Jharkhand Election Results 2024: झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में इंडिया गठबंधन ने एक बार फिर से बाजी मार ली है। शुरुआती रुझानों में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने 81 में से 48 सीटों पर बढ़त बना ली है। वहीं, बीजेपी की अगुआई वाला एनडीए गठबंधन 32 सीटों पर ही सिमटता दिख रहा है। झारखंड में पहली बार ऐसा होने जा रहा है कि सत्ता में एक सरकार लगातार दूसरी बार वापसी करती नजर आ रही है। बीजेपी ने इस बार बांग्लादेशी घुसपैठ जैसे मुद्दों पर जोर दिया और आक्रामक प्रचार किया। लेकिन, इंडिया गठबंधन की ‘मैया सम्मान योजना’ और आदिवासी वोटरों को साधने की रणनीति ने उसे कड़ी टक्कर दी।
‘मैया सम्मान योजना’ ने जनता को लुभाया
हेमंत सोरेन सरकार की ‘मैया सम्मान योजना’ ने महिला मतदाताओं को बड़े पैमाने पर इंडिया गठबंधन के पक्ष में खड़ा कर दिया। इस योजना के तहत 18 से 50 वर्ष की महिलाओं को हर महीने 1,000 रुपये दिए जाते हैं। चुनाव प्रचार के दौरान गठबंधन ने वादा किया कि सत्ता में वापसी पर इस राशि को बढ़ाकर 2,500 रुपये कर दिया जाएगा। हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन इस योजना का चेहरा बनकर उभरीं। आदिवासी इलाकों और ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी सक्रियता ने महिला मतदाताओं को इंडिया गठबंधन के पक्ष में मजबूती से जोड़ दिया।
कल्पना सोरेन का प्रभावशाली प्रचार अभियान बना मददगार

हेमंत सोरेन की अनुपस्थिति में उनकी पत्नी कल्पना सोरेन गठबंधन की स्टार प्रचारक बनकर उभरीं। हिंदी और स्थानीय भाषाओं में उनका सीधा संवाद मतदाताओं के दिलों तक पहुंचा। कई मौकों पर उनकी रैलियों में भीड़ हेमंत सोरेन की सभाओं से भी ज्यादा रही। उनके नेतृत्व में महिला और युवा मतदाता गठबंधन के प्रति मजबूत हुए।
200 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा बना टर्निंग पॉइंट
इंडिया गठबंधन ने जनता को लुभाने के लिए कई योजनाओं का सहारा लिया। 200 यूनिट मुफ्त बिजली और किसानों की कर्जमाफी जैसे ऐलान जमीनी स्तर पर असर दिखाने में सफल रहे। इसके अलावा सावित्रीबाई फुले किशोरी समृद्धि योजना और सर्वजन पेंशन योजना ने गठबंधन की छवि को मजबूत किया। सोरेन सरकार ने दावा किया कि उनके पिछले कार्यकाल में हर परिवार को औसतन 12 हजार रुपये प्रति माह का लाभ मिला। इस आक्रामक कल्याणकारी एजेंडे ने गठबंधन के पक्ष में लहर बनाई।
आदिवासी अस्मिता का कार्ड का दांव रहा सफल
बीजेपी आदिवासी वोटरों को अपनी ओर खींचने में असफल रही। हेमंत सोरेन ने अपनी गिरफ्तारी को आदिवासी अस्मिता का मुद्दा बनाते हुए इसे चुनावी हथियार की तरह इस्तेमाल किया। उन्होंने आदिवासी आरक्षण और भूमि अधिकार जैसे मुद्दों पर बीजेपी को कटघरे में खड़ा किया। बीजेपी द्वारा पिछली सरकार में गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री बनाए जाने का मुद्दा भी JMM और कांग्रेस ने जोर-शोर से उठाया। इसका परिणाम यह हुआ कि आदिवासी बहुल इलाकों में इंडिया गठबंधन ने बेहतर प्रदर्शन किया।
24 साल पुरानी परंपरा टूटी

बीजेपी की सहयोगी पार्टी आजसू के लिए यह चुनाव बेहद खराब रहा। कुड़मी वोटर्स, जो आजसू का मुख्य वोटबैंक माने जाते थे, इस बार बिखर गए। जयराम महतो जैसे स्थानीय नेताओं के अलग होने से कुड़मी वोटर्स इंडिया गठबंधन की ओर मुड़ गए, जिससे गठबंधन को फायदा हुआ। झारखंड में 2000 में राज्य गठन के बाद से यह परंपरा रही है कि हर बार सत्ता बदलती रही है। लेकिन, इस बार JMM-कांग्रेस गठबंधन ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज करके इस परंपरा को तोड़ने की ओर कदम बढ़ा दिया है।
इंडिया गठबंधन की रणनीति रही सफल
झारखंड चुनाव ने दिखा दिया कि जनाधार को साधने वाली योजनाएं और मजबूत जमीनी संपर्क ही जीत का रास्ता हैं। हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन की जोड़ी ने कल्याणकारी योजनाओं और आदिवासी अस्मिता के मुद्दे पर प्रभावशाली पकड़ बनाकर बीजेपी को मात दी। झारखंड चुनाव का यह नतीजा बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका है, जबकि इंडिया गठबंधन के लिए यह रणनीतिक सफलता। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि गठबंधन अपने वादों को किस तरह पूरा करता है और झारखंड के विकास की नई इबारत लिख पाता है या नहीं।