HIGH COURT NEWS : हाईकोर्ट ने रेप पीड़िताओं से जुड़े पक्ष में एक एहम फैसला सुनाया है। रेप के बाद महिलाओं के साथ टू फिंगर टेस्ट’ किया जाता था, जिससे महिलाओं को दोबारा से बुरे दौर से गुजरना पड़ता है, इस वजह से मद्रास हाईकोर्ट ने टू फिंगर टेस्ट को लेकर बड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि टू फिंगर टेस्ट करने वाले डॉक्टर भी गलत काम करने के दोषी होंगे, साथ ही जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमा कोहली की बेंच ने इस पर अफसोस जताते हुए बेंच ने कहा है कि दुर्भाग्य कि बात यह की आज भी यह टेस्ट रेप पीड़िताओं के साथ करया जा रहा है।
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जानें क्या होता है टू फिंगर टेस्ट..
बता दें कि टू फिंगर टेस्ट में पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में एक या दो उंगली डालकर उसकी वर्जिनिटी टेस्ट की जाती है।जिसको कर के यह पता लगाया जाता है कि महिला के साथ शारीरिक संबंध बने थे या नहीं। अगर प्राइवेट पार्ट में आसानी से दोनों उंगलियां चली जाती हैं तो महिला को सेक्चुली एक्टिव माना जाता है और इसे ही महिला के वर्जिन या वर्जिन न होने का भी सबूत मान लिया जाता है।
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मद्रास हाईकोर्ट ने अप्रैल 2022 में लगाया था प्रतिबंध..
वहीं मद्रास हाईकोर्ट ने अप्रैल 2022 में ही ‘टू फिंगर टेस्ट’ पर बैन लगाने को लेकर निर्देश जारी किया था। बता दें कि उच्च न्यायालय ने टू फिंगर टेस्ट’ के लेकर कहा की कहा कि इस तरह की जांच रेप पीड़िताओं की निजता, शारीरिक और मानसिक अखंडता और गरिमा का उल्लंघन करती है, इसके साथ उन्होनें मद्रास हाईकोर्ट की चेतावनी से पूर्व जिन महिलाओं को यौन शोषण का सामना करना पड़ता था, उनकी जांच के लिए कई स्थानों पर डॉक्टरों द्वारा ‘टू फिंगर टेस्ट’ किया जाता था, जिससे महिलाओं को दोबारा बुरे दौर से गुजरना पड़ता था, जिसके बाद एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसपर प्रतिबंध लगा दिया था।
रेप पीड़िताओं का ‘टू फिंगर टेस्ट’ न किया जाए..
मद्रास हाईकोर्ट दौरा टू फिंगर टेस्ट’ पर बैन लगाने के बाद भी कई जगहों पर अभी भी डॉक्टरों को मद्रास हाईकोर्ट ने कड़ी चेतावनी देते हुए आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के विपरीत इस तरह का टेस्ट डॉक्टर यदि करते हैं तो उन्हें भी गलत काम करने का दोषी माना जाएगा। बता दें कि अक्टूबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने रेप पीड़िताओं के ‘टू फिंगर टेस्ट’ पर रोक लगा दी थी।इसके साथ ही कोर्ट ने ऐसा करने वाले डॉक्टरों को भी कड़ी चेतावनी दी थी। जिसके बाद शीर्ष न्यायालय ने पाया था कि इस तरह की जांच का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और इससे रेप पीड़िता को बहुत सारे दिक्कतों को सामना करना पड़ता है। इस वजह से सुप्रीम कोर्ट ने स्वास्थ्य मंत्रालय को भी यह सुनिश्चित करने को कहा कि रेप पीड़िताओं का ‘टू फिंगर टेस्ट’ न किया जाए।