Dev Deepawali 2024: बनारस (Banaras) में देव दीपावली (Dev Deepawali) का नजारा हर साल अद्वितीय होता है और इस दिन गंगा तट असंख्य दीपों से सजा नजर आता है. जैसे ही शाम ढलती है गंगा के किनारे एक अद्भुत दृश्य दिखाई देता है, जिसे देखने के लिए दुनियाभर से पर्यटक काशी पहुंचते हैं. इस बार देव दीपावली पर काशी के दशाश्वमेध घाट (Dashashwamedh Ghat) पर धर्म और राष्ट्रवाद का अनोखा संगम भी देखने को मिलेगा. कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) की 24वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में सेना के शहीद जवानों की स्मृति में अमरज्योति प्रज्वलित की जाएगी, जो राष्ट्र के प्रति सम्मान और श्रद्धा को दर्शाएगी.
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गंगा की महाआरती और 11,000 दीपों का आलोक
आपोक बता दे कि, दशाश्वमेध घाट (Dashashwamedh Ghat) पर गंगा सेवा निधि द्वारा मां गंगा की भव्य महाआरती का आयोजन भी किया जाएगा. इस आयोजन में 21 बटुक और 42 कन्याएं मां गंगा की आरती करेंगी. गंगा सेवा निधि के अध्यक्ष सुशांत मिश्र के अनुसार, देव दीपावली के इस विशेष दिन पर मां गंगा की महाआरती की जाती है, और इस आरती का नजारा बेहद मनोहारी होता है. साथ ही घाट पर 11,000 दीप जलाए जाएंगे, जो पूरे गंगा तट को रोशन कर देंगे.
राष्ट्रभक्ति की थीम पर घाटों की विशेष सजावट
इस साल देव दीपावली (Dev Deepawali) पर तिरंगे की थीम पर विशेष सजावट की जाएगी, जो राष्ट्रभक्ति और गौरव का प्रतीक होगी. घाटों को 11 कुंतल देशी-विदेशी फूलों से सजाया जाएगा, जिन्हें विशेष रूप से कोलकाता से मंगवाया गया है. इन फूलों की सजावट का कार्य 15 नवंबर की दोपहर तक पूरा कर लिया जाएगा। लाइट्स और फूलों से सजावट में तिरंगे के रंगों का इस्तेमाल किया जाएगा, जो पूरे दुनिया को भारत की एकता और गौरव का संदेश देगा. इसके अलावा, 39 जीटीसी के जवान अपने बैंड की धुन पर कारगिल के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे.
देव दीपावली का धार्मिक महत्व
देव दीपावली (Dev Deepawali) का दिन धार्मिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध करके देवताओं को भय से मुक्त किया था. इसी कारण देव दीपावली को ‘त्रिपुरारी पूर्णिमा’ भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन दीप जलाकर और गंगा स्नान करके विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है. कहते हैं कि देव दीपावली के दिन भगवान शिव स्वयं धरती पर आते हैं, और देवता गंगा के तट पर दीपक जलाकर भगवान शिव का स्वागत करते हैं. इस दिन गंगा के घाटों पर आरती का विशेष महत्व होता है.
देवउठनी एकादशी से देव दीपावली तक: एक और पौराणिक मान्यता
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) के दिन देवता जागृत होते हैं और कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा और यमुना के तटों पर स्नान करके दीपावली मनाते हैं. इस प्रकार, कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है, जिसे देवताओं का दिवाली पर्व कहा जाता है. देव दीपावली (Dev Deepawali) का यह आयोजन बनारस की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाता है, जहां धर्म और राष्ट्रभक्ति का अनुपम संगम देखने को मिलता है.