकाबले के लिए तैयार हो रही है. 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर सभी राजनैतिक दलों ने अपने-अपने समीकरण बिठाने शुरू कर दिए हैं. राजनीतिक दृष्टि से देखें तो यहां बसपा और सपा ने सबसे ज्यादा राज किया है. 1984 तक तो कांग्रेस इस सीट पर कब्जा जमाए रही लेकिन 1989 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया हो गया और अब 2024 के रण को लेकर सभी दलों ने नए सिरे से चुनाव को लेकर रणनीति बनानी शुरू कर दी है.
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भाजपा एजेंडा सेट करने में लगी
मुलायम सिंह यादव और चौधरी चरण सिंह जैसे नेताओं की कर्मभूमि कही जानी वाली इस सीट पर अब भाजपा की नजर है.मुस्लिम बाहुल्य सीट होने के कारण यहां भाजपा केवल एक बार जीती है.भाजपा चुनाव को लेकर अपना एजेंडा सेट करने में लगी है तो वहीं सपा पीडीए के जरिए लोगों को एकजुट करने में यकीन कर रही है. साथ ही बसपा और कांग्रेस का भी अपना-अपना समीकरण है.
11 लोकसभा चुनावों में 11 बार जीते यादव प्रत्याशी
1977 में अस्तित्व में आई संभल लोकसभा सीट कई मायनों में खास है.इसे मंडल की सबसे अहम सीटों में गिना जा सकता है क्योंकि इस सीट ने समाजवादी पार्टी के मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार के सदस्यों को भी संसद तक पहुंचाया.इतना ही नहीं गठन के बाद पहली ही बार किसी महिला को सांसद बनाने का श्रेय भी इस सीट को है.
पुराने स्वरूप में ये सीट यादव बहुल्य मानी जाती थी इसका असर परिणामों में भी देखा जा सकता है. 1977 से 2014 तक हुए 11 लोकसभा चुनावों में से 6 बार यादव प्रत्याशी जीते. इनमें दो बार श्रीपाल सिंह यादव, दो बार खुद मुलायम सिंह यादव, एक बार प्रो. राम गोपाल यादव और एक बार धर्मपाल यादव सांसद बने. 2004 में परिसीमन के बाद इस सीट का जातीय गणित कुछ बदला है और इस सीट पर यादव मतदाताओं की संख्या कम हुई है.
क्या पीएम का दौरा BJP के लिए गेम चेंजर साबित होगा
संभल धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. धर्मग्रंथों में वर्णित है कि कलियुग में भगवान विष्णु संभल में ही कल्कि के रूप में अवतार लेंगे. बहरहाल, अब सियासी जमीन पर कौन सी पार्टी का झंडा लहराएगा. ये तो वक्त ही बताएगा.अयोध्या में राम मंदिर के बाद संभल के कल्कि धाम से बीजेपी हिंदुत्व के एजेंडे को और धार मिलने लगी है.
फरवरी महीने में प्रधानमंत्री का संभल दौरा हुआ. संभल के साथ-साथ पश्चिम यूपी के कई जिलों पर इसने असर भी डाला. मिशन 370 को लेकर बीजेपी का टारगेट सेट है. 2019 में जिन सीटों पर बीजेपी जीती.वहां दोबारा कमल खिलाने की तैयारी तो हो रही है.इसके साथ ही हारी हुई सीटों पर भी भगवा लहराने का प्लान है. बीजेपी का फोकस यूपी में हारी हुई 14 सीटों पर भी है. जिनमें 7 सीटें पश्चिमी यूपी की हैं.19 फरवरी को पीएम मोदी 15 साल बाद संभल पहुंचे थे. जहां पर उन्होंने विश्व के अनोखे मंदिर कल्कि धाम का शिलान्यास किया था. प्रधानमंत्री का संभल दौरा बीजेपी के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है.
सियासत की ये लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर आई
बीजेपी किसी भी हाल में वेस्ट यूपी से हारी हुई सीटों में मुरादाबाद, रामपुर, सहारनपुर, अमरोहा, संभल, बिजनौर और नगीना को जीत में तब्दील करना चाहती है ताकि लोकसभा चुनाव में यूपी से सीटों की संख्या बढ़ाई जा सके. संभल की सीट राजनीतिक लिहाज से हमेशा ही महत्वपूर्ण रही है.
इसीलिए सबसे बड़े रण के लिए सभी दलों ने अपने अपने समीकरण बिठाने शुरू कर दिए हैं. समाजवादी डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क संभल जिले की कमान संभाले हए थे. तत्कालीन सांसद को एक बार फिर संभल से टिकट दिया गया था लेकिन बीते महीने उनके निधन के बाद संभल से ना सिर्फ अपना सांसद खोया बल्कि उनके बाद अब टिकट को लेकर पार्टी विधायकों में होड़ सी मच गई है. कुल मिलाकर सियासत की ये लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर आ गई है.
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