Sitapur Loksabha Seat:सीतापुर की सरजमीन पर सियासत के सबसे बड़े सिकंदर उतर चुके हैं, बीजेपी ने पुराने चेहरे पर दांव खेलते हुए राजेश वर्मा को लगातार तीसरी बार टिकट दिया है लेकिन दरअसल ये टिकट नहीं बल्कि जीत का टीका लगाने की भाजपाई कोशिश अंजाम दी गई है। अगली चाल चलने की बारी अब कांग्रेस की है। यूपी में समाजवादी पार्टी के साथ अलायंस में कांग्रेस को 17 सीटें मिली हैं, इन 17 सीटों में एक सीट सीतापुर की है, ये सीट कांग्रेस के पाले में आने के बाद पार्टी कार्यकर्ता सक्रिय हो गए हैं।
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5 विधानसभा सीटों में से 4 पर बीजेपी का कब्जा
सीतापुर लोकसभा सीट पर फिलहाल बीजेपी का दबदबा है, 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा, बसपा और रालोद के गठबंधन के बाद भी बीजेपी ने बड़ी जीत दर्ज की थी, पार्टी की मजबूत स्थिति का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि अकेले लोकसभा सीट पर नहीं बल्कि जिले में आने वाली 5 विधानसभा सीटों में से 4 पर बीजेपी का कब्जा है।
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जीत के समीकरण बनाने की सियासत
88 हजार ऋषियों, मुनियों की तपोस्थली में चुनावी बिसात बिछ चुकी है, चुनावी चौसर इस बात के संकेत दे रही है कि जातीय गोलबंदी से जीत के समीकरण बनाने की सियासत हो रही है, लगातार तीसरी बार राजेश वर्मा को टिकट देकर बीजेपी ने कुर्मी वोटरों के बीच वही संदेश दोहराने का काम किया है, कि जो बीते दोनों लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टी ने दिया था और उसमें बखूबी कामयाब भी हुई थी।
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किस दल के नेता ने बदला पाला
2019 लोकसभा चुनाव में उपविजेता रहे बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री नकुल दुबे इस वक्त कांग्रेस पार्टी में हैं और इस चुनाव में तीसरे नम्बर पर रहीं कांग्रेस प्रत्याशी कैसर जहां इस समय सपा के साथ खड़ी हैं, ऐसे में इस बार का मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है। यहां आजादी के बाद से अब तक हुए लोकसभा चुनावों में सबसे अधिक 7 बार कांग्रेसियों ने ही परचम फहराया है मगर 16 लाख वोटरों वाली इस सीट पर 1989 के बाद से यहां की जनता ने हाथ का साथ छोड़ रखा है। ऐसे में समाजवादी पार्टी के साथ अलायंस में मिली इस सीट पर कांग्रेस मजबूती के साथ ना सिर्फ लड़ती दिखाई देगी बल्कि कोशिश ये होगी कि कैसे इस सीट पर वापसी की जाए।
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2014 के आकड़ों के अनुसार
सीट का समीकरण लोकसभा चुनाव 2014 के आकड़ों के अनुसार यहां करीब 16 लाख के आसपास मतदाता हैं। जिनमें आठ लाख सेअधिक पुरुष व साढ़े सात लाख सेअधिक महिला वोटर हैं। इस सीट पर कुर्सी वोटर निर्णायक भूमिका निभातेहैं। जानकारों का कहना हैकि मुश्लिम व ब्राहमण मतदाता भी जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभातेहैं।
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जनता ने हाथ का साथ छोड़ा
कांग्रेस ने सीतापुर संसदीय सीट पर 35 साल का वनवास खत्म करने के लिए मंथन शुरू कर दिया है। जीत की जमीन मजबूत करने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने जातीय समीकरणों और दावेदार की व्यक्तिगत छवि को आधार बनाया है।यहां आजादी के बाद से अब तक हुए लोकसभा चुनावों में सबसे अधिक सात बार कांग्रेसियों ने ही परचम फहराया है। मगर 1989 के बाद से यहां की जनता ने हाथ का साथ छोड़ रखा है।
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हैट्रिक बनाने का गौरव कांग्रेस के खाते में दर्ज
साथ ही सीतापुर लोकसभा क्षेत्र के इतिहास में पहली बार हैट्रिक बनाने का गौरव भी कांग्रेस के खाते में दर्ज कराया। मगर इस हैट्रिक के बाद सीतापुर के मतदाताओं ने हाथ का साथ ऐसा छोड़ा कि फिर कांग्रेस यहां वापसी नहीं कर सकी।सपा से समझौते के बाद सीतापुर सीट मिलने से कांग्रेस को इस बार वापसी की राह नजर आई है।सीतापुर संसदीय सीट के चुनावी दंगल में इस बार भी साइकिल नहीं दौड़ेगी। यह सीट गठबंधन में कांग्रेस के हिस्से में आई है। कांग्रेस का प्रत्याशी मैदान में होगा और सपा उसे समर्थन करेगी।