इस बार कब मनाया जाएगा “Ahoi Ashtami” व्रत, जानिए दिन, तारीख़ और शुभ मुहूर्त!

Shilpi Jaiswal
By Shilpi Jaiswal

Ahoi Ashtami: सनातन धर्म में अहोई अष्टमी का व्रत औरतें संतान की लंबी आयु और बेहतर भविष्य पाने के लिए रखती है आपको बता दे कि सदियों से मान्यता है कि जो भी निसंतान औरतें इस व्रत को करती है उसे जल्द ही संतान की प्राप्ति होती है इस व्रत में शाम को तारों को जल देकर पूजा करके व्रत खोला जाता है इस बार अहोई अष्टमी का व्रत 24 अक्‍टूबर को रखा जाएगा।

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करवाचौथ के ठीक 4 दिन बाद रखा जाता है व्रत

हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता हैं और इस दिन सभी माताएं अपने पुत्र की दीर्घायु के लिए व्रत करती हैं और उनकी खुशहाली और लम्बी उम्र के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। यह व्रत करवाचौथ के ठीक 4 दिन बाद रखा जाता है और इसमें तारों को अर्घ्‍य देकर माताएं व्रत खोलती हैं इस दिन सभी माताएं निर्जला व्रत करके अपनी संतान की दीर्घायु के लिए कामना करती हैं और अहोई माता की पूजा करती हैं। आपको बता दे कि अहोई अष्‍टमी के दिन गोवर्द्धन में राधा कुंड में स्‍नान किन जाने की परंपरा चली आ रही है।

अहोई अष्टमी कब है और किस दिन है?

इस बार अहोई अष्टमी इस साल 24 अक्‍टूबर को मनाई जाएगी। जी सुबह 1 बजकर 18 मिनट पर शुरू होगी और 25 अक्टूबर को सुबह 1 बजकर 58 मिनट पर खत्म होगी। आपको बता दे कि उदया तिथि की मान्‍यता के अनुसार, अहोई अष्‍टमी का व्रत 24 अक्‍टूबर को रखा जाएगा।

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क्या है शुभ मुहूर्त?

इसमें अहोई अष्टमी पर तारों को देखकर अर्घ्‍य देने का समय शाम को 6 बजकर 6 मिनट से है। इस दिन सूर्यास्त 5 बजकर 42 मिनट पर होगा। माताएं अहोई अष्टमी पर तारों को जल चढ़ाने के बाद पूजा करती हैं और उसके गुड़ के बने पुए से चंद्रमा का भोग लगाकर स्‍वयं भी उसी से व्रत खोलती हैं और बच्‍चों को भी वह पुए प्रसाद के रूप में देती हैं।

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क्या है इस व्रत की खास बात?

अहोई अष्टमी व्रत का महत्वअहोई अष्टमी व्रत का महत्व बहुत ही खास माना गया है। इस व्रत को करने से आपकी संतान खुशहाल होने के साथ ही दीर्घायु भी होती हैं। हर प्रकार के रोगों से उनकी रक्षा होता है और स्‍याऊं माता बच्‍चों का भाग्‍य बनाती हैं और उनको हर बुरी नजर से बचाती हैं। इस व्रत को करने से आपके घर में सुख समृद्धि बढ़ती हैं और आपके घर में बच्‍चे करियर में खूब तरक्‍की करते हैं। यह व्रत सूर्योदय से लेकर सूर्यास्‍त तक रखा जाता है और बिना अन्‍न जल ग्रहण तारों को जल अर्पित करने के बाद ही यह व्रत खोला जाता है।

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