Allahabad HC: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति के खिलाफ पत्नी द्वारा दर्ज क्रूरता के मामले को खारिज कर दिया है। इस मामले में पत्नी ने अपने पति पर दहेज की मांग, प्रताड़ना और अप्राकृतिक यौन संबंधों की जबरदस्ती का आरोप लगाया था। लेकिन न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मामले की गहराई से जांच करने पर यह स्पष्ट होता है कि विवाद की जड़ दहेज नहीं बल्कि दंपति की “यौन असंगति” से उत्पन्न हुई थी।
शादी के बाद उत्पन्न हुए विवाद
यह जोड़ा 2015 में शादी के बंधन में बंधा था और नोएडा का रहने वाला है। शादी के कुछ समय बाद ही पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके पति और ससुराल वालों ने उस पर दहेज की मांग को लेकर दबाव बनाना शुरू कर दिया। उसने कहा कि दहेज की मांग पूरी न होने पर उसे प्रताड़ित किया गया और शारीरिक रूप से मारपीट भी की गई। इसके साथ ही उसने यह आरोप भी लगाया कि उसका पति शराब का आदी था और उससे अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने की मांग करता था।
पत्नी का यह भी कहना था कि पति उसके सामने अश्लील फिल्में देखता था और अश्लील हरकतें करता था। उसने दावा किया कि जब उसने इस तरह की हरकतों का विरोध किया, तो पति ने उसका गला घोंटने की कोशिश की। इसके बाद पति उसे ससुराल में छोड़कर सिंगापुर चला गया। आठ महीने बाद जब पत्नी सिंगापुर गई, तो वहां भी उसके पति ने उसे प्रताड़ित किया।
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धारा 498ए के तहत मामला दर्ज
पत्नी ने पति और उसके परिवार के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (दहेज उत्पीड़न), 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाना), 504 (अपमान), 506 (आपराधिक धमकी), 509 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना) और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत मामला दर्ज कराया। हालांकि, पति और उसके परिवार ने इन आरोपों को नकारते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर केस खारिज करने की मांग की।
कोर्ट की टिप्पणी
मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि एफआईआर और पीड़िता के बयानों की गहराई से जांच करने पर यह स्पष्ट होता है कि विवाद का मूल कारण पति द्वारा दहेज की मांग नहीं था, बल्कि यह उनके यौन जीवन से संबंधित था। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी प्रकार का अत्याचार या हिंसा हुआ भी है, तो वह दहेज के लिए नहीं बल्कि पति की यौन इच्छाओं को पूरा करने में पत्नी की असहमति के कारण हुआ है।
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दहेज मांग का स्पष्ट उल्लेख नहीं
न्यायालय ने यह भी पाया कि पत्नी ने पति और ससुराल वालों के खिलाफ सामान्य और अस्पष्ट आरोप लगाए हैं। कोर्ट ने कहा कि दहेज की किसी विशेष मांग के संबंध में कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया गया है, जिससे यह साबित हो सके कि दहेज के लिए उत्पीड़न हुआ हो। इस प्रकार, मामले के तथ्यों के आधार पर यह साबित नहीं किया जा सकता कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत क्रूरता का अपराध हुआ है। न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि इस मामले में दहेज उत्पीड़न के आरोप साबित नहीं होते हैं और सामान्य आरोपों के आधार पर मामले को नहीं चलाया जा सकता। इसके साथ ही कोर्ट ने केस को खारिज कर दिया और पति व उसके परिवार को राहत दी।