Ajmer: अजमेर की ख्वाजा गरीब नवाज दरगाह (Khwaja Gareeb Nawaz Dargah) का विवाद अभी शांत भी नहीं हुआ था कि एक और ऐतिहासिक स्थल, अढ़ाई दिन का झोंपड़ा, सुर्खियों में आ गया है। इस बार विवाद नमाज पर पाबंदी को लेकर है। मंदिर-मस्जिद के मुद्दों पर देश में पहले से ही बहस चल रही है। अयोध्या का राम मंदिर, काशी का ज्ञानवापी परिसर और मथुरा का कृष्ण जन्मभूमि विवाद पहले से चर्चा में रहे हैं। हाल ही की अगर चर्चा करें तो संभल मस्जिद विवाद और अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर विवाद काफी गरमाया हुआ है। अब अजमेर के अढ़ाई दिन के झोंपड़े (Adhai Din Ka Jhonpra) को लेकर भी धार्मिक और राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई है।
अढ़ाई दिन का झोंपड़ा: क्या है विवाद का कारण?
अढ़ाई दिन का झोंपड़ा, जो देश की सबसे प्राचीन मस्जिदों में से एक मानी जाती है, अपने इतिहास और संरचना को लेकर लंबे समय से विवादों में घिरा हुआ है। ताजा मामला यहां नमाज अदा करने पर रोक को लेकर है। हिंदू और जैन समुदाय के लोग इसे मस्जिद नहीं, बल्कि प्राचीन हिंदू या जैन मंदिर मानते हैं। हाल ही में जैन साधुओं को अढ़ाई दिन के झोंपड़े में प्रवेश से रोके जाने के बाद विवाद और बढ़ गया। जैन समुदाय ने इस घटना पर नाराजगी जताई और प्रशासन के सामने आपत्ति दर्ज कराई।
इतिहास के झरोखे में जानें ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ क्या है?
अढ़ाई दिन का झोंपड़ा लगभग 800 साल पुरानी संरचना है, जो अपने पीछे एक विवादित इतिहास समेटे हुए है। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, यह स्थल पहले एक विशाल संस्कृत विद्यालय और मंदिर था। 1192 ईस्वी में मोहम्मद गोरी के आदेश पर उनके सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे एक मस्जिद में बदल दिया। इमारत की दीवारों और खंभों पर हिंदू और जैन मंदिरों की वास्तुशैली स्पष्ट दिखाई देती है। इसमें इस्तेमाल की गई मूर्तियों और शिलालेख इस बात की गवाही देते हैं कि यह कभी संस्कृत विद्यालय और मंदिर का हिस्सा था।
कैसे पड़ा ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ नाम?
लोककथाओं के अनुसार, मोहम्मद गोरी जब अजमेर से गुजर रहा था, तब उसने यहां की अद्वितीय वास्तुकला को देखा और कुतुबुद्दीन ऐबक को इसे मस्जिद में बदलने का आदेश दिया। इसके लिए केवल ढाई दिन (60 घंटे) का समय दिया गया। स्थानीय हिंदू कारीगरों ने इस काम को तय समय में पूरा किया। इस घटना के कारण इस मस्जिद का नाम पड़ा अढ़ाई दिन का झोंपड़ा।
पुरातत्व विभाग की निगरानी में हैं यह पर्यटन स्थल
अढ़ाई दिन का झोंपड़ा अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की देखरेख में एक पर्यटन स्थल है। इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता इसे दुनियाभर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाती है। लेकिन इसका धार्मिक विवाद इसे बार-बार सुर्खियों में ले आता है।
जैन और हिंदू समुदाय ने जतायी की आपत्तियां
इस स्थल को लेकर जैन और हिंदू समुदाय का कहना है कि यहां उनकी प्राचीन धरोहर मौजूद है। जैन साधुओं ने हाल ही में आरोप लगाया कि उन्हें इस स्थल में प्रवेश से रोका गया। हिंदू संगठनों ने भी यहां नमाज पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है, क्योंकि वे इसे प्राचीन मंदिर का हिस्सा मानते हैं। इस मसले को लेकर जैन और हिंदू समुदाय के साथ-साथ कुछ राजनीतिक दलों ने भी विरोध जताया है। वे चाहते हैं कि इस स्थल को एक धर्मनिरपेक्ष पर्यटन स्थल घोषित किया जाए और किसी भी धार्मिक गतिविधि पर रोक लगाई जाए।
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह इमारत पहले एक संस्कृत विद्यालय थी, जिसे चौहान राजवंश के समय बनवाया गया था। बाद में इसे मंदिर में बदल दिया गया। वहीं, मोहम्मद गोरी ने इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया। संरचना की स्थापत्य कला में हिंदू और जैन वास्तुशैली की झलक साफ नजर आती है। मंदिर-मस्जिद विवादों का भारत की राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अढ़ाई दिन का झोंपड़ा भी इसी श्रेणी में आता है। इस विवाद ने फिर से धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण और उपयोग पर सवाल खड़े कर दिए हैं।