West Bengal: कांग्रेस ने अधीर रंजन चौधरी को हटाया, शुभांकर सरकार बने पश्चिम बंगाल के नए अध्यक्ष

Akanksha Dikshit
By Akanksha Dikshit
अधीर रंजन

West Bengal: कांग्रेस पार्टी ने पश्चिम बंगाल प्रदेश कमेटी के अध्यक्ष पद से अधीर रंजन चौधरी (Adhir Ranjan Chowdhury) को हटा दिया है। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने शुभांकर सरकार को तत्काल प्रभाव से इस पद पर नियुक्त किया है। यह बदलाव उस समय हुआ है जब अधीर चौधरी ने हाल ही में बहरामपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव हारने के बाद पद से इस्तीफा दिया था। उन्हें तृणमूल कांग्रेस के नए उम्मीदवार युसूफ पठान ने हराया।

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रणनीति में बदलाव का संकेत

शुभांकर सरकार (Subhankar Sarkar) की नियुक्ति के साथ ही यह स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस पश्चिम बंगाल में अपनी राजनीतिक रणनीति में बदलाव करने की तैयारी कर रही है। शुभांकर सरकार, जो पहले एआईसीसी के सचिव रह चुके हैं, ओड़िशा सहित कई राज्यों में शीर्ष पदों पर काम कर चुके हैं। उनके पास दिल्ली में संगठनात्मक अनुभव भी है, जो उन्हें इस नई भूमिका में मदद करेगा।

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अधीर चौधरी का विवादास्पद कार्यकाल

अधीर रंजन चौधरी का कार्यकाल विवादों से भरा रहा है। लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ लगातार बयानबाजी की थी। चुनाव के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने भी उन्हें फटकार लगाई थी, जब उन्होंने कहा था कि ममता बनर्जी इंडी गठबंधन का हिस्सा होंगी या नहीं, यह उनका विषय नहीं है। इस प्रकार के बयानों ने चौधरी की स्थिति को और कमजोर कर दिया था।

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चुनाव हारने के बाद से अटकलें हो गयी थी तेज

चुनाव हारने के बाद से ही अधीर चौधरी को हटाने की अटकलें तेज हो गई थीं। अब जब शुभांकर सरकार को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है, तो राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा गर्म है कि इससे कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच संभावित गठबंधन का रास्ता साफ हो सकता है। शुभांकर सरकार को लेकर माना जा रहा है कि वे तृणमूल कांग्रेस से समझौता करने के पक्षधर रहे हैं, जो कांग्रेस के लिए एक नई रणनीति का संकेत है।

चुनावी रणनीति में किया बदलाव

इस बदलाव के साथ ही शुभांकर सरकार को एआईसीसी सचिव के पद से मुक्त कर दिया गया है। उनकी नियुक्ति से यह उम्मीद जताई जा रही है कि कांग्रेस पश्चिम बंगाल में अपनी जमीनी स्तर की राजनीति को मजबूत करने के लिए एक नया दृष्टिकोण अपनाएगी। चौधरी की विदाई और शुभांकर की नियुक्ति से यह स्पष्ट होता है कि पार्टी अब अपने पुराने राजनीतिक समीकरणों को पुनः व्यवस्थित करने की योजना बना रही है। अब कांग्रेस को देखना होगा कि शुभांकर सरकार अपनी नई भूमिका में कितनी सफल होते हैं और वे पार्टी को किस दिशा में ले जाते हैं। अब सभी की निगाहें इस बात पर होंगी कि शुभांकर सरकार अपनी नई जिम्मेदारी को कैसे निभाते हैं और क्या कांग्रेस इस बदलाव के साथ अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने में सफल होगी।

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