Gorakhpur Loksabha Seat: गोरखनाथ मंदिर किसी पहचान का मोहताज नहीं है.सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मंदिर के महंत हैं और गोरखुपर को इतिहास आज से नहीं बल्की त्रेता युग से जुड़ा हुआ है लेकिन वास्तविकता ये भी है कि इस भव्य मंदिर का साया राजनीति पर भी गहरा है और यही वजह है कि इस लोकसभा सीट की किस्मत यहीं से तय होती है. इस बार फिर बीजेपी ने फिल्म अभिनेता रवि किशन को अपना उम्मीदवार बनाया है.ऐसे में प्राइम टीवी की इस रिपोर्ट में आज आपको बताते है इस सीट का चुनावी समीकरण..
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लोकसभा सीट की किस्मत यहीं से तय होती
गोरखपुर का नाम आते ही सबसे पहले जेहन में आस्था से सराबोर बाबा गोरखनाथ की तस्वीर उभरती है.उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में बसा ये क्षेत्र गोरक्षनाथ मंदिर की वजह से दुनियाभर में मसहूर है. ये वो क्षेत्र है जहां संत कबीर, मुंशी प्रेम चंद्र जैसे विश्व प्रसिद्ध लोग हुए, जिनके जरिए भारत को अलग पहचान मिली है लेकिन वास्तविकता ये भी है कि इस भव्य मंदिर का साया राजनीति पर भी गहरा है और यही वजह है कि इस लोकसभा सीट की किस्मत यहीं से तय होती है.
गोरखपुर को सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ माना जाता है. गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र बीते तीन दशक से भगवा खेमे का अभेद्य गढ़ बना हुआ है. वहीं गोरखपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 64वें नंबर की सीट है.इस लोकसभा सीट में उत्तर प्रदेश विधानसभा की 5 सीटें है.
सियासत का गढ़ गोरखपुर..
गोरखपुर लोकसभा सीट से रविकिशन बीजेपी के सांसद हैं.साल 1989 से 2014 तक इस सीट पर बीजेपी का विजय रथ बिना रूके दौड़ता चला आया था जिस पर 2018 के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने विपक्षी एका की रणनीति से ब्रेक लगा दया था.उस उपचुनाव में प्रवीण निषाद (संतकबीरनगर से बीजेपी के मौजूदा सांसद ने बतौर सपा उम्मीदवार यहां से जीत हासिल कर सबको चौंका दिया था.
2017 में योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद खाली हुए बीजेपी के अभेद् दुर्ग पर सपा की विजय ने भगवा रणनीतिकारों को अंदर तक हिला दिया था लेकिन इसके बाद वे सचेत हुए तो 2019 के चुनाव में पार्टी उम्मीदवार रविकिशन ने बंपर वोटों से सीट जीताकर बीजेपी की यहां जबरदस्त वापसी कराई.
कब कौन रहा सांसद?
साल 1951-52 में देश में हुए पहले लोकसभा चुनावों में गोरखपुर से कांग्रेस उम्मीदवार सिंहासन सिंह चुने गए थे. उस दौर में गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति काफी अलग थी. गोरखपुर सहित आस-पास के जिलों को मिलाकर कुल चार सांसद चुने जाते थे. सिंहासन सिंह उस वक्त की जिस गोरखपुर दक्षिण सीट से सांसद चुने गए.वहीं क्षेत्र बाद में गोरखपुर लोकसभा सीट के नाम से जाना गया. सिंहासन सिंह यहां से लगातार तीन बार सांसद चुने गए.1962 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजनाथ हिंदू महासभा के टिकर पर मैदान में उतरे.हालांकि, वह चुनाव हार गए. उसके बाद 1967 के चुनाव में उन्होंने बतौर निर्दलयी प्रत्याशी कांग्रेस के विजय रथ को रोक दिया. महंत दिग्विजयनाथ ने हिंदू महसभा के टिकट पर मैदान में उतरे.
कब किसने मारी बाजी?
