UP News: गोंडा जिले के एक सरकारी अस्पताल में इलाज के बदले मरीजों से 200 रुपये मांगे जा रहे हैं। एक गरीब मरीज ने आरोप लगाया कि इलाज तभी होगा जब जेब से पैसे निकलें। सवाल यह उठता है कि यदि गरीब के पास पैसे होते तो वह सरकारी अस्पताल क्यों आता? स्वास्थ्य सेवाओं की यह स्थिति साफ दर्शाती है कि व्यवस्था आम आदमी की नहीं, अफसरशाही की सेवा में है।
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अंधेरे में इलाज
हरदोई जिला अस्पताल की हालत यह है कि बिजली गायब होते ही अस्पताल अंधेरे में डूब जाता है। यहां न जनरेटर है, न कोई बैकअप। जब एक मरीज उम्मीद लेकर अस्पताल पहुंचता है, तो उसे वहां और भी ज्यादा अंधेरा दिखाई देता है – और ये अंधेरा सिर्फ बिजली का नहीं, व्यवस्था का है।
इमरजेंसी में डॉक्टर नहीं
फतेहपुर के सरकारी अस्पताल में इमरजेंसी तो बनी है, लेकिन सुविधाएं नदारद हैं। यहां दो साल के मासूम की सिर्फ इसलिए मौत हो गई क्योंकि मौके पर कोई डॉक्टर नहीं था। पिता की चीखें और परिवार का टूटता सपना दिखाता है कि किस कदर सरकारी अस्पताल भरोसा तोड़ रहे हैं।
मानव अवशेष को नोचता कुत्ता
महराजगंज जिला अस्पताल से एक रोंगटे खड़े कर देने वाला दृश्य सामने आया है, जहां अस्पताल परिसर में एक कुत्ता मानव अवशेष को नोचता नजर आया। यह घटना अस्पताल कर्मचारियों की लापरवाही और संवेदनहीनता का खुला प्रमाण है।
सवाल व्यवस्था पर – क्या खुद इलाज के लायक हैं अस्पताल?
प्रदेश सरकार भले ही स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए प्रयासरत हो, लेकिन जमीनी हकीकत बेहद चिंताजनक है। मरीजों को कहीं इलाज के नाम पर ठगा जा रहा है तो कहीं बदहाली में मरने के लिए छोड़ दिया जा रहा है। सवाल ये है कि जब अस्पताल खुद ही इलाज मांग रहे हैं, तो वहां मरीजों का क्या होगा? प्रदेश की जनता जब सरकारी अस्पतालों की ओर उम्मीद से देखती है, तो उसे इलाज के बजाय बहाने, रिश्वत, अंधेरा और असंवेदनशीलता मिलती है। प्राइवेट अस्पतालों की लूट से बचकर जो लोग सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था पर भरोसा करते हैं, उन्हें भी अब यह लगने लगा है कि यह व्यवस्था खुद ही ICU में है।