Bank Nationalisation Day: 19 जुलाई 1969 का दिन भारतीय बैंकिंग सेक्टर के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ था। आज के ही दिन इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की सरकार ने 14 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण (Nationalisation) किया था। इस कदम का मुख्य उद्देश्य देश की आर्थिक विकास की दिशा में बैंकों के संसाधनों का उपयोग करना था, खासकर कृषि और छोटे उद्योगों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए।
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राष्ट्रीयकरण की पृष्ठभूमि और उद्देश्य
समाजवादी नीतियों का समर्थन
इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) समाजवादी विचारधारा की प्रबल समर्थक थीं और उन्होंने बैंकिंग सेक्टर को भी इस दिशा में ढालने का प्रयास किया। राष्ट्रीयकरण का निर्णय समाजवादी नीतियों के तहत लिया गया था, ताकि आर्थिक संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित हो सके।
ग्रामीण और कृषि क्षेत्र को समर्थन
उस समय अधिकांश बैंकों के ऋण उद्योगपतियों और व्यापारियों को ही मिलते थे, जबकि कृषि क्षेत्र को केवल 2% ऋण मिलता था। राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों का ध्यान कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों की ओर केंद्रित हुआ। इससे किसानों को अधिक ऋण उपलब्ध हो सका और कृषि क्षेत्र में सुधार हुआ।
आर्थिक असमानताओं को कम करना
बैंकों के राष्ट्रीयकरण का एक प्रमुख उद्देश्य आर्थिक असमानताओं को कम करना और विकास के संसाधनों को व्यापक रूप से वितरित करना था। इस कदम से देश के गरीब और पिछड़े वर्गों को भी बैंकिंग सेवाओं का लाभ मिल सका।
राष्ट्रीयकरण के फायदे
बैंकिंग सेवाओं का विस्तार
बैंकिंग सेवाएं केवल शहरों तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी फैल गईं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिला और आर्थिक विकास का दायरा व्यापक हुआ।
लोगों का विश्वास बढ़ा
बैंकों में जनता का विश्वास मजबूत हुआ और अधिक लोग बैंकों में अपने पैसे जमा करने लगे। इससे बैंकों की जमा राशि में वृद्धि हुई और उन्हें अधिक ऋण देने की क्षमता प्राप्त हुई।
कृषि और छोटे उद्योगों को बढ़ावा
राष्ट्रीयकरण के बाद कृषि और छोटे उद्योगों को ऋण मिलने लगा, जिससे इन क्षेत्रों का विकास हुआ। इससे किसानों और छोटे उद्यमियों को वित्तीय सहायता मिली और वे अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ा सके।
आर्थिक विकास
बैंकों में जमा राशि और ऋण देने की क्षमता में बढ़ोतरी हुई, जिससे देश की आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला। इससे विभिन्न क्षेत्रों में निवेश बढ़ा और रोजगार के अवसर भी उत्पन्न हुए।
विवाद और चुनौतियां
राजनीतिक उद्देश्य
कई लोगों ने इस कदम को राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित माना। इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को इस कदम से राजनीतिक लाभ भी मिला। उन्होंने इसे अपनी राजनीति को मजबूत करने के लिए उपयोग किया, लेकिन इससे देश की आर्थिक स्थिति पर भी असर पड़ा।
अक्षमता और एनपीए
बैंकों की कार्यक्षमता में कमी आई और गैर-निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) में वृद्धि हुई, जिससे बैंकों को नुकसान हुआ। बैंकों की अक्षमता और भ्रष्टाचार के कारण एनपीए की समस्या बढ़ी और इससे बैंकिंग सेक्टर को भारी नुकसान हुआ।
निजीकरण की ओर वापसी
1990 के दशक में सरकार ने महसूस किया कि बैंकों की स्थिति सुधारने के लिए निजीकरण की ओर लौटना आवश्यक है। उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों के तहत बैंकों में सुधार के प्रयास किए गए, लेकिन इस प्रक्रिया में भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। बैंकों का राष्ट्रीयकरण एक ऐतिहासिक कदम था जिसने भारतीय बैंकिंग सेक्टर को एक नई दिशा दी। यह कदम राजनीतिक दृष्टिकोण से मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ, लेकिन आर्थिक दृष्टिकोण से इसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठाए जाते रहे।
हालांकि, इसने देश के बैंकिंग ढांचे को व्यापक रूप से बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राष्ट्रीयकरण ने न केवल बैंकों की संरचना को बदला बल्कि देश की आर्थिक नीति को भी एक नई दिशा दी। आज भी बैंकिंग सेक्टर में राष्ट्रीयकरण के प्रभाव को महसूस किया जा सकता है और यह कदम भारतीय बैंकिंग के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बना रहेगा।
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