Bahraich News: उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले से आई एक खबर ने एक बार फिर समाज के भीतर गहराई तक फैले भ्रष्टाचार और संवेदनहीनता को उजागर किया है। यहां एक गरीब और असहाय छात्रा को शौचालय की सुविधा दिलवाने के नाम पर जिले के आला अधिकारियों ने महीनों तक उसकी आबरू को तार-तार किया। यह मामला बहराइच के थाना हरदी क्षेत्र का है, जहां एक परास्नातक की छात्रा ने जिला पंचायत राज अधिकारी (DPRO) और महसी ब्लॉक के प्रभारी एडीओ (ADO) पंचायत पर शौचालय दिलवाने के बहाने दुष्कर्म करने का आरोप लगाया है। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए जिलाधिकारी मोनिका रानी ने जांच के लिए एक पांच सदस्यीय समिति गठित की है।
शौचालय का आवेदन बना काल
बहराइच के किसान डिग्री कॉलेज में एमए की पढ़ाई कर रही इस छात्रा ने अपनी मां की ओर से सरकारी मदद से शौचालय बनवाने के लिए आवेदन किया था। लेकिन इस सरल से आवेदन को कुछ अधिकारियों ने छात्रा के लिए एक काले अध्याय में बदल दिया। शिकायत के मुताबिक, डीपीआरओ कार्यालय में बुलाकर महसी के प्रभारी एडीओ पंचायत प्रवीण श्रीवास्तव छात्रा को डीपीआरओ के आवास पर ले गए, जहां उसे अपनी इच्छाओं का शिकार बनाया गया।
वीडियो बनाकर किया ब्लैकमेल
पीड़िता ने अपनी शिकायत में बताया कि डीपीआरओ ने अपने आवास पर उसके साथ गलत हरकत की, और इसके बाद धमकी देकर उसका वीडियो बना लिया। इसके बाद, वीडियो के आधार पर उसे बार-बार बुलाया गया और उसकी आबरू से खेला गया। पीड़िता के अनुसार, एडीओ पंचायत ने उसे जबरन कार से वापस उसके गांव टिकोरा मोड़ पर छोड़ा। इस तरह उसकी बेबसी का फायदा उठाया गया उसके बाद जबरन उसके बैग में पांच हजार रूपये डाल दिए गए।
महीनों तक चलती रही दुष्कर्म की यह क्रूर कहानी
पीड़िता ने बताया कि डीपीआरओ और उनके सहयोगी एडीओ पंचायत द्वारा शौचालय का लालच देकर लगातार उसका यौन शोषण किया गया। ब्लैकमेल करने के लिए बनाए गए वीडियो का इस्तेमाल उसे चुप रखने के लिए किया गया, ताकि वह किसी से अपनी आपबीती न कह सके। मजबूर और बेबस इस छात्रा ने अपनी सहनशीलता की सीमा पार होने पर आखिरकार जिलाधिकारी मोनिका रानी को अपनी आपबीती बताने का साहस किया।
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डीएम ने की कड़ी कार्रवाई के निर्देश
जिलाधिकारी ने छात्रा की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए तत्काल सीडीओ, सिटी मजिस्ट्रेट और जिला विद्यालय निरीक्षक सहित पांच अधिकारियों की टीम गठित कर जांच के निर्देश दिए हैं। वहीं, घटना की शिकायत सामने आने के बाद डीपीआरओ ने अवकाश पर जाने का निर्णय लिया है। जिलाधिकारी कार्यालय ने पुष्टि की है कि मामले की जांच रिपोर्ट तैयार कर शासन को भेजी जाएगी।
साहस का परिचय देकर मांगी न्याय की गुहार
पीड़िता ने डीएम से आग्रह किया है कि इस मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए ताकि उसे और अन्य पीड़िताओं को न्याय मिल सके। उसने लिखा कि उसके पास अब एक ही विकल्प बचा है – या तो वह आत्महत्या कर लेगी, या फिर समाज के सामने आकर इन अधिकारियों के काले कारनामों को उजागर करेगी। छात्रा ने जिलाधिकारी से प्रार्थना की है कि उसे इंसाफ दिलाया जाए ताकि कोई और लड़की इस प्रकार के शोषण का शिकार न बने।
अकेली छात्रा पर टूटा दुखों का पहाड़
पीड़िता अपने परिवार की आर्थिक जिम्मेदारियों को अकेले उठा रही है। पिता का साया बचपन में ही सिर से उठ गया था और 10 साल के छोटे भाई की देखभाल की जिम्मेदारी भी उसी पर है। गरीब परिवार से होने के कारण उसने सरकारी सहायता से शौचालय बनवाने के लिए आवेदन किया था, लेकिन जिले के दो अधिकारियों ने उसे मदद देने के बजाय उसकी मजबूरी का फायदा उठाया।
जांच में मिली क्लीन चिट
हरदी थाना क्षेत्र की एक छात्रा ने शौचालय दिलवाने के बहाने डीपीआरओ और प्रभारी एडीओ पंचायत पर दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए जिलाधिकारी (डीएम) को शिकायती पत्र भेजा था। इस मामले में जिलाधिकारी ने जांच के लिए एक पांच सदस्यीय टीम का गठन किया, जिसने गुरुवार शाम को अपनी रिपोर्ट डीएम को सौंपी। रिपोर्ट के अनुसार, आरोप प्रथम दृष्टया गलत पाए गए। शिकायती पत्र प्राप्त होने पर डीएम ने मामले की जांच के लिए मुख्य विकास अधिकारी की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय टीम का गठन किया था। इस टीम में नगर मजिस्ट्रेट, प्राचार्य स्व. ठाकुर हुकुम सिंह किसान स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जिला विद्यालय निरीक्षक और जिला प्रोबेशन अधिकारी को सदस्य बनाया गया था।
जांच के दौरान यह पाया गया कि आरोप प्रथम दृष्टया झूठे और निराधार हैं, और शिकायतकर्ता ने सिर्फ जिला पंचायत राज अधिकारी और प्रभारी सहायक विकास अधिकारी की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया था। हालांकि, अवकाश के दिन डिग्री कॉलेज बंद होने के बावजूद गुरुवार को हुई जांच ने कई सवाल खड़े किए हैं।
महिला सुरक्षा पर फिर उठे सवाल
यह घटना समाज में महिला सुरक्षा और सरकारी सिस्टम पर कई गंभीर सवाल उठाती है। जिस व्यवस्था से गरीब और जरूरतमंदों को मदद मिलने की उम्मीद होती है, वहां से उन्हें इस तरह का अमानवीय व्यवहार मिलना दुखद और शर्मनाक है। यह घटना बताती है कि जब सरकारी तंत्र के अधिकारी ही अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल कर लोगों का शोषण करते हैं, तो समाज में महिलाओं की सुरक्षा का दावा खोखला प्रतीत होता है। पीड़िता की आपबीती हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि अब समय आ गया है जब महिलाओं को अपने हक और अधिकार के लिए आवाज उठानी होगी। सरकार और समाज को मिलकर ऐसे मामलों में सख्त कदम उठाने चाहिए ताकि किसी भी महिला को इस तरह के अत्याचार का सामना न करना पड़े।