मणिपुर। मणिपुर हिंसा के बाद अब राज्य में हालात धीरे-धीरे सामन्य होने लगे है। और जनजीवन पटरी पर आने लगा है। इस हिंसा में करीब 60 लोगों की मौत व 231 लोग घायल और 1700 घर जलकर खाक हो गए थे। हजारों की संख्या में लोग अपने घर से बेघर होना पड़ा और संपत्तियों का नुकसान हुआ। वह अलग जब यह हिंसा भड़की तो इसे साफ तौर पर मणिपुर हाई कोर्ट द्वारा मैतई समुदाय को एसटी का दर्जा दिए जाने को लेकर स्थानीय जनजाति समुदाय में भड़का गुस्सा बताया गया था। लेकिन अब केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में जो हलफनामा दिया है। उसने मामला दूसरी दिशा में मोड़ दिया है।
मैतई समुदाय एसटी का दर्जा की देने की कर रहे मांग
मणिपुर मे हुई हिंसा में मैतेई और कुकी समुदाय आमने-सामने आ गए है। राज्य में कुकी समुदाय मैतेई को एसटी का दर्जा देने की मांग का विरोध कर रहे है। लेकिन मणिपुर में हिंसा की एक वजह अफीम की खेती भी है, जिसका आरोप कुकी पर लगता रहा है। इससे पूरे मणिपुर में ड्रग कल्चर हावी हुआ है। मणिपुर की सीमा म्यांमार से सटे होने की वजह से म्यायार से प्रवासी मणिपुर में घुस आते है। जिसके चलते ड्रग का करोड़ो का बड़ा कारोबार होता है।
मणिपुर राज्य में नगा, कुकी और मैतेई समुदाय के बीच इस संघर्ष के पीछे तमाम तरह के फैक्ट सामने आए है। इनमें छोटी-छोटी शिकायतें भी मानी जा रही है। फिलहाल, ये ये खूनी रंजिश खतरनाक मोड़ पर पहुंच गई है। विशेषज्ञों और यहां के आम लोगों का मानना है कि हिंसा की वजह राज्य में भूमि अधिकारों, सांस्कृतिक प्रभुत्व और ड्रग तस्करी भी है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने भी ऐसी ही राय पेश की थी। मई महीने में राज्य और केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि मणिपुर में जातीय हिंसा की शुरुआत अफीम की खेती पर कार्यवाई की वजह से हुई। जिसमें म्यांमार के अवैध प्रवासी और पहाड़ी ज़िलों में नशीली दवाओं का कारोबार भी जुड़ा हुआ था।
कुकी समुदाय कर रहा मैतई समुदाय की मांग की विरोध
मणिपुर हिंसा नें सरकार के साथ- साथ आम लोगो की भी नींद उड़ा के रख दिया है। राज्य में जंगल जमीन की लड़ाई में कई लोग हताहत हुए है। कई लोगो को अपनी जानें गवानी पड़ी है। बदमाश बेखौफ घूम रहे है। इस पूरे मामलें में राज्य की तीन जनजातियां मैतई , कुकी और नागा के बींच जारी संघर्ष के बींच की है। मामला सबसे ज्यादा तब बिगड गया , जब मैतई समुदाय के लोग एसटी का दर्जा देने की मांग करने लगे। इससे पहले अनुसूचित जनजाति में शामिल कुकी और नागा नाराज हो गए। दोनों समुदाय मैतई की मांग का विरोध करने लगे। धीरे- धीरे मामला हिंसा में तब्दील हो गया।। विशेषज्ञों के मुताबिक मणिपुर हिंसा की जड़ अफीम की खेती बताई जा रही है।
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अफीम खेती क्या है मामला
