NEET Paper Leak: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा (JP Nadda) ने चिकित्सा शिक्षा में भ्रष्टाचार पर बड़ा खुलासा करते हुए दावा किया है कि नीट (NEET) परीक्षा शुरू होने से पहले मेडिकल पीजी की सीटें 8 से 13 करोड़ रुपये में बेची जाती थीं। नड्डा का यह बयान नीट परीक्षा पर उठ रहे सवालों और पेपर लीक के विवाद के बीच आया है। स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने डीएमके के राज्यसभा सांसद एम मोहम्मद अब्दुल्ला द्वारा पेश एक निजी सदस्य प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान हस्तक्षेप करते हुए कहा कि नीट के आने से पहले चिकित्सा शिक्षा पूरी तरह से एक व्यवसाय का अड्डा बन गई थी। उन्होंने कहा, “जब मैं स्वास्थ्य मंत्री था और नीट लाया गया, तो पोस्ट ग्रेजुएशन की एक सीट 8 करोड़ रुपये में बिकती थी। रेडियोलॉजी जैसे विषय के लिए यह रकम 12-13 करोड़ रुपये तक पहुंच जाती थी।”
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चिकित्सा शिक्षा में भ्रष्टाचार की गहराई
नड्डा ने यह भी कहा कि नीट से पहले छात्रों को मेडिकल परीक्षा के लिए पूरे देश में यात्रा करनी पड़ती थी, जिससे समय और पैसा दोनों का भारी नुकसान होता था। इसके अलावा, चिकित्सा शिक्षा प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार से भी छात्रों को जूझना पड़ता था। उन्होंने बताया, “प्रवेश सूची 30-45 मिनट के लिए लगाई जाती थी, और बाद में कहा जाता था कि छात्र नहीं आए, इसलिए इन सीटों का उपयोग अपने विवेक से किया जाता था। यह सब एक व्यवसाय बन गया था।” नड्डा ने यह भी संकेत दिया कि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबे समय से लंबित था, जिससे न्याय की राह और भी कठिन हो गई थी।
नीट का महत्त्व और सुधार की दिशा
नीट परीक्षा को लेकर नड्डा का यह खुलासा चिकित्सा शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता को उजागर करता है। हालांकि, नीट को लेकर उठ रहे प्रश्न और विवाद इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हैं। नीट का उद्देश्य चिकित्सा शिक्षा को एक पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया बनाना है, लेकिन इसमें उठ रहे विवाद इस लक्ष्य को पूरा करने में एक बड़ी बाधा बन सकते हैं।
नीट की शुरुआत से पहले चिकित्सा शिक्षा में भ्रष्टाचार की कहानियां नया नहीं हैं, लेकिन इससे निपटने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने की जरूरत है। चिकित्सा शिक्षा को पूरी तरह से पारदर्शी और निस्पक्ष बनाने के लिए न केवल नीट जैसी परीक्षा की आवश्यकता है, बल्कि भ्रष्टाचार और लेन-देन की प्रथा को खत्म करने के लिए ठोस नीतियों की भी जरूरत है। नीट के माध्यम से जो सुधार किए गए हैं, वे स्वागत योग्य हैं, लेकिन उनकी प्रभावशीलता को सुनिश्चित करने के लिए सतत निगरानी और सुधार की आवश्यकता है।
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