उत्तर प्रदेश: हर किसी का सपना होता हैं कि वो कोई ऐसा काम करें जिससे उसके परिवार वालो को गर्व का एहसास हो और वो समाज में एक इज्जत भरी निगाहों से देखा जाए। एक सपना ऐसा ही सपना संजोए लखनऊ में मलिहाबाद के गहदो गांव में रहने वाले युवक आशीष वर्मा का भी था। वो सिविल सेवा की तैयारी में जुटा हुआ था और हर महीने 4400 रुपए में ऑनलाइन कोर्स भी कर रहा था। लेकिन क्या पता था विधि को कुछ और ही मंजूर होगा। कुछ लोगो ने अपने स्वार्थ के लिए उसे मारपीट के झूठे केस में फंसा दिया और उसके सपने को में हकीकत बनने से पहले ही खत्म कर दिया।
आशीष की मां का आरोप हैं कि झूठे केस में फसाने के बाद रहीमाबाद थाने के कुछ सिपाही उसके मानसिक रूप से परेशान करने लगे और 6 महीनो में तकरीबन 50 से ज्यादा बार उसे थाने बुलाकर पैसे मांगे और जिंदगी बर्बाद करने की धमकी देने लगे।इन सबसे आहत होकर उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली और सुसाइड नोट में पूरे थाने को भ्रष्ट बताया।
पूरे घटनाक्रम की शुरुआत 8 दिसंबर 2018 से होती हैं। जहां आशीष और उसके पिता महादेव ट्रैक्टर ट्राली खरीदने इलाके के दुकानदार नंदू के पास जाते हैं।वहां पैसों को लेकर दोनो के बीच विवाद हो जाता हैं, विवाद इतना बढ़ जाता हैं कि नंदू की दुकान में काम कर रहे कुछ लोग आशीष पर हमला कर के घायल कर देते हैं।घायल बेटे को महादेव अस्पताल ले जाते हैं और हालत सुधरने के बाद माल थाने में मुकदमा दर्ज करवाते हैं।
लगातार कई दिनों से महादेव और उसके परिवार पर नंदू ने मुकदमे में सुलह करने का दबाव बनाने लगा, लेकिन महादेव और उसके परिवार ने नंदू से समझौता करने से मना कर दिया था।कुछ दिन बाद महादेव ने क्षेत्र में ही पांच बिस्वा जमीन खरीदी थी।कुछ महीनो बाद कुछ रसूखदारों द्वारा उसकी खरीदी हुई जमीन पर दो लोग अपना दावा करने लगे और महादेव लगातार परेशान रहने लगा।माल थाने के कई चक्कर काटे लेकिन सुनवाई ना होने और जमीन के कब्जामुक्त नो होने की वजह से आखिरकार महादेव ने 12 दिसंबर 2020 को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।आत्महत्या के बाद पुलिस ने देर से ही सही लेकिन कार्रवाई करते हुए जमीन को महादेव के परिवार को कब्जा दिलवा दिया था।
पति की मौत के बाद पत्नी सुशीला ने तीनों बच्चों को संभाला पढ़ाया और पूरी जिम्मेदारी भी निभाई।मृतक महादेव की पत्नी सुशीला बताती हैं कि 28 सितंबर 20 को नंदू ने अपने नौकर को भेजकर उनकी दुकान में घर बनाने संबंधी सामान का ऑर्डर लिखवाया था और उसके बदले में उसने 50 रुपए बयाने के तौर पर भी दिए थे।नौकर ने अपना नंबर मृतक आशीष को दिया जो उस वक्त दुकान में मौजूद था और उसके बाद नौकर वहां से चला गया।
ऑर्डर पूरा होने पर आशीष ने नौकर को फोन किया तो उसने उठा कर काट दिया, उसके एक हफ्ते बाद रहीमाबाद थाने से एक सिपाही का फोन आता हैं और वो उन्हें कहता हैं कि आशीष और मनीष थाने आ जाओ तुम्हारे खिलाफ केस हैं।घबराए हुए दोनो युवक अपनी मां के साथ थाने पहुंचते हैं और पता चलता हैं इनपर घर में घुस कर मारपीट और फोन पर धमकी देने के आरोप हैं।
सिपाही ने मामले को रफा दफा करवाने के लिए 50 हजार रुपए रिश्वत मांगे लेकिन सुशीला के पास पैसे ना होने की वजह से वो केवल 20 हजार का ही इंतजाम कर पाई। 20 हजार लेने के बाद सिपाहियों ने थाने के पीछे ले जाकर उन दोनो भाइयों से सादे कागज पर हस्ताक्षर करवाए और उन्हें जाने दिया।
आशीष बेहद ही मेधावी छात्र था और वो आईएएस बनकर देश की सेवा करना चाहता था।मगर का मालूम था कि सिस्टम में उसे पिसना पड़ेगा और उसका सपना चकनाचूर हो जाएगा। मां का सपना ना पूरा कर सका और जहां पिता ने फांसी पर लटकर आत्महत्या की थी वही उसने भी इस पूरे घटना को अंजाम दिया और मौत को गले लगा लिया।
बहरहाल यूपी पुलिस में काबिलियत की कोई कमी नहीं हैं, लेकिन ऐसे कर्मियों की वजह से पूरा प्रशासन शक के घेरे में आकर बदनाम होता हैं।आशीष ने मौत से पहले अपने सुसाइड नोट में रहीमाबाद थाने के सिपाही राजमणि पाल, लल्लन प्रसाद और मोहित शर्मा पर फर्जी केस में फंसा कर एफआईआर लिखने की बात लिखी हैं तो वही गांव के ही नंदू, अरविंद और श्याम किशोर ने झूठे षड्यंत्र रच कर एफआईआर लिखवाने की बात को भी दर्शाया हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए तीनो आरोपी पुलिस कर्मियों को लाइन हाजिर कर दिया गया और विभागीय जांच के भी आदेश दे दिए गए हैं।