Prime Chaupal: लखनऊ जनपद के गोसाईगंज विकास खंड के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत धौरहरा की स्थिति देखकर यकीन करना मुश्किल है कि यह राजधानी से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गांव की टूटी हुई सड़कों, बजबजाती नालियों और बुनियादी सुविधाओं की घोर कमी ने शासन-प्रशासन के तमाम दावों को कटघरे में खड़ा कर दिया है। प्राइम टीवी के विशेष कार्यक्रम ‘प्राइम चौपाल’ में हमारी टीम रोजाना ग्रामीण भारत की समस्याओं को उजागर कर शासन और प्रशासन को सतर्क कर रही है जिससे गांवों को भी विकास की मुख्यधारा में लाया जा सके। इसी कड़ी में हमारी टीम पहुंची लखनऊ जनपद के गोसाईगंज विकास खंड के ग्राम पंचायत धौरहरा।
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सुशासन के दावों की पोल खोलती जमीनी हकीकत

गांव की हालत देखकर आंखें खुली की खुली रह जाती हैं। टूटी सड़कें, गंदगी से भरी नालियां, और खुले में शौच करने को मजबूर लोग – ये सब उस प्रदेश की तस्वीर हैं जिसे सरकार सुशासन का मॉडल बताती है। ग्रामीण बताते हैं कि गांव में वर्षों से कोई विकास कार्य नहीं हुआ। सड़क, नाली, शौचालय सब कुछ अधूरा या ध्वस्त हालत में है।
केंद्र और राज्य सरकार की योजनाएं कागजों तक सीमित

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना ‘स्वच्छ भारत मिशन’ यहां मजाक बनकर रह गई है। गांव में गंदगी का अंबार है, नालियों की सफाई महीनों से नहीं हुई। लोग बताते हैं कि न तो शौचालय बने हैं, और जो बने भी थे, वो अब उपयोग लायक नहीं बचे।
विकलांगों को नहीं मिल रही पेंशन
गांव के विकलांग और बुजुर्ग नागरिक पेंशन योजनाओं से वंचित हैं। महीनों से उन्हें कोई भुगतान नहीं मिला है। सवाल उठता है कि इन योजनाओं के लिए जो सरकारी धन आता है, उसका आखिर हो क्या रहा है?
ग्रामीणों के टूटे अरमान

गांववालों का कहना है कि उन्हें उम्मीद थी कि मोदी-योगी सरकार उन्हें विकास की सौगात देगी, लेकिन यहां तो भ्रष्टाचार ने हर सपना चकनाचूर कर दिया। न अधिकारी जवाब देते हैं, न कोई जांच होती है। गांव खुद को पूरी तरह से अविकसित और उपेक्षित महसूस करता है।
मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर ग्रामीण

जब मुख्यमंत्री प्रदेश को ट्रिलियन इकोनॉमी बनाने की बात करते हैं, तो धौरहरा जैसे गांव सवाल उठाते हैं – क्या हम इस प्रदेश का हिस्सा नहीं हैं? बुनियादी सुविधाएं, स्वच्छता, पेंशन, सड़क और पानी जैसी मूल जरूरतें तक यहां पूरी नहीं हो रहीं। आखिर कौन ज़िम्मेदार है?