Supreme Court का बड़ा फैसला, विचाराधीन कैदियों की रिहाई के लिए जारी किया फरमान…

Aanchal Singh
By Aanchal Singh

Fast Track Release of Undertrials: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 479 को पहले के समय से लागू करने का आदेश दिया है. इस फैसले के तहत जेल में बंद उन विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जाना अनिवार्य हो गया है, जिन्होंने पहली बार अपराध किया है और अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम सजा का एक तिहाई हिस्सा काट लिया है. बीएनएसएस, भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता इस वर्ष लागू हुई हैं. इस मामले में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि यह प्रावधान उन सभी विचाराधीन कैदियों पर लागू होगा, चाहे उनकी गिरफ्तारी की तारीख कुछ भी हो.

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जेल अधीक्षकों को रिहाई के आदेश

बताते चले कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की जस्टिस हिमा कोहली और संदीप मेहता की पीठ ने जेल अधीक्षकों को निर्देश दिया कि वे उन पहली बार अपराध करने वाले विचाराधीन कैदियों की रिहाई के लिए कदम उठाएं, जिन्होंने अपनी सजा का एक तिहाई हिस्सा जेल में काट लिया है. अदालत ने कहा कि ऐसे कैदियों की रिहाई के लिए आवेदन की प्रक्रिया दो महीने के भीतर पूरी की जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य सरकार के संबंधित विभाग इन मामलों में रिपोर्ट तैयार कर सुप्रीम कोर्ट में पेश करें. जस्टिस कोहली ने यह भी कहा कि ऐसे विचाराधीन कैदियों को यह दिवाली अपने परिवार के साथ बिताने का अवसर मिलना चाहिए.

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एएसजी भाटी का अतिरिक्त अनुरोध

एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से यह भी अनुरोध किया कि वे उन विचाराधीन कैदियों की रिहाई के लिए कदम उठाने के आदेश दें, जिन्होंने पहली बार अपराध नहीं किया है, लेकिन उन्होंने अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम सजा का आधा हिस्सा जेल में काट लिया है. हालांकि, यह लाभ केवल उन्हीं कैदियों को मिलेगा जिन पर जघन्य अपराध करने का आरोप नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों श्रेणियों के विचाराधीन कैदियों की रिहाई के लिए राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासनों को डेटा जुटाने का आदेश दिया है.

रिपोर्टिंग और अगली सुनवाई

आपको बता दे कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की पीठ ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासनों से कहा कि वे इन विचाराधीन कैदियों की रिहाई का डेटा जुटाएं और दो महीने बाद सुप्रीम कोर्ट को स्टेटस रिपोर्ट पेश करें. मामले की अगली सुनवाई अक्टूबर में तय की गई है, लेकिन तब तक जस्टिस हिमा कोहली सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हो चुकी होंगी.

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का यह फैसला उन विचाराधीन कैदियों के लिए राहत लेकर आया है, जो लंबे समय से जेल में बंद हैं और जिन्होंने अपनी सजा का बड़ा हिस्सा काट लिया है. यह फैसला न्याय और मानवाधिकारों के प्रति सुप्रीम कोर्ट की प्रतिबद्धता को दर्शाता है और यह सुनिश्चित करता है कि कैदी भी अपने अधिकारों से वंचित न रहें.

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