Shailendra : आज महान गीतकार शैलेंद्र की बर्थ एनिवर्सरी है। बता दे कि उनका का जन्म 30 अगस्त 1923 को रावलपिंडी पंजाब में हुआ था। वहीं इनका पूरा नाम शंकरदास केसरीलाल है। आपको ये जानकर हैरानी होगी की बिहार से गीतकार शैलेंद्र का बहुत खास रिश्ता है। वहीं इनके पिता फौजी थे और बिहार के रहने वाले थे। बाद में परिवार मथुरा आ गया। यहां उनके बड़े भाई बाबूलाल रेलवे वर्कशॉप में नौकरी करते थे और इन्हें पढ़ा भी रहे थे।
गीतकार शैलेंद्र का लिखा गाना खोया खोया चांद आज भी लोगों के जेहन में है। आज भी लोगों के जहन में ये गाना आता है।वहीं
इस गाने का उपयोग सुपरस्टार देव आनंद की फिल्म में किया गया था।
वहीं बरसात’ से लेकर मेरा नाम जोकर तक राजकपूर की सभी फ़िल्मों के थीम गीत शैलेंद्र ने ही लिखे।बता दे कि राजकपूर उन्हें कविराज कहकर बुलाते थे। वहीं उन्होने आवारा फ़िल्म ने राजकपूर को दुनिया भर में लोकप्रिय बनाया।
शैलेंद्र के गीतों में हमें जीवन को लेकर उनका नजरिया पता चलता है।वहीं इसके उदाहरण के लिए हम उनका एक गीत ले सकते हैं किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार। किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वासते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है।
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शैलेंद्र ने निर्माता के रूप में साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी “मारे गए गुलफाम ” पर आधारित “तीसरी कसम” फिल्म बनायी थी। वहं इस फिल्म की असफलता और आर्थिक तंगी ने उन्हें तोड़ दिया था। बता दे कि वे गंभीर रूप से बीमार हो गये और आखिरकार 14 दिसंबर, 1967 को मात्र 46 वर्ष की आयु में उनकी मौत हो गयी थी। वहीं इस फिल्म की असफलता ने उन पर कर्ज का बोझ चढ़ा दिया था।
वहीं ‘तीसरी कसम’ को मास्को अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में भारत की आधिकारिक इंट्री होने का गौरव मिला और यह फिल्म पूरी दुनिया में सराही गयी थी । अफसोस शेलेन्द्र इस सफलता को देखने के लिए इस दुनिया में नहीं थे।
मुंबई में शैलेंद्र रेलवे में छोटी सी नौकरी करते थे और कविताएं लिखते थे। वो वहां प्रोग्रेसिव राईटर्स एसोसिएशन और इप्टा से जुड़े थे और उनके कार्यक्रमों में शिरकत किया करते थे। वहां एक बार उनकी कविता राजकपूर ने सुनी,उन्होंने शैलेंद्र से कहा कि वे उनके लिए फिल्मों में गीत लिखें। शैलेंद्र ने मना कर दिया, कहा- ‘अव्वल तो मैं कविता बेचता नहीं, दूसरा, मुझे फिल्मी दुनिया पसंद नही हैं।