Asaduddin Owaisi: भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गश्त से जुड़े ताजे समझौते के बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने बड़ा सवाल उठाया है। ओवैसी ने समझौते की डिटेल्स को सार्वजनिक करने की मांग करते हुए, इसके तहत तय की गई शर्तों पर स्पष्टीकरण मांगा है।
ओवैसी का बयान: सीमावर्ती शर्तें सार्वजनिक की जाएं
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर सोमवार को ओवैसी ने पोस्ट किया, “हम इस समझौते के डिटेल्स का इंतजार कर रहे हैं। विदेश सचिव की भाषा अस्पष्ट है। हम यह जानने की उम्मीद करते हैं कि यह व्यवस्था भारतीय गश्ती अधिकारों को बहाल करेगी और पीपल्स लिब्रेशन आर्मी (PLA) को उन क्षेत्रों तक पहुँच की अनुमति नहीं देगी, जहाँ वह पहले नहीं आ रहा था।”
ओवैसी ने अपने अगले पोस्ट में डोकलाम विवाद का जिक्र करते हुए लिखा, “हमें यह भी जानने की जरूरत है कि सीमावर्ती इलाकों में डिसएंगेजमेंट की शर्तें क्या हैं। डोकलाम की तरह हमें नहीं देखना चाहिए कि PLA ने स्थायी उपस्थिति स्थापित कर ली हो। जब तक सारी जानकारी स्पष्ट नहीं होती, यह कहना मुश्किल है कि इस समझौते के नतीजे क्या होंगे।”
जयशंकर ने समझौते को बताया ‘सकारात्मक कदम’
इस समझौते पर विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कहा कि यह सीमा पर शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने की दिशा में एक ‘सकारात्मक कदम’ है। उन्होंने कहा कि इस समझौते के बावजूद जल्दबाजी में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जाना चाहिए। जयशंकर ने यह बात एक अंग्रेजी समाचार चैनल की वर्ल्ड समिट में कही, जिसमें उन्होंने बताया कि यह समझौता उस सौहार्द का पुनर्निर्माण करेगा जो 2020 से पहले सीमा क्षेत्रों में मौजूद था।
भारत-चीन वार्ता में प्रमुख मुद्दे
भारत और चीन के बीच हुई हालिया वार्ता में पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर गश्त के नियमों पर सहमति बनी है। विदेश सचिव विक्रम मिस्री के अनुसार, इस समझौते से सैनिकों की वापसी का मार्ग प्रशस्त होगा और 2020 में उत्पन्न गतिरोध को हल करने में मदद मिलेगी। यह समझा जा रहा है कि इस समझौते का मुख्य फोकस देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में गश्त से संबंधित है। मिस्री ने बताया कि यह समझौता सैनिकों की वापसी और 2020 में हुए गतिरोध को सुलझाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
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गलवान घाटी के बाद बदले हालात
भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में मई 2020 से चल रहे सैन्य गतिरोध के बाद से स्थिति नाजुक बनी हुई है। गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद दोनों देशों के रिश्ते काफी तनावपूर्ण हो गए थे। यह घटना पिछले कुछ दशकों में दोनों देशों के बीच सबसे गंभीर सैन्य टकराव में से एक थी।
भारत लगातार इस बात पर जोर देता रहा है कि जब तक सीमावर्ती इलाकों में शांति बहाल नहीं होती, तब तक चीन के साथ द्विपक्षीय रिश्ते सामान्य नहीं हो सकते। पिछले कई दौर की वार्ता में, भारत ने पीएलए पर देपसांग और डेमचोक से अपने सैनिकों को हटाने का दबाव बनाया है, लेकिन इस पर पूरी तरह सहमति अब तक नहीं बन पाई है।
ओवैसी ने अपने बयानों में सरकार से मांग की है कि चीन के साथ हुए समझौते की सभी शर्तें और उससे जुड़े सभी पहलुओं को सार्वजनिक किया जाए ताकि देशवासी यह जान सकें कि भारतीय हितों की सुरक्षा सुनिश्चित की गई है या नहीं। उनके इस सवाल ने सरकार पर पारदर्शिता को लेकर दबाव बढ़ा दिया है, खासकर जब यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हो। हालांकि जयशंकर इसे एक सकारात्मक कदम मानते हैं, लेकिन ओवैसी जैसे नेताओं की चिंताएँ और सवाल इस बात की ओर इशारा करते हैं कि इस समझौते के व्यावहारिक प्रभावों को देखने के लिए अभी समय लगेगा। अब यह देखना होगा कि आगे इस समझौते से वास्तविक शांति और समाधान किस हद तक हासिल हो पाता है।