Karnataka MUDA scam: कर्नाटक में मुडा (मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण) जमीन घोटाला अब राजनीतिक संग्राम का नया केंद्र बन चुका है। इस घोटाले के केंद्र में खुद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया (CM Siddaramaiah) हैं, जिनके खिलाफ राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने जांच के आदेश दे दिए हैं। सीबीआई अब सिद्धारमैया के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988 के सेक्शन 17ए और BNSS की धारा 218 के तहत केस चलाएगी। यह स्थिति कर्नाटक की राजनीति में तूफान ला रही है। मुडा घोटाले की जांच ने कर्नाटक की राजनीतिक स्थिति को बेहद संवेदनशील बना दिया है। सीबीआई की जांच और राज्यपाल के आदेश ने कांग्रेस सरकार को एक मुश्किल स्थिति में डाल दिया है।
भाजपा की प्रतिक्रिया
राज्यपाल थावरचंद गहलोत के आदेश के बाद, जांच एजेंसियों के लिए सिद्धारमैया के खिलाफ आरोपों की जांच का रास्ता खुल गया है। भाजपा ने इस मौके को भुनाते हुए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से इस्तीफे की मांग की है। भाजपा का आरोप है कि यह घोटाला 4 हजार करोड़ रुपये का है और सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को मैसूर के एक पॉश इलाके में महंगी जमीन का आवंटन किया गया था।
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मुख्यमंत्री का जवाब
सीएम सिद्धारमैया ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए राज्यपाल गहलोत पर हमला किया है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल केंद्र सरकार की कठपुतली की तरह काम कर रहे हैं। सिद्धारमैया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में भाजपा से पूछा कि उन्हें इस्तीफा क्यों देना चाहिए और क्या उन्होंने कोई अपराध किया है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज्यपाल का आदेश संविधान की धज्जियाँ उड़ाने वाला है।
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कांग्रेस पार्टी की प्रतिक्रिया
कांग्रेस ने इस मुद्दे पर पूरी पार्टी और राज्य सरकार को सिद्धारमैया के साथ खड़ा बताया है। उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने राज्यपाल के आदेश को “असंवैधानिक” करार दिया है और दावा किया कि कांग्रेस पार्टी सिद्धारमैया के समर्थन में है। बेंगलुरु में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने राज्यपाल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें उनके पुतले जलाए गए और “राज्यपाल हटाओ, राज्य बचाओ” के नारे लगाए गए।
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राज्यपाल का बयान
राज्यपाल गहलोत ने कहा कि निष्पक्ष जांच के लिए उनका आदेश आवश्यक था और दस्तावेजों से यह प्रतीत होता है कि घोटाला हुआ है। उन्होंने मंत्रिपरिषद द्वारा लिए गए उस निर्णय को भी गलत ठहराया, जिसमें मुख्यमंत्री को कारण बताओ नोटिस वापस लेने और अभियोजन स्वीकृति के आवेदन को खारिज करने की सलाह दी गई थी।
यह विवाद न केवल कर्नाटक की राजनीति को प्रभावित कर रहा है बल्कि यह पूरे देश की राजनीति में भी सुर्खियों में बना हुआ है। इस घोटाले की जटिलता और राजनीतिक प्रभाव को देखते हुए, यह महत्वपूर्ण है कि जांच निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से की जाए। सिद्धारमैया और राज्यपाल के बीच की यह राजनीतिक लड़ाई राज्य की राजनीति में एक नई करवट ला सकती है।