RSS Ban Removed: केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के भाग लेने पर लगे 58 साल पुराने प्रतिबंध को हटा दिया है। हालांकि, इस बारे में आधिकारिक बयान अभी जारी नहीं किया गया है, लेकिन भाजपा (BJP) और कांग्रेस (Congress) दोनों ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में इस प्रतिबंध को हटाए जाने का दावा किया है।
राज्यों में पहले से हटा हुआ था प्रतिबंध
हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की सरकारें पहले ही सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस से जुड़े होने पर प्रतिबंध को हटा चुकी हैं। 30 नवंबर 1966 को केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया था। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने 9 जुलाई को इस प्रतिबंध को हटा दिया है।
भाजपा और कांग्रेस के तर्क
भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया पर कार्मिक मंत्रालय के आदेश का स्क्रीनशॉट साझा करते हुए पोस्ट किया, “58 साल पहले, 1966 में जारी असंवैधानिक आदेश, जिसमें सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया गया था, मोदी सरकार ने वापस ले लिया है।” उन्होंने इसे एक ऐतिहासिक कदम बताया।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर कहा, “सरदार पटेल ने गांधी जी की हत्या के बाद फरवरी 1948 में आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद अच्छे आचरण के आश्वासन पर प्रतिबंध हटा लिया गया था।” जयराम रमेश ने कहा कि 1966 में सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस गतिविधियों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया गया था। यह सही भी था। उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने नौ जुलाई 2024 को 58 साल पुराना प्रतिबंध हटा दिया, जो वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान भी लागू था।
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इतिहास का झरोखा
सरदार पटेल ने महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था। हालांकि, अच्छे आचरण के आश्वासन पर यह प्रतिबंध हटा लिया गया था। 1966 में इंदिरा गांधी की सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस और जमात-ए-इस्लामी की गतिविधियों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
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वर्तमान परिदृश्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के नेतृत्व वाली सरकार ने यह प्रतिबंध हटाकर एक बड़ा राजनीतिक फैसला लिया है। यह निर्णय भाजपा की विचारधारा और आरएसएस के साथ उनके संबंध को दर्शाता है। इससे पहले, राज्यों में इस प्रतिबंध को हटाया जा चुका है, लेकिन अब केंद्र सरकार द्वारा यह निर्णय राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया गया है। इस फैसले के कई पहलू हैं। एक तरफ, यह सरकारी कर्मचारियों को उनकी व्यक्तिगत विचारधारा और संगठनों में शामिल होने की स्वतंत्रता देता है। दूसरी तरफ, यह सवाल उठता है कि क्या यह निर्णय सरकारी सेवा की निष्पक्षता को प्रभावित करेगा।
सरकारी कर्मचारियों का किसी राजनीतिक या धार्मिक संगठन में शामिल होना उनकी निष्पक्षता पर सवाल खड़ा कर सकता है। केंद्र सरकार का यह निर्णय निश्चित रूप से राजनीतिक और सामाजिक बहस को जन्म देगा। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले समय में इस फैसले का क्या प्रभाव पड़ेगा और कैसे इसे समाज और राजनीति में स्वीकार किया जाएगा।