Supreme Court News: भारत के सर्वोच्च न्यायलय ने उस मामले पर सुनवाई की मंजूरी जताई है जिसमें दाढ़ी रखने के कारण सिपाही जहीरुद्दीन शम्सुद्दीन बेदादे को सेवा से निलंबित कर दिया गया था। बता दें की यह मामला महाराष्ट्र राज्य के रिज़र्व पुलिस बल के सिपाही जहीरुद्दीन शम्सुद्दीन बेदादे का है, इस मुस्लिम पुलिसकर्मी को दाढ़ी रखने के कारण 12 अक्टूबर, 2012 को निलंबित कर दिया गया था। इसके खिलाफ उन्होने बॉम्बे उच्चन्यायलय में अपील दाखिल की थी। हालाँकि बॉम्बे उच्चन्यायलय ने दाढ़ी रखने के चलते निलंबित करने के फैसले को सही करार देते हुए याचिका को खारिज कर दिया था।
बॉम्बे उच्चन्यायलय के याचिका खारिज करने के बाद जहीरुद्दीन शम्सुद्दीन बेदादे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में इस मुद्दे पर आज यानी 13 अगस्त को फिर से सुनवाई होगी कि मुस्लिम धर्म के पुलिसकर्मी को दाढ़ी रखने की वजह से निलंबित करना कानून का उल्लंघन है या नहीं।
क्या कहता है देश का संविधान
भारत के नागरिकों को संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म का पालन करने का मौलिक अधिकार मिला हुआ है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की समीक्षा करते हुए तय करेगा कि ऐसे मामलों में कौन से नियम लागू होते हैं, क्या ऐसे मामले में पुलिसकर्मी को निलंबित करना अधिकारों का हनन है। चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला ने इस मामले पर विचार करने की सहमति जताई है। चीफ जस्टिस को यह बताया गया है कि इस मामले का लोक अदालत में अभी तक कोई समाधान नहीं हुआ हुआ है। उन्होंने आगे कहा कि – “यह संविधान का एक महत्वपूर्ण मुद्दा है… हम इस मामले को ‘नॉन मिसलेनियस डे’ पर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करेंगे।’’
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क्या कहता है यूपी पुलिस का मैनुअल
उत्तर प्रदेश पुलिस मैनुअल और नियमों के मुताबिक, सिख समुदाय को छोड़कर किसी को भी सीनियर अधिकारियों की अनुमति के बिना दाढ़ी रखने की इजाजत नहीं है। पुलिस विभाग के कर्मचारी बिना किसी की अनुमति के मूंछें तो रख सकते हैं लेकिन दाढ़ी नहीं रख सकते हैं। केवल सिख समुदाय बिना इजाजत दाढ़ी रख सकता है। वहीं, अगर सिख धर्म के अलावा किसी दूसरे धर्म को मानने वाला ऐसा करता है, तो उसे महकमें से इजाजत लेनी होती है। ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश से भी होचुका है।अक्टूबर 2020 में सूबे के बागपत जिले में तैनात एक सब-इंस्पेक्टर को लंबी दाढ़ी रखने की वजह से ही सस्पेंड कर दिया गया था।
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क्या होता है ‘नॉन मिसलेनियस डे’
‘मिसलेनियस डे’ का मतलब है कि उन दिनों में अदालत द्वारा सिर्फ नई याचिकाओं पर सुनवाई की जाएगी और नियमित सुनवाई वाले मामलों पर सुनवाई नहीं की जाती है। उच्चतम न्यायलय में यह दिन सोमवार और शुक्रवार को होता है और वहीं सर्वोत्तम न्यायलय में ‘मिसलेनियस डे’ मंगलवार, बुधवार और बृहस्पतिवार को होता है।
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