प्रयागराज संवाददाता : आशीष भट्ट
प्रयागराज : सावन का महीना भोले नाथ की आराधना के लिए जाना जाता है और सावन के सोमवार का धार्मिक दृष्टि से खास महत्व है, लेकिन इस महीने प्रत्येक सोमवार को यहां होने वाली ‘गहरेबाजी’ का भी अपना एक खास आकर्षण है.प्रयागराज में हर साल सावन के सोमवार की शाम इक्को और घोड़ो की टापों की टक-टक से गूजने लगती है . इक्का दौड़ की इस लोक परम्परा ” गहरेबाजी “को देखने के लिए प्रदेश के कई जिलों से लोग शहर की सड़कों में जमा हो जाते हैं .
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प्रयागराज में आयोजित की गयी इक्को की रेस
सावन के महीने में प्रयागराज की सड़कों में इक्को की रेस की अनोखी परमपरा है .जो देश के किसी कोने में देखने को नहीं मिलती .शहर की भीड़ भरी सड़कों में सावन के हर सोमवार को शाम के समय तेज गति से दौड़ते इक्को और घोड़ो की टाप की टिक टिक ही सुनाई पड़ती है .इक्के और घोड़ो की दौड़ की इस अनोखी परम्परा को नाम दिया गया है – गहरेबाजी जो शहर की सबसे अलग और सबसे पुरानी परम्परा है. शहर के नए यमुना पुल से पुराने यमुना पुल के बीच इस बार इस रेस का आयोजन किया गया. इक्कों की रफ्तार दिखी और घोड़ों की नज़ाकत भरी चाल भी .
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कहते है सावन भगवान शंकर की पूजा आराधना का महीना है जिसमे शिव के प्रतीक शक्ति की पूजा की जाती है .घोड़े भी शक्ति का प्रतीक हैं जिनका एक लोक स्वरूप है सावन के महीने में आयोजित की जाने वाली गहरेबाजी की लोक परम्परा जिसे देखने के लिए सूबे के कई जिलो से शौक़ीन यहाँ की सड़कों में जमा होते हैं .
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रेस के लिए दूर राज्यों लाये जाते है सर्वोत्तम नस्ल के घोड़े
कटरा निवासी बदरे आलम बताते हैं कि सिंधी नस्ल के घोड़े सर्वोत्तम होते हैं. यह राजस्थान के बालोतरा जिले से लाए जाते हैं. इस नस्ल के घोड़े मूलरूप से सिंध प्रांत में मिलते रहे हैं जो अब पाकिस्तान में है. बताया कि बालोतरा में रेत अधिक होती है.
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घोड़े रेत पर चलते हैं तो कदम-कदम गिनकर चलते हैं. यानी वह सरपट भाग नहीं पाते. वही घोड़े जब गहरेबाजी के लिए प्रशिक्षित किए जाते हैं तो कदमबाजी के लिए उन्हें ज्यादा सिखाना नहीं पड़ता.साथ ही ये भी कहते है कि संगम नगरी में गहरेबाजी तीर्थपुरोहितों का पुराना शौक रही है. गहरेबाजी आज के दौर में काफी मुश्किल शौक हो गया है क्योंकि आज के समय घोड़ो का रख रखाव करने वाले लोग ही नहीं मिलते .बावजूद इसके पुश्तो के इस शौक से गहरेबाज अपने को अलग नहीं कर पाए हैं .