सरकार की UPS पर सपा नेता डॉ. एसटी हसन की तीखी प्रतिक्रिया, नई पेंशन स्कीम को ‘मरी हुई चुहिया..’ करार

Akanksha Dikshit
By Akanksha Dikshit
ST Hasan

ST Hasan on Unified Pension Scheme: समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद डॉ. एसटी हसन (ST Hasan) ने केंद्र सरकार की नई यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने इसे ‘मरी हुई चुहिया को गोबर सुंघाने वाली’ कहावत की तरह बताते हुए आरोप लगाया कि इस योजना से कर्मचारियों का भला नहीं होगा। हसन ने सरकार से पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल करने की मांग की है। उनका कहना है कि जो कर्मचारी जीवन भर सरकारी सेवा करता है, उसे बुढ़ापे में असहाय छोड़ देना न केवल अन्याय है, बल्कि मानवता के खिलाफ भी है।

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महंगाई के बीच बुढ़ापे की चिंता

डॉ. हसन ने महंगाई और जीवन की भागदौड़ को देखते हुए नई पेंशन स्कीम की आलोचना की। उन्होंने कहा कि सरकार का यह कदम कर्मचारियों को पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर सकता। उनका तर्क है कि सरकार को पुरानी पेंशन योजना को ही लागू करना चाहिए, जिससे कर्मचारियों को कुछ राहत मिल सके। हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि सरकार ने एक कदम आगे बढ़ाया है, लेकिन यह समाधान नहीं है और मजबूरी में कर्मचारियों को इसे अपनाना पड़ रहा है।

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उपचुनाव में सपा की रणनीति और चुनौतियाँ

उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के संदर्भ में डॉ. हसन ने समाजवादी पार्टी की पूरी ताकत से चुनाव लड़ने की बात की है। उनका कहना है कि पार्टी अधिकांश सीटों पर विजय प्राप्त करेगी, लेकिन प्रशासनिक तैयारियों में खामियां और सरकार द्वारा मुस्लिम बीएलओ को हटाने और ग्राम प्रधानों को धमकाने जैसी घटनाओं की निंदा की है। हसन ने कहा कि ये सब प्रयास नाकाम साबित होंगे और जनता वोट के जरिए जवाब देगी। पूर्व सांसद ने कहा कि आगामी चुनाव में आरक्षण एक प्रमुख मुद्दा रहेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार आरक्षण को लेकर असंतोषजनक रवैया अपनाती है और नहीं चाहती कि गरीब, दलित और मुसलमान वर्ग तरक्की करें। उनका कहना है कि सरकार की नजर में ये वर्ग अपनी जगह पर ही रहें और तरक्की न करें।

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बुलडोजर कार्रवाई की आलोचना

डॉ. एसटी हसन ने उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश तक अपराधियों के खिलाफ चल रही बुलडोजर कार्रवाई की कड़ी आलोचना की। उन्होंने इसे बेहद खतरनाक बताते हुए कहा कि ऐसा कुछ दुनिया में कहीं नहीं होता है। हसन ने कहा कि सरकारें अदालती व्यवस्था का उल्लंघन कर रही हैं और अदालतों के अधिकारों में अतिक्रमण कर रही हैं। उनका तर्क है कि अदालतों को यह तय करने का अधिकार है कि किसे सजा दी जाए और किसके मकान को ध्वस्त किया जाए, और इस प्रकार की कार्रवाई संविधान और न्यायपालिका के प्रति अवमानना है।

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