हालांकि, वह चुनाव हार गए. 1967 के चुनाव में उन्हें बतौर निर्दलीय प्रत्याशी कांग्रेस के विजय रथ को रोक दिया. महंत दिग्विजयनाथ ने वह चुनाव 42 हजार वोटों के अंतर से जीता थी. सांसद बनने के दो साल बाद ही उनका निधन हो गया.1969-70 में यहां फिर से उपचुनाव हुआ.जिसमें महंत दिग्विजयनाथ के उत्तराधिकारी और उनके बाद गोरक्षपीठाधीश्वर बने मंहत अवेद्यनाथ ने राममंदिर आंदोलन के बीच धर्मसंसद के आग्रह पर 1989 के चुनाव में एक बार फिर वापसी की. उन्होंने हिंदू महासभा के टिकट पर वह चुनाव लड़ा और जीते.
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एक बार फिर भाजपा ने इस सीट पर वापसी की
1989 से 2018 तक इस सीट पर लगातार गोरक्षपीठ औऱ बीजेपी का कब्जा रहा. गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ 1998 से ही लगातार 19 सालों तक यहां से सांसद रहे. उन्होंने 1998,1999,2004,2009 और 2014 के चुनावों में बीजेपी की जीत के बाद योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन गए तो उन्हें गोरखनाथ संसदीय सीट छोड़ने पड़ी. इसके बाद 2018 में हुए उपचुनाव में सपा उम्मीदवार प्रवीण निषाद (वर्तमान में संतकबीरनगर से भाजपा सांसद) ने चुनाव जीत लिया. 2019 के आम लोकसभा चुनाव में रविकिशन शुक्ल के जरिए एक बार फिर भाजपा ने इस सीट पर वापसी की.
इस सीट पर किसका कितना रहा बोल-बाला?
भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर से विकास का मुद्दा लेकर चुनावी मैदान में हैं.गोरखपुर को लेकर सीएम योगी हमेशा सक्रिय नजर आते हैं.यूपी में विकास की बयार बहाने के साथ ही प्रदेश विकास के रास्ते निरंतर आगे बढ़ रहा है.एक वक्त था जब गोरखपुर और उसके आसपास की सियासत ब्राह्मणों और ठाकुरों की जातिगत गोलबंदी के आधार पर चलती थी लेकिन ओबीसी और दलित जातियों के उभार के बाद ये सियासी समीकरण बहुत कुछ बदल गए.
इस क्षेत्र में पिछड़े और दलित मतदाताओं की बहुलता बताई जाती है. एक अनुमान के अनुसार यहां करीब 4 लाख निषाद जाति के वोट हैं. निषाद मतदाता सबसे ज्यादा पिपराइच और गोरखपुर गाम्रीण क्षेत्र में हैं.करीब दो-दो लाख यादव और दलित मतदाता हैं. इसके अलावा डेढ़ लाख से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं. इसके अलावा करीब डेढ़ लाख ब्राह्मण मतदाता, सवा लाख क्षत्रिय मतदाता हैं.जबकि भूमिहार और वैश्य मतदाताओं की तादाद भी करीब एक लाख है.
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गोरखपुर का ‘जाति समीकरण’
निषाद- 4 लाख लगभग
यादव- 2 लाख लगभग
दलित- 2 लाख लगभग
ब्राह्मण- 1.25 लाख लगभग
क्षत्रिय- 1.25 लाख लगभग
मुस्लिम- 1.50 लाख लगभग
भूमिहार- 1 लाख लगभग
वैश्य- 1 लाख लगभग
साल 2019 का कैसा रहा चुनाव?
बता दें कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार और फिल्म अभिनेता रवि किशन ने 3.01664 लाख वोटों के बड़े अंतर से जीत हासिल की.उन्हें कुल 715010 वोट मिले. जबकि दूसरे स्थान पर रहे सपा के राम भुआल निषाद को 4,14,340 मत.सपा और बसपा ने वह चुनाव गठबंधन में लड़ा था.वहीं एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी ने रवि किशन पर भरोसा जताते हुए प्रत्याशी घोषित कर दिया है.उनके सामने सपा प्रत्याशी काजल निषाद उन्हें चुनौती देंगी.अब देखना ये होगा कि इस बार इस सीट से कौन बाजी मारेगा.
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