Analog Space Mission: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने पहले एनालॉग स्पेस मिशन (Analog Space Mission) की शुरुआत करके अंतरिक्ष अनुसंधान में एक नया आयाम जोड़ा है। इस मिशन के तहत पृथ्वी पर ही अंतरिक्ष जैसी स्थिति निर्मित की गई है, ताकि अंतरिक्ष यात्रियों को वहां के हालात में ढालने का अभ्यास कराया जा सके। ISRO ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म X (पूर्व में ट्विटर) पर इस मिशन की तस्वीरें साझा की हैं, जिनमें दिखाया गया है कि किस तरह से लेह के कठिन और अलग-थलग वातावरण का प्रयोग किया जा रहा है।
क्या है एनालॉग स्पेस मिशन?
एनालॉग स्पेस मिशन (Analog Space Mission) एक ऐसा अभियान है, जिसमें असल अंतरिक्ष मिशन की स्थितियों का पृथ्वी पर ही परीक्षण किया जाता है। इस प्रक्रिया में वैज्ञानिक उन स्थानों का चयन करते हैं, जिनका वातावरण किसी आकाशीय पिंड या अंतरिक्ष जैसी परिस्थितियों से मेल खाता हो। लेह में शुष्क और ठंडी जलवायु, ऊंचाई वाले स्थान और सीमित संसाधनों के साथ, यह स्थान अंतरिक्ष में अनुभव की जाने वाली चुनौतियों के अभ्यास के लिए आदर्श साबित हो रहा है। इस मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्री अलग-अलग परिस्थितियों में कार्य करेंगे और उन चुनौतियों से निपटने के उपाय सीखेंगे जो किसी ग्रह पर जीवन की संभावनाओं का मूल्यांकन करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
लेह को क्यों चुना गया एनालॉग मिशन के लिए?
ISRO ने लद्दाख के लेह को इस मिशन के लिए इसलिए चुना है क्योंकि यहां का वातावरण मंगल ग्रह और चांद की सतह के वातावरण से मेल खाता है। लेह की ऊंचाई, अत्यधिक ठंड, और शुष्क जलवायु में वैज्ञानिक अंतरिक्ष यात्रियों की मानसिक और शारीरिक क्षमताओं का परीक्षण कर रहे हैं। यहां अंतरिक्ष यात्रियों को सीमित संसाधनों के साथ जीने का अनुभव मिलेगा, जिससे भविष्य में अंतरिक्ष मिशन के दौरान वे विपरीत हालात में भी अपना मनोबल बनाए रख सकें।
अंतरिक्ष जीवन की तैयारी
इस मिशन का मुख्य उद्देश्य यह समझना है कि अंतरिक्ष यात्री, दूसरे ग्रह पर जीवन की खोज करते हुए किन चुनौतियों का सामना करेंगे। मिशन के अंतर्गत वैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न परिस्थितियों में यात्रियों के मानसिक और शारीरिक प्रतिक्रियाओं का आकलन किया जाएगा। इसके अलावा, भविष्य के चंद्रमा और मंगल अभियानों के लिए कई तकनीकी परीक्षण भी किए जाएंगे, जैसे कि नई तकनीकों, रोबोटिक उपकरणों, जीवन-निर्वाह प्रणाली, पावर जनरेशन, मोबाइलिटी और इंफ्रास्ट्रक्चर की जांच।
कौन-कौन हैं इस मिशन में शामिल?
इस एनालॉग स्पेस मिशन में इसरो के साथ ह्यूमन स्पेसफ्लाइट सेंटर, AAKA स्पेस स्टूडियो, लद्दाख विश्वविद्यालय, IIT बॉम्बे जैसी संस्थाओं का सहयोग शामिल है। इस मिशन को लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद का भी समर्थन प्राप्त है। इस मिशन में विभिन्न सरकारी एजेंसियों, विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों के वैज्ञानिकों को भी शामिल किया गया है। इन वैज्ञानिकों का उद्देश्य कठिन और प्रतिकूल परिस्थितियों में अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण देना और इस वातावरण में जीने के तौर-तरीकों का गहन अध्ययन करना है।
गगनयान मिशन की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण कदम
ISRO का यह एनालॉग स्पेस मिशन भविष्य के गगनयान मिशन की तैयारियों के लिए भी महत्वपूर्ण है। गगनयान के तहत भारत पहली बार मानव को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रहा है, ऐसे में इस तरह का अभ्यास मिशन बेहद जरूरी है। लेह में किया गया यह मिशन, गगनयान के साथ-साथ चंद्रमा और मंगल ग्रह के आगामी अभियानों के लिए भी अहम साबित होगा।
भारत की अंतरिक्ष यात्रा को नई ऊंचाई देने की कोशिश
इस मिशन से मिले आंकड़ों का विश्लेषण करके वैज्ञानिक यह जानने का प्रयास करेंगे कि अंतरिक्ष यात्रियों का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अंतरिक्ष की चुनौतियों का सामना करने के लिए कितना सक्षम है। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊंचाई तक पहुंचाने के उद्देश्य से यह एनालॉग स्पेस मिशन भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है। इसरो का यह कदम न केवल अंतरिक्ष विज्ञान में नई संभावनाओं को तलाशने का माध्यम बनेगा, बल्कि इससे भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने का सपना भी साकार होगा।
Read more: Ayodhya Deepotsav 2024: सीएम योगी ने खुद खींचा भगवान राम का रथ, तिलक कर किया भव्य दीपोत्सव का आगाज