महाशिवरात्रि (Mahashivratri) हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण और विशेष पर्व है, जिसे बड़े श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। इस दिन शिवजी की विशेष पूजा की जाती है और उपवास रखा जाता है। इसके साथ ही भारत के विभिन्न हिस्सों में महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के दिन विशेष धार्मिक परंपराओं का पालन किया जाता है। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण परंपरा है पंचक्रोशी परिक्रमा, जिसे खासकर महाशिवरात्रि के अवसर पर किया जाता है।
पंचक्रोशी परिक्रमा का महत्व

पंचक्रोशी परिक्रमा, भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति का एक प्रतीक है। यह परिक्रमा खासकर उत्तर भारत के कई प्रमुख शिवस्थल जैसे काशी (वाराणसी), गंगा किनारे, और अन्य स्थानों पर की जाती है। पंचक्रोशी का अर्थ है पाँच प्रमुख तीर्थ स्थानों का यात्रा करना, जो प्रत्येक स्थान पर एक खास धार्मिक महत्व रखते हैं। यह परिक्रमा पवित्रता, साधना और भक्ति का प्रतीक मानी जाती है, जिसमें भक्त पांच स्थानों के चारों ओर चलते हुए भगवान शिव की पूजा और आराधना करते हैं।
श्रीराम ने शुरू की थी परिक्रमा
पंचक्रोशी परिक्रमा की परंपरा की शुरुआत श्रीराम से मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जब श्रीराम अपने वनवास के दौरान अयोध्या से बाहर निकले थे, तब उन्होंने इस परिक्रमा को सबसे पहले किया था। श्रीराम ने इस यात्रा को धार्मिक और आत्मिक उन्नति के लिए एक आवश्यक कार्य माना था। वे अपने भक्तों को यह संदेश देना चाहते थे कि भगवान शिव की उपासना और तीर्थ यात्रा से मनुष्य की आत्मा को शांति मिलती है और जीवन के हर संकट का समाधान होता है।
महाशिवरात्रि पर पंचक्रोशी परिक्रमा का विशेष महत्व

महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के दिन पंचक्रोशी परिक्रमा का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन भक्त विशेष रूप से उपवास रखते हैं और शिवलिंग की पूजा करते हैं। इसके साथ ही पंचक्रोशी परिक्रमा करने से न केवल शारीरिक रूप से शुद्धि प्राप्त होती है, बल्कि मानसिक और आत्मिक शांति भी मिलती है। इस दिन को लेकर विशेष मान्यता है कि यदि कोई भक्त पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ पंचक्रोशी परिक्रमा करता है, तो वह अपने जीवन के सारे पापों से मुक्ति पा सकता है और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है।
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परिक्रमा करने का तरीका
पंचक्रोशी परिक्रमा के दौरान भक्त पांच स्थानों की यात्रा करते हैं, जिनमें से प्रत्येक स्थान पर एक शिव मंदिर होता है। इस परिक्रमा को पूरा करने के लिए भक्त पूरी श्रद्धा और धैर्य के साथ कदम रखते हैं, और हर स्थान पर भगवान शिव की पूजा करते हैं। यह यात्रा लंबी और थकाने वाली होती है, लेकिन इसमें जो आंतरिक शांति और समर्पण का अनुभव होता है, वह अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।