Shivaji Maharaj Waghnakh: छत्रपति शिवाजी का ‘वाघनख’ (Chhatrapati Shivaji’s ‘Waghnakh’), जिसे ब्रिटेन के विक्टोरिया एंड अल्बर्ट म्यूजियम (Chhatrapati Shivaji Museum) से महाराष्ट्र लाया गया, अब सतारा के छत्रपति शिवाजी संग्रहालय में प्रदर्शनी के लिए रखा गया है. वाघनख (Waghnakh) को राज्य के अन्य संग्रहालयों में भी प्रदर्शनी के लिए योजना बनाई गई है. ‘वाघनख’ का मतलब ‘बाघ का पंजा’ होता है. यह लोहे का खंजर जैसा हथियार होता है, जो मध्यकाल में भारत समेत पूरे उपमहाद्वीप में इस्तेमाल किया जाता था.
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वाघनख का डिजाइन
बताते चले कि वाघनख (Waghnakh) को इस तरह से डिजाइन किया गया था कि यह आसानी से हाथ की हथेली में फिट हो सके और हथेली के नीचे छिप जाए. इसमें चार-पांच नुकीले लोहे के ब्लेड होते हैं और यह एक दस्ताने जैसी पट्टी से जुड़ा होता है. यह इतना खतरनाक होता था कि एक झटके में इससे किसी की जान ली जा सकती थी. छत्रपति शिवाजी ने इसी वाघनख से अफजल खान को मौत के घाट उतारा था.
कौन था अफजल खान ?
अफजल खान का असली नाम अब्दुल्ला भटारी था. वह बीजापुर के नवाब आदिल शाह और बड़ी रानी का दाहिना हाथ था. 1656 में जब बीजापुर पर औरंगजेब की सेना ने हमला किया, तो उससे निपटने की जिम्मेदारी अफजल खान को मिली. उसने कई लड़ाइयों में जीत हासिल की थी. जदुनाथ सरकार अपनी किताब ‘शिवाजी एंड हिज टाइम्स’ में लिखते हैं कि नवाब मोहम्मद आदिल शाह की मौत के बाद जब बीजापुर की गद्दी के लिए लड़ाई शुरू हुई, तो अफजल खान बड़ी ताकत के तौर पर उभरा. उसने बड़ी बेगम के कहने पर एक-एक करके तीन जनरलों को मौत के घाट उतार दिया. इससे पहले वह सिरा के राजा कस्तूरी रंगा को शांति समझौते के बहाने मार चुका था.
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शाहजी राजे भोंसले और अफजल खान के बीच अनबन
छत्रपति शिवाजी और अफजल खान की दुश्मनी शिवाजी के पिता शाहजी राजे भोंसले से शुरू होती है. शाहजी राजे भोंसले बीजापुर सल्तनत के लिए काम करते थे. बाद में शाहजी राजे भोंसले और अफजल खान के बीच अनबन हुई, तो शाहजी को जंजीर में जकड़ कर बीजापुर लाया गया। 1654 में शिवाजी के बड़े भाई संभाजी की हत्या में भी अफजल खान का हाथ था. जब छत्रपति शिवाजी गद्दी पर बैठे, तो बीजापुर में उनकी गतिविधियां बढ़ गईं। इससे बीजापुर की बड़ी बेगम घबरा गईं. उन्होंने पूछा कि क्या कोई शिवाजी को पकड़ सकता है? डेनिस किनकेड अपनी किताब ‘शिवाजी द ग्रैंड रेबेल’ में लिखते हैं कि अफजल खान ने खुले दरबार में ऐलान किया कि वह शिवाजी को पिंजरे में बंद करके बीजापुर लाएगा.
शिवाजी को पकड़ने के लिए लोहे का पिंजरा भी बनवाया
अफजल खान ने शिवाजी को पकड़ने के लिए दोस्ती का बहाना बनाया. अप्रैल 1659 में 10,000 सैनिकों को लेकर अपने अभियान के लिए निकल पड़ा और रास्ते में कई मंदिरों को तोड़ा. शिवाजी को अफजल खान की हर हरकत की खबर मिल रही थी. जब अफजल खान पूना की तरफ बढ़ा, जो शिवाजी का गढ़ था, तो शिवाजी जावली चले गए। अफजल खान ने शिवाजी को पकड़ने के लिए लोहे का पिंजरा भी बनवा लिया था.
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अफजल खान ने शिवाजी को संदेश भिजवाया
अफजल खान ने अपने दूत कृष्णाजी भास्कर कुलकर्णी के जरिए शिवाजी को संदेश भिजवाया कि तुम्हारे पिता मेरे अच्छे दोस्त थे. मैं तुम्हें दक्षिणी कोंकण की जमीन और जागीर दिलवा दूंगा. जिन किलों पर कब्जा किया है, उन्हें भी दिलवा दूंगा. अगर बादशाह से न मिलना चाहो, तो भी कोई बात नहीं. शिवाजी ने कृष्णाजी से उगलवाया कि अफजल खान की योजना क्या है और फिर अपने दूत पंताजी गोपीनाथ के हाथ जवाब भिजवाया. लिखा- ”आपने जो दयालुता दिखाई है, उसके लिए हमेशा आभारी रहूंगा. आप जावली आइये और यहां के जंगल का वैभव देखिए। इससे आपके प्रति मेरी शंका भी दूर होगी और मेरा सम्मान भी बढ़ेगा. मैं आपको अपनी तलवार भी भेंट करूंगा…”
शिवाजी के जाल में फंसा अफजल खान
अफजल खान शिवाजी के जाल में फंस गया. उसने जावली जाने का फैसला कर लिया. 10 नवंबर 1659 को प्रतापगढ़ किले के नीचे एक पहाड़ी पर अफजल खान और शिवाजी की मुलाकात तय हुई. योजना के अनुसार, अफजल खान पालकी में किले के नीचे लगे शामियाने में अपने कुछ करीबी सैनिकों के साथ पहुंचा. शिवाजी को भी चुनिंदा सैनिकों को लाने की अनुमति थी. वैभव पुरंदरे अपनी किताब ”शिवाजी: इंडियाज ग्रेट वॉरियर किंग” में लिखते हैं कि शिवाजी ने मां भवानी की पूजा के बाद सफेद पोशाक पहनी, उसके नीचे लोहे का बख्तर, सिर की रक्षा के लिए पगड़ी के नीचे लोहे की टोपी, दाहिने हाथ की आस्तीन के नीचे ‘बिछुआ’ और बाएं हाथ में ‘वाघनख’ रखा ताकि किसी की नजर न पड़े.
शिवाजी और अफजल खान की मुलाकात
जब शिवाजी और अफजल खान की मुलाकात हुई, तो अफजल खान ने शिवाजी को गले लगाने के बहाने हमला करने की कोशिश की. लेकिन शिवाजी ने अपने वाघनख से अफजल खान पर हमला कर दिया और उसे मौत के घाट उतार दिया। अफजल खान का निधन बीजापुर के लिए एक बड़ा झटका था और यह घटना छत्रपति शिवाजी की वीरता और रणनीतिक कौशल का प्रतीक बन गई.
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