Madhushravani Pooja: मधुश्रावणी पर्व जिसकी बिहार के मिथिलांचल में बहुत मान्यता हैं माना जाता हैं वर्त पति की लम्बी आयु के लिए रखा जाता हैं जिससे नवविवाहिता सावन के पावन माह में रखती हैं। आपको बता दे कि इस बार का मधुश्रावणी पर्व 7 जुलाई शुरू हुआ है, इस पर्व को नाग देवता के पूजन के साथ शुरू किया जाता हैं। बिहार के मिथिलांचल में ये पर्व नव विवाहित महिलाओं के लिए खास माना गया है। तो आइए जानते है मधुश्रावणी पर्व की पूजा की विधि-रस्में…
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बिहार के मिथिलांचल में नव विवाहित महिलाएं मधुश्रावणी में ससुराल से आये रंग-बिरंगे कपड़े और आभूषण पहनकर नाग देवता की पूजा-अर्चना करती है।
मधुश्रावणी व्रत की पूजा सावन महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से शुरू होकर शुक्ल पक्ष तृतीया को संपन्न होती हैं। इस व्रत में महिलाए मुख्य रूप से सावन माह के पूजनीय गौरी और भगवान शिव की पूजा करती है।
नवविवाहिताएं इस व्रत के दौरान आरवा भोजन ग्रहण कर पूजन आरंभ करती हैं साथ ही यह व्रत नव विवाहिता बड़े ही धूमधाम से करती हैं।
मधुश्रावणी का यह पर्व को लेकर मान्यता है कि यह व्रत पति के लंबी उम्र के लिए किए जाने व्रत वाला धैर्य और त्याग का प्रतीक है।
जानें कब से कब तक व्रत
आपको बता दे कि इस बार मधुश्रावणी पर्व 44 दिनों तक का होगा, ये पर्व 7 जुलाई यानि की शुक्रवार से शुरू हुआ और 19 अगस्त को संपन्न होगा। वहीं 18 जुलाई से मलमास शुरू हुआ, जिसका समापन 16 अगस्त को होगा।
मधुश्रावणी को पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है। मलमास के दौरान नवविवाहिताएं व्रत के दौरान सेंधा नमक का उपयोग कर सकती है।
इस व्रत को नव विवाहिता अपने मायके में करती हैं, साथ ही कुछ अपनी क्षमता अनुसार बिना नमक खाए रखती हैं और जमीन पर सोती हैं।
बता दे कि मधुश्रावणी पर्व व्रत के आठवें और नौवें दिन प्रसाद के रूप में खीर, रसगुल्ला का भोग लगाया जाता है।
इस पूजा मे बुजुर्ग महिलाएं ही पूजा करने का विधि-विधान और तौर- तरीके बताती हैं, इसके साथ ही व्रत रखी हुई महिलाओं को कथा भी घर की बुजुर्ग महिलाएं ही कहती हैं या सुनाती हैं।