Badaun Lok Sabha Seat : ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया। जाने क्यूं आज तेरे नाम पे रोना आया जी हां बदायूं का नाम आते ही शकील बदायूंनी याद आ जाते हैं। और उनकी नज्में भी। दरअसल पश्चिमी यूपी के प्रमुख लोकसभा सीटों में से एक बदायूं लोकसभा सीट कई मायनों में खूब चर्चित रहा है। जहां सपा अपने गढ़ को बचाने के लिए शिवपाल यादव को चुनावी मैदान में उतार दिया है तो बीजेपी ने भी कमर कस ली है। वहीं इस बार का रण बेहद ही दिलचस्प होने वाला है। ऐसे में नजर डालते हैं इस सीट के इतिहास पर गंगा और रामगंगा नदी के बीच बसा बदायूं संसदीय क्षेत्र छोटे सरकार और बड़े सरकार की प्रसिद्ध दरगाह की वजह से पूरी दुनिया में जाना जाता है। बदायूं ऐतिहासिक और धार्मिक शहर से मशहूर है।
यह रोहिलखंड में मध्य में होने की वजह से इसके दिल कहलाता है। ज़ॉर्ज स्मिथ के अनुसार बदायूं का नाम अहीर राजकुमार बुद्ध के नाम रखा गया था। बदायूं संसदीय क्षेत्र में इस बार के चुनाव में राजनीति गरमाई हुई है। समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर धर्मेंद्र यादव को चुनावी मैदान में उतार दिया है। बदायूं को समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता रहा है।
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सियासी समीकरण किस के साथ?
बदायूं में यादव और मुस्मिल वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है। यही वजह है कि मोदी लहर में भी सपा ने 80 में से 5 सीटों पर साइकिल दौड़ाई थी, उनमें से एक बदायू भी थी। समाजवादी पार्टी का इस सीट पर 1996 से लगातार कब्जा रहा है। सलीम शेरवानी इस सीट से सबसे ज्यादाबार सांसद चुने गए…
वहीं इस बारसपा ने बदायूं से शिवपाल सिंह को मैदान में उतार कर सबको चौंका दिया है। हालांकि,, सपा ने जब पहली लिस्ट जारी की थी,,तब बदायूं से धर्मेंद्र यादव उम्मीदवार थे लेकिन जब तीसरी लिस्ट आई तो,,सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया क्योंकि,,इस लिस्ट में अखिलेश ने भाई धर्मेंद्र यादव की जगह चाचा शिवपाल यादव को बदायूं की जिम्मेदारी सौंप दी। शिवपाल यादव के मैदान में उतरने से बदायूं सीट को जीत पाना बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती होगी।
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वीवीआईपी सीट का पूरा हाल-हिसाब
बदायूं में 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता बदन सिंह विजयी हुए और बदायूं के पहले सांसद बने अगले चुनाव में भी कांग्रेस ने ही जीत हासिल की 1962 के चुनाव में भारतीय जन संघ ने इस सीट पर कब्जा किया और अगले चुनाव में भी जनसंघ का कब्जा रहा। 1971 में एक बार फिर कांग्रेस ने वापसी की लेकिन अगले चुनाव में अपन सीट नहीं बचा पाई 1977 में भारतीय लोकदल इस सीट पर विजयी रही 1980 और 1984 में यह सीट कांग्रेस की झोली में आयी, लेकिन 1989 में बदायूं की जनता ने जनता दल के नेता शरद यादव को सांसद चुना1991 के बीजेपी ने यहां अपना खाता खोला लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर स्वामी चिन्मयानंद ने जीत हासिल की भाजपा की बदायूं में यह पहली और आखिरी जीत थी।
1996 से लेकर अब तक इस सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है। सलीम इकबाल शेरवानी 1996 से 2009 तक लगातार चार बार इस सीट से जीते और उनके बाद मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव का इस सीट से दो बार सांसद रहे। 2019 के चुनाव में भाजपा ने इस सीट से छीन ली। यहां से वर्तमान में डॉ. संघमित्रा मौर्य भाजपा से सांसद हैं।
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2019 लोकसभा चुनाव का परिणाम
साल- 2014
- प्रत्याशी वोट वोट%
- धर्मेंद्र यादव (सपा) 498008 48.5%
- वागीश पाठक (बीजेपी) 331807 32.3%
साल- 2019
- प्रत्याशी वोट वोट%
- डॉ. संघमित्रा मौर्य (बीजेपी) 510343 47.7%
- धर्मेंद्र यादव (सपा) 491959 46%
लगभग 19 लाख वोटरों वाले बदायूं में सबसे ज्यादा वोटर यादव बिरादरी के हैं, इनकी संख्या करीब चार लाख बताई जाती है, इसके अलावा तीन लाख 75 हजार मुस्लिम वोटर भी यहां चुनाव में राजनीतिक दलों का खेल बनाने और बिगाड़ने में अहम भूमिता निभाते हैं, इसके अलावा 2 लाख 28 हजार गैर यादव ओबीसी वोटर, एक लाख 75 हजार अनुसूचित जाति जबकि1 लाख 25 हजार वैश्य और ब्राह्मण वोटर हैं।
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बदायूं का ‘जाति समीकरण’
- यादव- 4 लाख लगभग
- मुस्लिम- 3.75 लाख लगभग
- वैश्य- 1.25 लाख लगभग
- ब्राह्मण- 1.25 लाख लगभग
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कौन इस सीट पर मारता है बाजी?
बता दें कि सपा का वोटर कहे जाने वाले यादव और मुस्लिम वोटरों ने 2019 में समाजवादी पार्टी का समीकरण ही बिगाड़ कर रख दिया था…इसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिला और संघमित्रा मौर्य सांसद बनीं जहां सपा अपनी सीट को फिर से वापस पाने की जद्दोजहद में जुट गई है और अखाड़े में शिवपाल सिंह यादव को उतार दिया है…तो बीजेपी ने भी तैयारी पूरजोर कर रखी है। देखना दिलचस्प होगा कि कौन इस सीट पर बाजी मारता है।