Jammu and Kashmir terror attack: रविवार की शाम जम्मू-कश्मीर के गंदेरबल जिले (Ganderbal Terror Attack) में आतंकियों ने एक बार फिर से प्रवासी मजदूरों को निशाना बनाकर हमला किया। यह घटना सोनमर्ग के गगनगीर इलाके में हुई, जहां 7 मजदूरों को गोलियों से घायल कर दिया गया। इस क्रूर घटना के पीछे टीआरएफ यानी ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’ नामक आतंकवादी संगठन का हाथ होने की बात सामने आई है। यह संगठन पहले भी कश्मीर घाटी में आम नागरिकों और सुरक्षा बलों पर हमलों के लिए कुख्यात रहा है।
क्या है ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ)?
टीआरएफ एक आतंकवादी संगठन (Terrorist organizations) है जो जम्मू और कश्मीर में उग्रवादी गतिविधियों में शामिल है। इसे एक स्वदेशी प्रतिरोध आंदोलन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन विशेषज्ञों और सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, इसका वास्तविक गठन पाकिस्तान स्थित जिहादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने किया है। टीआरएफ को लश्कर की एक शाखा के रूप में देखा जाता है, जो आम नागरिकों, सुरक्षा बलों, और स्थानीय नेताओं को निशाना बनाने के लिए जाना जाता है। प्रवासी मजदूरों, कश्मीरी पंडितों, सिखों और हिंदुओं पर इसके हमलों की सूची लंबी है।
कैसे हुई टीआरएफ की स्थापना?
टीआरएफ की स्थापना अक्टूबर 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 (Article 370) हटाए जाने और राज्य को विशेष दर्जा समाप्त किए जाने के कुछ महीनों बाद हुई। इस आतंकवादी संगठन ने खुद को एक ‘स्वदेशी’ प्रतिरोध आंदोलन के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन इसके कार्य और हमले इसे एक उग्रवादी संगठन साबित करते हैं। टीआरएफ का नाम अप्रैल 2020 में उस समय चर्चा में आया, जब कुपवाड़ा के केरन सेक्टर में भारतीय सुरक्षा बलों और टीआरएफ के आतंकियों के बीच मुठभेड़ हुई। इस मुठभेड़ में 5 भारतीय पैराकमांडो और 5 आतंकवादी मारे गए थे। इसके बाद से टीआरएफ का नाम जम्मू-कश्मीर में सक्रिय उग्रवादी संगठनों में प्रमुख हो गया।
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टीआरएफ के हमलों से फैली आतंक की लहर
टीआरएफ ने कई निर्दोष नागरिकों और सुरक्षा बलों को निशाना बनाया है। इसके हमले कश्मीरी पंडितों, सिखों, और मुस्लिमों पर हुए हैं, जिसमें आम नागरिकों की हत्या और सरकारी कर्मचारियों पर हमले शामिल हैं। इस संगठन का उद्देश्य कश्मीर में डर और अशांति फैलाना है। खासकर अल्पसंख्यक समुदायों को धमकाने और उनमें भय पैदा करने के लिए टीआरएफ ने लगातार हमले किए हैं। इसने न केवल स्थानीय समुदायों को, बल्कि बाहरी प्रवासी मजदूरों, सरकारी कर्मचारियों और व्यापारियों को भी अपनी हिंसा का शिकार बनाया है।
सुरक्षा बलों के लिए बढ़ती चुनौती
टीआरएफ अब जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी संगठनों में सबसे प्रमुख हो गया है। इसके हमले और गतिविधियां सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ा सिरदर्द बन गई हैं। इस आतंकवादी संगठन को भारत सरकार ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत प्रतिबंधित किया हुआ है। टीआरएफ के प्रमुख कमांडरों में से एक, शेख सज्जाद गुल, को सरकार ने यूएपीए की चौथी अनुसूची के तहत आतंकवादी घोषित किया है। गुल पर 2018 में कश्मीरी पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या की साजिश रचने का आरोप है।
सामाजिक ताने-बाने पर पड़ रहा प्रभाव
टीआरएफ की गतिविधियां न केवल आतंकवादी खतरे के रूप में बल्कि कश्मीर के सामाजिक ताने-बाने को भी प्रभावित करने वाली रही हैं। इस संगठन ने विशेष तौर पर जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यक सिख समुदाय और प्रवासी मजदूरों को निशाना बनाया है। जनवरी 2023 में, टीआरएफ ने विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) के रूप में काम कर रहे सिख युवाओं को धमकी दी थी, और उन्हें ‘आरएसएस एजेंट’ करार देकर उन्हें मारने की धमकी दी थी।
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सोशल मीडिया का हो रहा इस्तेमाल
टीआरएफ ने अपनी विचारधारा और आतंक फैलाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग किया है। वे वीडियो और पोस्टर जारी करके जम्मू-कश्मीर के युवाओं को भड़काने और उन्हें आतंकवादी गतिविधियों में शामिल करने का प्रयास कर रहे हैं। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य घाटी में उथल-पुथल पैदा करना और आम नागरिकों के बीच डर फैलाना है।
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सुरक्षा बलों की रणनीति
टीआरएफ की बढ़ती गतिविधियों को देखते हुए, सुरक्षा बलों ने अपनी रणनीति को और सख्त किया है। सीमाओं पर चौकसी बढ़ा दी गई है और आतंकवादियों की घुसपैठ को रोकने के लिए कठोर कदम उठाए जा रहे हैं। हालांकि, टीआरएफ जैसे आतंकवादी संगठन अभी भी घाटी में सक्रिय हैं और लगातार हमले करने की कोशिश कर रहे हैं, जो सुरक्षा बलों के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। जम्मू-कश्मीर में टीआरएफ जैसे आतंकवादी संगठनों की गतिविधियां न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी प्रभावित करती हैं। टीआरएफ का उभार और इसके द्वारा किए जा रहे हमले स्पष्ट करते हैं कि घाटी में शांति और स्थिरता कायम करने के लिए सुरक्षा बलों को सतर्क और सक्रिय रहना होगा।