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Emergency: 48 साल पहले आज के ही दिन यानि 25 जून को पहली बार इंदिरा गांधी की सरकार में आपातकाल घोषित किया था. उसी इमरजेंसी के 48 साल पूरे होने पर भाजपा आज ‘काला दिवस’ मना रही है. जिसके लिए भाजपा तमाम सम्मेलन करते हुए, दंगों के पीड़ितों की आपबीती सुनाने के साथ 2024 की रणनीति पर भी काम कर रही है.
वो फैसला जो बना इमरजेंसी का कारण?
46 साल पहले आज के ही दिन देश के लोगों ने रेडियो पर एक ऐलान सुना और मुल्क में खबर फैल गई कि सारे भारत में अब आपातकाल की घोषणा कर दी गई है. 46 साल के बाद भले ही देश के लोकतंत्र की एक गरिमामयी तस्वीर सारी दुनिया में प्रशस्त हो रही हो, लेकिन आज भी अतीत में 25 जून का दिन डेमॉक्रेसी के एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है. 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 के बीच देश में 21 महीने तक आपातकाल लगाया गया.
तत्कालीन राष्ट्रपति फख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के अधीन देश में आपातकाल की घोषणा की थी. 25 जून और 26 जून की मध्य रात्रि में तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर करने के साथ ही देश में पहला आपातकाल लागू हो गया था. अगली सुबह समूचे देश ने रेडियो पर इंदिरा की आवाज में संदेश सुना था, ‘भाइयो और बहनो, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है.इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है.
1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी को अभूतपूर्व जीत दिलाई थी और खुद भी बड़े मार्जिन से जीती थीं. खुद इंदिरा गांधी की जीत पर सवाल उठाते हुए उनके चुनावी प्रतिद्वंद्वी राजनारायण ने 1971 में अदालत का दरवाजा खटखटाया था. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर इंदिरा गांधी के सामने रायबरेली लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने वाले राजनारायण ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया है. मामले की सुनवाई हुई और इंदिरा गांधी के चुनाव को निरस्त कर दिया गया. इस फैसले से आक्रोशित होकर ही इंदिरा गांधी ने इमर्जेंसी लगाने का फैसला किया.
आपातकाल की घोषणा
इंदिरा गांधी इतना क्रोधित हो गई थीं कि अगले दिन ही उन्होंने बिना कैबिनेट की औपचारिक बैठक के आपातकाल लगाने की अनुशंसा राष्ट्रपति से कर डाली, जिस पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने 25 जून और 26 जून की मध्य रात्रि में ही अपने हस्ताक्षर कर डाले और इस तरह देश में पहला आपातकाल लागू हो गया.
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इस्तीफा देने को तैयार थीं इंदिरा
धवन ने कहा था कि आपातकाल इंदिरा के राजनीतिक करियर को बचाने के लिए नहीं लागू किया गया था, बल्कि वह तो खुद ही इस्तीफा देने को तैयार थीं. जब इंदिरा ने जून 1975 में अपना चुनाव रद्द किए जाने का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश सुना था तो उनकी पहली प्रतिक्रिया इस्तीफे की थी और उन्होंने अपना त्यागपत्र लिखवाया था. उन्होंने कहा था कि वह त्यागपत्र टाइप किया गया लेकिन उस पर हस्ताक्षर कभी नहीं किए गए. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी उनसे मिलने आए और सबने जोर दिया कि उन्हें इस्तीफा नहीं देना चाहिए.