New Delhi: आम आदमी पार्टी (AAP) ने महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव न लड़ने का फैसला कर दिल्ली पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। इससे पहले हरियाणा विधानसभा चुनाव में ‘आप’ ने कांग्रेस के साथ गठबंधन की कोशिश की थी, लेकिन यह गठबंधन नहीं हो सका। इसके बाद ‘आप’ ने हरियाणा में अकेले चुनाव लड़ा, मगर उसे करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। अब दिल्ली में पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल कांग्रेस से गठबंधन किए बिना चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट गए हैं।
कांग्रेस से ‘आप’ की बढ़ती दूरियां
हरियाणा चुनाव के बाद से ही ‘आप’ और कांग्रेस के बीच बढ़ती दूरियां साफ दिखाई दे रही हैं। हरियाणा चुनाव के दौरान सीट बंटवारे को लेकर कई दौर की बातचीत हुई थी, लेकिन हरियाणा कांग्रेस के नेताओं की आपत्ति के कारण गठबंधन नहीं बन सका। सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी की इच्छा के बावजूद हरियाणा कांग्रेस इकाई इस गठबंधन के खिलाफ थी। अब ऐसा प्रतीत होता है कि केजरीवाल ने भी हरियाणा की तरह दिल्ली में कांग्रेस से किनारा करने का मन बना लिया है।
केजरीवाल की नई रणनीति
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, केजरीवाल अब एक ऐसे नेता के रूप में खुद को स्थापित करना चाहते हैं, जिनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर पर हो। यही कारण है कि ‘आप’ ने महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव न लड़ने का फैसला किया है, लेकिन केजरीवाल यहां चुनाव प्रचार जरूर करेंगे। इससे उन्हें एक राष्ट्रीय नेता के रूप में छवि निखारने का मौका मिलेगा। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और सपा मुखिया अखिलेश यादव जैसे विपक्षी नेता अपने-अपने राज्यों के विधानसभा उपचुनाव में व्यस्त हैं, ऐसे में केजरीवाल के पास यह बड़ा अवसर है।
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दिल्ली में कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावना अब खत्म
दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और ‘आप’ के बीच गठबंधन की संभावना अब बेहद कम दिखाई दे रही है। माना जा रहा है कि केजरीवाल जल्द ही दिल्ली में कांग्रेस के साथ गठबंधन न करने का आधिकारिक ऐलान कर सकते हैं। दिल्ली में कांग्रेस की मौजूदा हालत को देखते हुए केजरीवाल का यह कदम ‘आप’ की स्थिति को मजबूत करने वाला साबित हो सकता है। पिछले 10 वर्षों में दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस कोई सीट नहीं जीत पाई है।
हरियाणा चुनाव से मिला ‘आप’ को सबक
हरियाणा चुनाव के बाद कांग्रेस से ‘आप’ की दूरी बढ़ गई है। हरियाणा में कांग्रेस की ओर से किए गए व्यवहार के बाद से ही ‘आप’ अब कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से कतराती नजर आ रही है। इसके अलावा, पश्चिम बंगाल में टीएमसी और उत्तर प्रदेश में सपा जैसे दलों ने भी कांग्रेस के साथ अलगाव का रास्ता अपनाया है। टीएमसी ने पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को केवल दो सीटें देने का प्रस्ताव रखा, जबकि सपा ने उपचुनाव में कांग्रेस को मात्र दो सीटों का ही ऑफर दिया था।
महाराष्ट्र में कांग्रेस को ‘बड़े भाई’ का दर्जा देने को तैयार नहीं
महाराष्ट्र में कांग्रेस ने सबसे अधिक 13 सीटों पर जीत दर्ज की थी, मगर इसके बावजूद शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी ने उसे ‘बड़े भाई’ का दर्जा देने से इनकार कर दिया। इस बात से कांग्रेस के प्रति सहयोगी दलों की सोच का साफ संकेत मिलता है। महाराष्ट्र में कांग्रेस को सहयोगी दलों के साथ सख्त सौदेबाजी का सामना करना पड़ा।
दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ने की क्षमता का किया दावा
‘आप’ के प्रवक्ताओं का कहना है कि पार्टी दिल्ली में अकेले भाजपा से मुकाबला करने में पूरी तरह सक्षम है। प्रियंका कक्कड़, ‘आप’ की प्रवक्ता, ने हाल ही में कहा था कि पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी। ‘आप’ का मानना है कि दिल्ली में कांग्रेस की मौजूदा स्थिति कमजोर है, और ऐसे में पार्टी के साथ गठबंधन का कोई लाभ नहीं है।
कांग्रेस के लिए बढ़ेंगी दिल्ली में मुश्किलें
‘आप’ और कांग्रेस के बीच गठबंधन न होने से कांग्रेस के लिए दिल्ली की स्थिति और मुश्किल हो सकती है। ‘आप’ केजरीवाल की अगुवाई में अपनी रणनीति पर काम कर रही है और संभावना है कि महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद दिल्ली चुनाव को लेकर ‘आप’ और कांग्रेस के बीच दूरियां और साफ हो जाएंगी।
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