Input- Mayuri
Lifestyle: पीरियड्स और महिलाएं एक दूसरे के बिन अधूरे हैं..हम भले कह लें कि ये प्रोसेस बड़ा कष्टकारी है मगर एक महिला के जीवन में इसकी क्या अहमियत है ये तो सभी जानते हैं . पीरियड्स एक ऐसा विषय है, जिस पर अब खुलकर बात होने लगी है…. इसीलिए इसकी समस्याएं भी उभरकर सामने आने लगी हैं. पीरियड्स एख एक सामान्य प्रक्रिया है जिससे हर महिला को गुजरना पड़ता है, लेकिन बाजार ने इसे अब बखूबी भुना लिया है….
मार्केट में सैनिटरी पैड्स कंपनियों की बहार है… कोई दाग न लगने तो कोई लंबे समय तक टिके रहने का दावा करता है…महिलाएं भी तरह तरह से पैड्स यूज करती है …लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि ये पैड्स जाते कहां है ….. क्या आप यकीन करेंगे कि दुनिया के लिए सैनिटरी पैड्स का कचरा एक समस्या बन चुका है…. न केवल सैनिटरी पैड्स बल्कि बच्चों के डायपर भी सेहत और पर्यावरण, दोनों के लिए चिंता का सबब बने हुए हैं..
ये जानना है जरुरी
पीरियड्स एक ऐसा टॉपिक है जो आज भी इस देश में एक बीमारी की तरह गिना जाता है .. भारत में महिलाओं को इतनी जागरूकता के बाद भी पीरियड के दिनों अपवित्र माना जाता है . हम आज भी पीरियड्स को छुपाने पर फोकस कर रहे हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया में पीरियड् को लेकर क्या चल रहा है..
आप जो सोच भी नहीं सकते पीरियड्स वो कर रहे हैं…क्या आप सोच सकते हैं एक महिला का 1 बार का पीरियड लापरवाही की वजह से प्रकृति को कितना नुकसान पहुंचा रहा है….
आज माहावारी के दिनों में इस्तेमाल करने के लिए बहुत सी इको फ्रेंडली चीजें आ चुकी हैं ….फिर भी आज भी दुनिया भर की 80 फीसदी महिलाएं प्रॉकॉशन के लिए सैनेटरी पैड्स का इस्तेमाल करती है ..लेकिन क्या आप जानते है एक बार यूज करने के बाद इन पैड्स का क्या होता है …..यकीनन इस बारे में आपने ध्यान ही नही दिया होगा..
आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारे देश में हर साल 1200 करोड़ सैनिटरी पैड्स का कूड़ा निकलता है जो लगभग 1,13,000 टन है….अब आप अंदाजा लगा सकते है कि दुनिया में ये कूड़ा कितना होगा ….
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सैनिटरी पैड पर्यावरण को पहुंचाता है नुकसान
कुछ आकड़ो पर नजर डालें तो 2021 में 1230 करोड़ सैनिटरी पैड्स कूड़ेदान में फेंके गए..यही हाल डायपर्स का भी है एक सैनिटरी पैड पर्यावरण को 4 प्लास्टिक बैग के बराबर नुकसान पहुंचाता है….सैनिटरी पैड मिट्टी में दबा दिए जाएं तो इनमें मौजूद केमिकल्स मिट्टी के सूक्ष्म जीवों को खत्म करने लगते हैं जिससे हरियाली खत्म होती है।
वहीं, ज्यादातर सैनिटरी पैड्स में ग्लू और सुपर एब्जॉर्बेंट पॉलिमर (SAP) होते हैं, जिन्हें नष्ट होने में 500 से 800 साल तक लग जाते हैं…इतना ही नहीं यूरोपियन कमीशन के अनुसार कई लड़कियां सैनिटरी पैड्स को गलत तरीके से टाइलेट में फ्लश कर देती हैं जिससे प्लास्टिक वेस्ट बढ़ रहा है और इसी वजह से हर साल 10 लाख समुद्री चिड़िया, 1 लाख समुद्री जीव और अनगिनत मछलियां अपनी जान गंवा रही हैं,
यहीं नहीं इस वजह से जो लोग सी फूड खाते हैं, उनके शरीर में माइक्रोप्लास्टिक की संख्या बढ़ती जा रही है…सोचिए आपका एक साधारण सा पैड प्रकृति का कितना नुकसान पहुंचा रहा है .
इस विषय पर देश विदेश दोनो गंभीर
केवल भारत ही इस परेशानी को लेकर चिंता में नहीं है…वरना दुनिया के कई देश इस विषय को गंभीरता से ले रहे हैं.. साउथ कोरिया में सैनिटरी पैड पर बवाल चल रहा है तो, नॉर्थ कोरिया में बैन किया जा चुका है… अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने सैनिटरी पैड के इस्तेमाल पर रोक लगाई हुई है..
पाकिस्तान सरकार ने पिछले साल महिलाओं को सैनिटरी पैड इस्तेमाल नहीं करने पर जोर दिया…भारत में इसे बैन तो नहीं किया जा सकता क्योंकि यहां 95 फीसदी लड़किया पैड्स पर ही निर्भर है…. लेकिन इसके लिए सजग जरूर हुआ जा सकता है .
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सैनिटरी पैड्स और डायपर दोनों का इस्तेमाल बंद
सैनिटरी पैड्स और डायपर दोनों का इस्तेमाल बंद करना संभव नहीं है, लेकिन इन्हें नष्ट करने का एक तरीका है।इस कचरे को सही तरीके से नष्ट करना यानी ढंककर क्लोज्ड एनवायर्नमेंट में जलाना ही एक उपाय है.. इस मेडिकल वेस्ट से वायु के साथ-साथ पानी भी दूषित हो रहा है। इस वेस्ट को अगर तालाब या नदी में फेंका जाता है तो इसमें लगा बायोलॉजिकल वेस्ट पानी का रंग खराब करके उसमें बदबू फैलाता है..
लेकिन इसे बंद करके जला दिया जाए तो काफी हद तक प्रकृति को बचाया जा सकता है। वहीं पैड्स के अलावा अगर कोई चाहे तो कई और ऑप्शन हैं आजकल केमिकल फ्री और इकोफ्रेंडली सैनिटरी पैड्स बाजार में बिकने लगे हैं। इसमें भी कई वैराइटी हैं जो खरीदा जा सकती है…इसके अलावा सैनिटरी पैड्स के मुकाबले मेंस्ट्रुअल कप इको फ्रेंडली, पॉकेट फ्रेंडली और स्किन फ्रेंडली हैं।
देखा जाए हममें से अधिक्तर लोग ये सोचते हैं कि केवल हमारे बचाव करने से क्या हो जाएगा। लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि हमारे एक कदम से दुनिया बदल सकती है….हर कोई अगर यही सोचेगा कि हम क्यों करें तो फिर बदलाव कैसे आएगा।
हम महिलाओं से ही गुजारिश करेंगे को वो खुद आगे आए और इस बारे में और महिलाओं को जागरूक करें…क्योंकि प्रकृति से हम है और इस प्रकृति का ध्यान करना हमारी ही जिम्मेदारी है….