Ajmer Dargah controversy: राजस्थान के अजमेर स्थित विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती (Khwaja Moinuddin Chishti) की दरगाह विवादों में घिर गई है। हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि दरगाह की जमीन पर संकट मोचन महादेव मंदिर स्थित था। इसके समर्थन में 1911 में प्रकाशित पुस्तक “अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव” को साक्ष्य के रूप में पेश किया गया है। यह याचिका हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अजमेर सिविल न्यायालय में दायर की है। कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर अल्पसंख्यक मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), और दरगाह कमेटी को नोटिस जारी कर पक्ष रखने का निर्देश दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी। अजमेर की दरगाह पहली ऐसी जगह नहीं है, जहां मंदिर होने का दावा किया गया है। इससे पहले वाराणसी, मथुरा और संभल जैसे धार्मिक स्थलों पर भी इसी तरह के दावे किए जा चुके हैं।
ज्ञानवापी मस्जिद: शिव मंदिर का दावा
वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद, जो काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप है, पर भी हिंदू पक्ष ने शिव मंदिर होने का दावा किया है। 1669 में मुगल शासक औरंगजेब द्वारा इस मस्जिद का निर्माण कराया गया था। हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि मस्जिद परिसर में शिवलिंग स्थित है। एएसआई द्वारा किए गए सर्वे में दीवारों पर त्रिशूल, स्वास्तिक, और ओम के निशान पाए गए। साथ ही मस्जिद के स्तंभों पर हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां उकेरी गई हैं। मस्जिद के समीप नंदी की मूर्ति का सामना मस्जिद की ओर है, जो एक मंदिर होने के संकेत देता है।
मथुरा की शाही ईदगाह: श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद
मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद पर भी हिंदू पक्ष ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि होने का दावा किया है। 13.37 एकड़ की विवादित जमीन में 11 एकड़ भूमि पर श्रीकृष्ण मंदिर है, जबकि 2.37 एकड़ भूमि पर शाही ईदगाह मस्जिद स्थित है। हिंदू पक्ष का दावा है कि 1670 में औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण कराया। इतालवी यात्री निकोलस मनुची ने भी अपनी पुस्तक में इस घटना का उल्लेख किया है।
संभल की जामा मस्जिद: हरिहर मंदिर का दावा
उत्तर प्रदेश के संभल में स्थित जामा मस्जिद को लेकर भी विवाद है। हिंदू पक्ष का दावा है कि यह मस्जिद भगवान विष्णु के हरिहर मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। 1875 की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण रिपोर्ट में एक शिलालेख का उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया है कि मस्जिद का निर्माण 933 हिजरी में मीर हिंदू बेग ने करवाया था। बाबर के शासनकाल के दौरान मंदिर को तोड़कर मस्जिद में परिवर्तित किया गया। यह दावा बाबरनामा और एएसआई रिपोर्ट पर आधारित है।
अजमेर दरगाह विवाद
अजमेर स्थित ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज का मकबरा माना जाता है। इसका निर्माण 13वीं शताब्दी में इल्तुतमिश ने शुरू कराया और हुमायूं के शासनकाल में पूरा हुआ। दरगाह का मुख्य द्वार निजाम गेट है, जिसे 1911 में हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान ने बनवाया। शाहजहां के समय शाहजहानी दरवाजा और सुल्तान महमूद खिलजी के समय बुलंद दरवाजा का निर्माण हुआ। हालांकि, हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि यह स्थल संकट मोचन महादेव मंदिर था। 20 दिसंबर को कोर्ट में इस विवाद पर सुनवाई होगी।
बढ़ता जा रहा है धार्मिक विवादों का सिलसिला
हाल के वर्षों में भारत में धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद बढ़ते जा रहे हैं। चाहे वह वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद हो, मथुरा की शाही ईदगाह, या अब अजमेर दरगाह, ऐसे दावों ने धार्मिक और सांस्कृतिक संवाद को प्रभावित किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए निष्पक्ष निर्णय लेना आवश्यक है। इन विवादों का समाधान न्यायपालिका के माध्यम से होना चाहिए ताकि समाज में शांति और सद्भाव बना रहे।