Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार यानी 18 अक्टूबर 2024 को देश में बढ़ते बाल विवाह (Child marriage) के मामलों पर एक अहम फैसला सुनाया है। यह फैसला 2017 में दायर की गई सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलेंटरी एक्शन द्वारा याचिका पर सुनाया गया। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud), जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामले पर विचार करने के बाद बाल विवाह निषेध कानून (Child marriage prohibition law) के क्रियान्वयन को लेकर कई दिशानिर्देश जारी किए।
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पर्सनल लॉ से प्रभावित नहीं होगा
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि बाल विवाह निषेध कानून (2006) को पर्सनल लॉ (Personal law) के आधार पर कमजोर नहीं किया जा सकता। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इस तरह की शादियां नाबालिगों के जीवन साथी चुनने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती हैं और यह एक गंभीर मुद्दा है। कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह रोकने के लिए बनाए गए कानून को किसी धार्मिक या निजी कानून से प्रभावित होने की अनुमति नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने अधिकारियों से कहा कि वे बाल विवाह की रोकथाम और नाबालिगों की सुरक्षा पर गंभीरता से ध्यान दें।
बाल विवाह कानून में सुधार की जरूरत

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बाल विवाह निषेध कानून में कुछ खामियां हैं, जिनमें सुधार की आवश्यकता है। चीफ जस्टिस ने कहा कि 2006 में लागू किया गया बाल विवाह निषेध अधिनियम, 1929 के पुराने कानून की जगह लेकर बाल विवाह को रोकने के लिए लाया गया था। लेकिन इसके बावजूद, देश में बाल विवाह के मामलों में वृद्धि चिंता का विषय है। कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह न केवल बच्चों के अधिकारों का हनन है, बल्कि उनके भविष्य और समाज के विकास के लिए भी घातक है।
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बाल विवाह रोकथाम के लिए जारी किए गए दिशानिर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह की रोकथाम के लिए कुछ अहम दिशानिर्देश जारी किए। कोर्ट ने सभी संबंधित विभागों के लिए विशेष ट्रेनिंग की जरूरत पर जोर दिया, ताकि अधिकारी बाल विवाह को रोकने के लिए बेहतर तरीके से काम कर सकें। कोर्ट ने कहा कि हर समुदाय के लिए अलग रणनीतियां अपनाई जानी चाहिए, क्योंकि एक ही तरीका सभी समुदायों के लिए कारगर साबित नहीं हो सकता।
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दंडात्मक उपायों से नहीं मिलेगी सफलता

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि केवल दंडात्मक उपायों से बाल विवाह रोकने में सफलता नहीं मिलेगी। समाज की स्थिति को समझकर और लोगों को जागरूक करके ही इस समस्या का समाधान हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि बाल विवाह करने वालों को अंतिम उपाय के रूप में ही दंडित किया जाना चाहिए। समाज में जागरूकता फैलाने और कानून का पालन सुनिश्चित करने पर विशेष ध्यान देना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह निषेध कानून को पर्सनल लॉ से ऊपर रखने का मुद्दा फिलहाल संसदीय समिति के पास लंबित है, इसलिए इस पर कोर्ट कोई टिप्पणी नहीं करेगा। हालांकि, कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि कम उम्र में शादी बच्चों के जीवन साथी चुनने के अधिकार का उल्लंघन करती है और यह एक गंभीर चिंता का विषय है।
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नाबालिगों की सुरक्षा और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणियों में नाबालिगों की सुरक्षा और उनके शिक्षा के अधिकार पर भी ध्यान केंद्रित करने की जरूरत बताई। कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह न केवल बच्चों के शिक्षा के अधिकार का हनन है, बल्कि इससे उनका स्वास्थ्य और मानसिक विकास भी प्रभावित होता है। कोर्ट ने सरकार और अधिकारियों से कहा कि वे इस दिशा में प्रभावी कदम उठाएं और नाबालिगों की सुरक्षा को प्राथमिकता दें।
बाल विवाह के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला देश में बाल विवाह की बढ़ती समस्या पर कड़ा संदेश देता है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि बाल विवाह निषेध कानून किसी भी पर्सनल लॉ के प्रभाव में नहीं आ सकता और इस कानून का पालन सख्ती से होना चाहिए। इसके साथ ही, कोर्ट ने बाल विवाह रोकने के लिए सामाजिक जागरूकता, प्रशिक्षण और सुधार की जरूरत पर भी जोर दिया। अब देखना होगा कि सरकार और संबंधित एजेंसियां इस दिशा में क्या कदम उठाती हैं और बाल विवाह की कुप्रथा को जड़ से खत्म करने में कितनी सफल होती हैं।