भगवान भोलेनाथ को सावन में गंगा जल और बेलपत्र क्यों चढ़ाते हैं?

Laxmi Mishra
By Laxmi Mishra

Input- NANDANI

सावन माह: हिन्दु धर्म का पावन महीना सावन के शुरू होते ही चारों ओर माहौल भी भक्तिमय हो चुका है। सावन माह शिवजी की पूजा के लिए समर्पित है। शिवजी की पूजा में बेलपत्र का महत्व होता है और इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। सावन महीना शिव को अत्यंत प्रिय है।

कहा जाता है कि सावन माह में ही समुद्र मंथन हुआ था जिसमें हलाहल विष निकला था और उसको शिवजी ने अपने अंदर ग्रहण कर लिया था। इसके बाद उनके कंठ में काफी जलन महसूस हुई थी जिसके बाद देवी देव दानव दैत्य सभी लोग बाबा भोलेनाथ को गंगाजल से स्नान कराए थे। साथ ही बिल्वपत्र के भोग लगाए थे। बिल्वपत्र संस्कृत शब्द है और हिंदी में इसे बेलपत्र भी कहा जाता है। कहा जाता है कि गंगा का जल और बेलपत्र ग्रहण करने से विष का प्रभाव समाप्त हो जाता है और राहत मिलती है।

जब भगवान भोलेनाथ ने किया था विषपान

जब विष पीने की बात आई तो सभी देवता और दानव पीछे हट गए और विष से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की। उस समय भगवान शिव ने विष पिया। जब भगवान शिव ने विष धारण किया तो विष की कुछ बूंदें पृथ्वी पर भी गिरीं, जिन्हें सांप, बिच्छू और अन्य जहरीले जीव-जंतुओं ने सोख लिया। इससे वे सभी जहरीले हो गये. वहीं भगवान शिव ने सारा विष अपने कंठ में समाहित कर लिया।

गंगा जल क्यों चढ़ाया जाता है भगवान शिव पर

12 ज्योतिर्लिंग में बाबा बैद्यनाथ धाम में गंगा जल सावन में चढ़ाने का विशेष महत्व माना गया है।पौराणिक कथा के अनुसार, चिरकाल में जब दानवों का आतंक बढ़ा और दानवों ने तीनों लोक पर आधिपत्य जमा लिया। उस समय देवतागण और ऋषि मुनि भगवान श्रीहरि विष्णु के पास गए, जहां उन्होंने दानवों पर विजय पाने के लिए समुद्र मंथन करने की सलाह दी। इसके पश्चात, देवताओं ने दानवों के साथ मिलकर नाग वासुकी और मंदार पर्वत की मदद से क्षीर सागर में समुंद्र मंथन किया।इससे 14 रत्नों समेत अमृत और विष की प्राप्ति हुई।

आखिर क्यों चढ़ाई जाती है भगवान शिव को बेलपत्र

भगवान भोलेनाथ को बेलपत्र बहुत प्रिय हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव की पूजा अर्चना में यदि बेलपत्र नहीं चढ़ाया तो वह अधूरी मानी जाती है। बेलपत्र के तीन पत्ते जो आपस में जुड़े होते हैं, वे पवित्र माने जाते हैं। इन तीन पत्तों को त्रिदेव माना जाता है। मान्यता है कि तीन पत्ते महादेव के त्रिशूल का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह भी माना जाता है कि बेलपत्र के तीन जुड़े हुए पत्तों को शिवलिंग पर चढ़ाने से भगवान शिव को शांति मिलती है और भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।

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