Ratan Tata Funeral: उद्योग जगत के दिग्गज और भारत के प्रतिष्ठित व्यक्तित्व रतन टाटा (Ratan Tata) के निधन के बाद उनकी अंत्येष्टि को लेकर पारसी समुदाय की प्राचीन और विशेष परंपराओं पर ध्यान केंद्रित हो रहा है। आपको बता दें कि पारसी धर्म के अनुयायी अपने विशिष्ट अंतिम संस्कार संस्कारों के लिए जाने जाते हैं, जिनमें “टावर्स ऑफ़ साइलेंस” में शव को गिद्धों के लिए छोड़ने की परंपरा प्रमुख है। हालाँकि, आधुनिक समय में इन परंपराओं के समक्ष कई चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं, जिनमें गिद्धों की घटती संख्या और पर्यावरणीय प्रभाव शामिल हैं।
पारसी रिवाजों के अनुसार नहीं होगा अंतिम संस्कार
रतन टाटा पारसी धर्म से संबंधित हैं, लेकिन उनका अंतिम संस्कार पारसी परंपरा के अनुसार नहीं होगा। बल्कि, उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से किया जाएगा। शवदाह विद्युत शवदाह गृह में होगा, और इससे पहले उनके लिए लगभग 45 मिनट तक प्रार्थना की जाएगी। अंतिम संस्कार से पहले उन्हें राज्य सरकार की ओर से गार्ड ऑफ ऑनर भी प्रदान किया जाएगा।
पारसी धर्म की अंत्येष्टि परंपरा
पारंपरिक पारसी मान्यता के अनुसार, मृत्यु के बाद शरीर को पवित्र आग या पृथ्वी से दूर रखना आवश्यक है, क्योंकि इन तत्वों को धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। पारसी धर्म के अनुसार, शव को अशुद्ध माना जाता है, इसलिए इसे दफनाने या जलाने की अनुमति नहीं दी जाती। इसके बजाय, शव को “टावर्स ऑफ़ साइलेंस” (Tower of Silence) में रखा जाता है, जहाँ गिद्ध शव को खाते हैं और अंततः हड्डियाँ एक केंद्रीय कुएँ में गिरा दी जाती हैं। यह प्रक्रिया पारसी मान्यता के अनुसार प्रकृति के साथ शरीर के समन्वय को सुनिश्चित करती है।
मुंबई में घटती गिद्धों की संख्या
मुंबई में गिद्धों की घटती आबादी इस पारंपरिक अंत्येष्टि प्रक्रिया के समक्ष एक बड़ी चुनौती बन गई है। गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट के कारण, कई पारसी परिवार अब इस परंपरा को निभाने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। इसी के चलते पारसी समुदाय आधुनिक तरीकों का सहारा ले रहा है, जैसे कि सौर सांद्रता का उपयोग, ताकि इस प्रक्रिया को प्रकृति के अनुकूल बनाया जा सके। पारसी धर्म के अनुयायियों के लिए दाह संस्कार हमेशा से विवादास्पद रहा है, क्योंकि वे अग्नि को पवित्र मानते हैं और उसे अपवित्र करने से बचने के पक्षधर हैं। पारसी धर्म के अनुसार, आग का इस्तेमाल पूजा और प्रार्थना के लिए होता है, और शव का अग्नि से संपर्क धर्म के मूल सिद्धांतों के खिलाफ जाता है।
परम्परा को लेकर मुद्दा पंहुचा था सुप्रीम कोर्ट
कोरोनाकाल के दौरान भी यह मुद्दा उठ चुका था। उस समय पारसी धर्म के गुरु चाहते थे कि शवों का अंतिम संस्कार इसी पद्धति से किया जाए, लेकिन यह कोविड नियमों के अनुरूप नहीं था। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि इस तरीके से संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाएगा, और पक्षियों में भी संक्रमण फैल सकता है। यह ममला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाया गया। अब पारसी समुदाय के कई लोग विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करा रहे हैं। इसी कारण रतन टाटा का अंतिम संस्कार भी बदली हुई परंपरा के अनुसार होगा।