Prime Chaupal:तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है मगर ये आंकड़े झूठे हैं,ये दावा किताबी है अदम गोंडवी ने ये पंक्तियां शायद देश में गांवों की जर्जर हालत को देखकर ही लिखी होगी।दरअसल गांवों की हालत सरकारी दस्तावेजों में चकाचक नजर आती है लेकिन जमीनी स्तर पर गांव पहुंचने पर पता चलता है कि,आजादी के इतने सालों बाद भी गांव वास्तविक विकास की राह देख रहे हैं।

ग्राम पंचायत लोनहा में ग्रामीण परेशान
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सरोजनीनगर विकास खंड के ग्राम पंचायत लोनहा की एक-एक तस्वीर चीख-चीखकर यह कहती दिखाई दे रही हैं कि,जिन गांवों को विकसित भारत का आधार माना जा रहा है वहां आज भी मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है।आजादी के इतने सालों बाद भी गांवों की ना तो तकदीर बदली और ना ही तस्वीर ग्राम पंचायत लोनहा में एक ही नल से तमाम घरों के लोग पानी पीने को मजबूर हैं और उस पर भी आफत ये कि नल का पानी पीने लायक नहीं है।
नालियों में जगह-जगह कूड़े की भरमार
स्वच्छता के नाम पर सड़क किनारे नालियों में भारी-भरकम कूड़ा-कचरा भरा हुआ है लेकिन प्रधान लोगों को कहते हैं कि,अपने-अपने घर के सामने खुद साफ कर लो।माना कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को आत्मनिर्भर होने की सलाह दी है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि,जिनको जिस काम की जिम्मेदारी मिली है वो उससे मुकर जाएं।ये हालात हैं विकासखंड सरोजनीनगर के ग्राम चायत लोनहा के जहां लोगों के पास ग्राम प्रधान के लिए शिकायतों की भरमार है।
प्रधान के गैर जिम्मेदाराना व्यवहार से ग्रामीण हैरान-परेशान
बदलते हुए गांव पर तस्वीर आज भी वही योजनाओं का लाभ पाने को लिए तरसते लोग वही विकास की राह देख कर थक चुकी ग्रामीणों की आंखें और वही उधड़ी अस्मिता के साथ सहमे हुए गांवों के रास्ते।एक तरफ सबका साथ सबका विकास बोलकर जनता के लिए तमाम योजनाएं लाने वाली सरकार और दूसरी तरफ योजनाओं को कागजों में पूरा दिखाकर पैसा डकार जाने वाले बिचौलिए यह कहानी है हर गांव की।कूड़ेदान के अभाव में गांव वालों ने तालाब को ही कूड़ाघर बना लिया है गांव में बने स्कूल को लेकर भी लोगों के पास शिकायतें ही शिकायतें हैं।सरकार का खजाना खुल रहा है जनता के लिए पैसा निकल रहा है लेकिन बीच में वो पैसा कहां विलीन हो जा रहा है इसका कोई पता ठिकाना नहीं न प्रधान गांव में आते हैं न लोग उन्हें सही से जानते हैं।

कागजों में पूरी होती योजनाएं हकीकत इसके विपरीत
सचिव कभी-कभी आते हैं और खानापूर्ति करके चले जाते हैं लोगों का कहना है उन्हें गांव में किसी तरह का विकास नहीं दिख रहा है।फिलहाल तो गांव की सूरत यही है वो अभी भी अच्छे दिनों का इंतजार कर रहे हैं।योजनाएं केवल कागजों में पूरी हो रही हैं,दीवारों पर लिखी नजर आ रही हैं लेकिन लोगों के लिए उनका कोई भी उपयोग नहीं है जमीनी स्तर पर लोग अभी भी विकास की आस लिए सरकारी कार्यालयों में चक्कर लगाते इंतजार में खड़े हैं।