मणिपुर हिंसा के मुख्य कारणों की बात करें तो राज्य में जमीन का मालिकाना हक और नशें की तस्करी का सबसे बडा रोल निभा रहे है। राज्य में इसी नशें की तस्करी में आती है अफीम की खेती। जिस पर वर्चस्व को लेकर सभी समुदायों के बींच खूनी संघर्ष बढ़ गया है। यहां पर मैतई समुदाय के लोग इंफाल की घाटी में रहता है। जबकि कुकी और नागा पहाड़ी इलाकों में रहता है। मैतई समुदाय के लोग हिंसा के लिए कुकी लोगों पर आरोप मढ़ रहे है।
बता दें कि मणिपुर में कुकी लोग लंबे समय से अफीम की खेती में संलिप्त रहे है। इससे पूरे मणिपुर में एक ड्रग कल्चर हावी हुआ है। जब सरकार ने इस अफीम की खेती और ड्रग को बर्बाद किया तो हिंसा का दौर सामने आ गया। पूवोत्तर राज्यों में अन्य जनजतियों के लोग और म्यांमार के लोग अक्सर यहां सीमाओ के पार आते जाते रहते है। इससे बडी मात्रा में ड्रग की सप्लाई होती रहती है।
मैतई समुदाय का आरोप-
मैतई समुदाय का आरोप है कि कुकी आदिवासी समुदाय का मुख्य काम अफीम की खेती करना और उग्रवाद में लिप्त रहना है। मैतई समुदाय यह भी कहते है कि उनके एसटी दर्जे का विरोध कुकी शुरु करते रहे है। वहीं दूसरी ओर कुकी आदिवासी का आरोप है कि मैतई समुदाय के लिए उनके जंगल – जमीन पर कब्जा कर रहे है। और उनके अस्तिव को खतरें मे डाल रही है। कुकी की शिकायत है कि मैतई समुदाय के एसटी दर्जा मांग कर उनके अधिकारों को छीनाना चाहते है।
जमीन – जंगल की लड़ाई
मैतई जाति के लोग हिंदू समुदाय से ताल्लुक रखते है। पहाड़ी जिलों में नागा और कुकी जनजातियों का वर्चस्व है। हालिया हिंसा चुराचांदपुर पहाड़ी जिलों में ज्यादा देखी गई। यहां पर रहने वाले लोग कुकी और नागा ईसाई है। मैतेई मणिपुर का सबसे बड़ा समुदाय है। मैतेई का राजधानी इंफाल में प्रभुत्व है और इन्हें आमतौर पर मणिपुरी कहा जाता है। 2011 की जनगणना के अनुसार मैतेई राज्य की आबादी का 64.6 प्रतिशत है। हालांकि इसके बावजूद मणिपुर की भूमि के लगभग 8 प्रतिशत हिस्से पर ही उनका कब्जा है। राज्य में मैतेई की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते है। जबकि नागा और कुकी 40 प्रतिशत हैं और मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते है। इंफाल घाटी की जमीन सबसे उपजाऊ है। मैतई समुदाय के लोग पहाड़ियों में भी बढ़ना चाह रहे है। लेकिन मणिपुर में मौजूदा कानून के चलते मैतई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाके में जमीन खरीदने की इजाजत नही है। जबकि कुकी और नागा आदिवासी समुदाय के लोगो को इंफाल की घाटी मे जमीन खरीदने का अधिकार है। इसीलिए मैतई एसटी दर्जें की मांग कर रहे है।
अफीम की खेती पर सरकार ने लगाई रोक
मणिपुर में अफीम की खेती को लेकर सरकार ने रोक लगाई थी। हालांकि अफीम की खेती को रोकने के सरकार के फैसला का स्वागत किया है। लेकिन सवाल यह है पूरे दक्षिण पूर्व एशिया से ड्रग्स को मणिपुर में आने देता है। और इसके बाद फिर यही ड्रग्स यहां से देश के अन्य जगहों पर भेजा जाता है। इस तरह से मणिपुर में असली विवाद की जड़ अफीम की खेती बताई जा रही है। क्योंकि अफीम की खेती जिसे खसखस व पोस्ता का दाना भी कहा जाता है। इस खेती से लोग मणिपुर के लोग करोड़ो को लोग कारोबार करते है।