Hathras stampede: उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले (Hathras stampede) के सिकंदराराऊ क्षेत्र में मंगलवार को एक सत्संग के दौरान मची भगदड़ के बाद सरकारी अस्पताल में हृदयविदारक दृश्य देखने को मिला। शवों को बर्फ की सिल्लियों पर रखा गया था जबकि पीड़ितों के परिजन विलाप करते हुए उन्हें घर ले जाने के लिए बूंदाबांदी के बीच इंतजार कर रहे थे। अधिकारियों ने पुष्टि की है कि भगदड़ में 122 लोगों की मौत हुई है, जिसमें 108 महिलाएं, सात बच्चे और पुरुष शामिल हैं। यह दुखद घटना पुलराई गांव में प्रवचनकर्ता भोले बाबा के सत्संग के दौरान हुई। भगदड़ दोपहर करीब 3.30 बजे मची, जब बाबा कार्यक्रम स्थल से निकल रहे थे। नजदीकी सिकंदराराऊ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) के बाहर कई लोग देर रात तक अपने लापता परिजनों की तलाश करते नजर आए।
भक्ति या अंधभक्ति
अब इसे भक्ति कहें या अंधभक्ति शायद अंधभक्ति कहना गलत न होगा। बाबा के पांव छूने की होड़ ने मौत का तांडव रच डाला। एक तरफ बाबा के पांव छू लेने की होड़ लगी हुई थी तो दूसरी तरफ सेवादारों की बंदिशें। लोग उनकी बंदिशें तोड़कर भागे और मौत की गोद में सो गए। कोई धक्के से गिरा तो कोई फिसलकर। किसी का सिर कुचला तो किसी की पीठ। कोई दलदल में जा गिरा तो वह दोबारा न उठ सका। भीड़ के बीच सांस लेना तक मुश्किल हो रहा था। इसी दौरान भगदड़ मच गई और हर तरफ लाशे ही लाशे बिछ गयी।
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पीड़ित परिजनों की व्यथा
कासगंज जिले के राजेश ने बताया कि वह अपनी मां को ढूंढ रहे थे जबकि शिवम अपनी बुआ की तलाश में थे। राजेश ने कहा, “मैंने एक समाचार चैनल पर अपनी मां की तस्वीर देखी और उन्हें पहचान लिया। वह हमारे गांव के दो दर्जन लोगों के साथ यहां सत्संग में आई थीं।” अंशु और पवन कुमार अपने लापता परिजन की तलाश में थे।
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डीएम ने कहा- माँ को घर ले जाओ
अंशु ने बताया कि उनके चाचा पहली बार सत्संग में आए थे और अभी तक घर नहीं लौटे थे। मीना देवी ने अपनी मां को खोने का दुख व्यक्त करते हुए कहा, “अगर उस दिन बूंदाबांदी न हो रही होती, तो मैं भी अपनी मां के साथ जाती।” विनोद कुमार सूर्यवंशी ने बताया कि उन्होंने अपनी 72 वर्षीय मौसी को खो दिया, जबकि उनकी मां बच गईं।
जिला अस्पताल में कई शव रखे गए हैं, जबकि कुछ शवों को एटा जिले के सरकारी अस्पताल में भेजा गया है। राजेश ने कहा, “शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिल रही है।” पीड़ितों ने आरोप लगाया है कि भगदड़ समागम स्थल पर नहीं, बल्कि सड़क पर मची थी। उन्होंने पुलिस प्रशासन को दोषी ठहराया और सरकार से दोषियों पर कार्रवाई की मांग की। मृतका के बेटे ने आरोप लगाया कि पुलिस ने धक्का दिया, जब पूछा गया कि मां की लाश का क्या करें तो डीएम ने कहा, “घर ले जाओ।”
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आरएसएस और बजरंग दल ने की मदद
आरएसएस और बजरंग दल के कार्यकर्ता पीड़ितों के परिजनों की मदद कर रहे हैं। बजरंग दल के अनिकेत ने बताया, “आज हमने यहां जो शव देखे हैं, उनके लिए एंबुलेंस की संख्या अपर्याप्त थी।” सिकंदराराऊ ट्रॉमा सेंटर के बाहर दिल दहला देने वाले दृश्य देखने को मिले, जहां मृत या बेहोश पीड़ितों को एंबुलेंस, ट्रक और कारों में लाया गया।
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अस्पताल में चिकित्सा सुविधाओं की कमी
अस्पताल के बाहर लगभग 100-200 लोग हताहत हुए हैं और अस्पताल में केवल एक डॉक्टर तैनात है। ऑक्सीजन की कोई उचित सुविधा नहीं थी। कुछ लोग अभी भी सांस ले रहे हैं, लेकिन उचित उपचार की सुविधा ही नहीं है। इतने बड़े हादसे के बाद भी चिकित्सा सुविधा की हालत खस्ता है। हाथरस और एटा के पोस्टमार्टम हाउसों में शवों की भरमार हो गई, जिससे प्रशासन पर दबाव बढ़ गया। लोगों के शव रखने तक की जगह नहीं मिल रही।
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