Udaipur Files Row:उदयपुर में दर्जी कन्हैया लाल की नृशंस हत्या पर आधारित फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स – कन्हैया लाल टेलर मर्डर’ को लेकर जारी विवाद गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंचेगा। इस महत्वपूर्ण सुनवाई में शीर्ष अदालत यह तय करेगी कि फिल्म को देशभर के सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने की अनुमति मिलेगी या उस पर लगी अंतरिम रोक को आगे भी बरकरार रखा जाएगा।
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सुप्रीम कोर्ट में तय होगी फिल्म की किस्मत
इस फिल्म के रिलीज पर रोक लगाने की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पहले 16 जुलाई को यह आदेश दिया था कि निर्माता, केंद्र सरकार द्वारा गठित पैनल की रिपोर्ट का इंतजार करें। अब जबकि यह रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी गई है, कोर्ट के निर्णय पर सभी की निगाहें टिकी हैं। अदालत का फैसला यह तय करेगा कि फिल्म को हरी झंडी मिलेगी या कुछ और कानूनी पेच और बढ़ेंगे।
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केंद्र सरकार ने दी 6 कट्स की सिफारिश
केंद्र सरकार की ओर से गठित एक विशेषज्ञ समिति ने फिल्म की समीक्षा के बाद रिपोर्ट में कुल छह कट्स लगाने की सिफारिश की है। इस रिपोर्ट को अदालत के समक्ष प्रस्तुत कर दिया गया है। पैनल ने फिल्म के कुछ दृश्यों और संवादों को संवेदनशील और भड़काऊ करार दिया है, जो समुदायों के बीच तनाव बढ़ा सकते हैं। इसलिए, इन दृश्यों को हटाने या संपादित करने का सुझाव दिया गया है।
CBFC से पहले ही मिला है सर्टिफिकेट
गौरतलब है कि ‘उदयपुर फाइल्स’ को पहले ही केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) से रिलीज की मंजूरी मिल चुकी है। फिल्म को प्रमाण-पत्र मिलने के बावजूद इसे लेकर विवाद खड़ा हो गया, जिसके चलते कुछ संगठनों और व्यक्तियों ने इसकी रिलीज पर आपत्ति जताई थी। उनका कहना था कि फिल्म की सामग्री समाज में धार्मिक तनाव को बढ़ावा दे सकती है।
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निर्माता की ओर से याचिका
फिल्म के निर्माता ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करे और फिल्म को रिलीज की अनुमति दे। निर्माता का कहना है कि फिल्म का उद्देश्य किसी समुदाय को निशाना बनाना नहीं, बल्कि एक सच्ची घटना को दर्शाना है, जिससे लोगों को समाज में व्याप्त कट्टरता और हिंसा के खिलाफ जागरूक किया जा सके।
आज आएगा फैसला
अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं, जो यह तय करेगा कि फिल्म को जनता के सामने लाया जाए या कुछ और बदलावों के बाद ही रिलीज की अनुमति मिले। यह फैसला न केवल इस फिल्म की दिशा तय करेगा, बल्कि यह भी संकेत देगा कि समाज में संवेदनशील मुद्दों को लेकर फिल्म निर्माण और प्रदर्शन की सीमाएं क्या हैं।