Somvati Amavasya 2025 : हिंदू धर्म में पूर्णिमा और अमावस्या को बेहद ही खास माना गया है जो कि हर माह में एक बार पड़ती है पंचांग के अनुसार अभी ज्येष्ठ का महीना चल रहा है और इस माह पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या या ज्येष्ठ अमावस्या के नाम से जाना जा रहा है।
इस दिन स्नान दान, पूजा पाठ और तप जप का विधान होता है। मान्यता है कि अमावस्या तिथि पर स्नान दान व पूजा पाठ करने से महापुण्य की प्राप्ति होती है और सभी तरह के पापों का नाश हो जाता है।
अमावस्या तिथि पूर्वजों को समर्पित होती है ऐसे में इस दिन उनका श्राद्ध तर्पण और पिंडदान करना भी लाभकारी माना जाता है ऐसा करने से पितर प्रसन्न होकर कृपा करते हैं और कष्टों को दूर कर सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं, अमावस्या तिथि पर वट सावित्री व्रत भी किया जाएगा।
जो कि शादीशुदा महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। तो हम आपको अपने इस लेख द्वारा साल की पहली सोमवती अमावस्या की तारीख, मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में जानकारी प्रदान कर रहे हैं।

सोमवती अमावस्या की तारीख
हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल की पहली सोमवती अमावस्या 26 मई दिन सोमवार को दोपहर 12 बजकर 12 मिनट से आरंभ हो रही है और इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 27 मई दिन मंगलवार को सुबह 8 बजकर 32 मिनट पर हो जाएगा। पंचांग की गणना बता रही है कि इस साल सोमवती अमावस्या का संयोग पूरे साल में दो बार ही बन रहा है। इस बार 26 मई के बाद 20 अक्टूबर को शाम के समय सोमवार के दिन अमावस्या तिथि का शुभ संयोग बन रहा है।
स्नान दान का शुभ मुहूर्त
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितरों का समय दोपहर यानी मध्याह्न में होता है। ऐसे में सोमवती अमावस्या पर पितरों को प्रसन्न करने, उनका आशीर्वाद प्राप्त करने और पितृदोष से मुक्ति के लिए उपाय व पूजा 26 मई दिन सोमवार के दिन मध्याह्न में की जा सकती है। अमावस्या का समय 27 मई दिन मंगलवार की सुबह 8 बजकर 32 मिनट तक है। ऐसे में स्नान दान का कार्य 27 मई को किया जाएगा।
विधि विधान से करें पूजा
अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती के मंदिर जाकर विधि विधान से उनकी पूजा करें। साथ ही शिवलिंग और पार्वती माता की प्रतिमा पर 7 या 11 बार विषम संख्या में कच्चा सूत लपेटें। ऐसा करने से शादीशुदा जीवन खुशहाल बना रहता है। शिव पार्वती पूजा के साथ साथ इस दिन पुरुषों को पीपल के पेड़ की कम से कम 108 बार परिक्रमा करनी चाहिए।

अमावस्या पर वट सावित्री व्रत होने के कारण महिलाएं इस दिन वट वृक्ष की 108 बार कच्चा सूत लपेटते हुए परिक्रमा करें। इसके बाद लोटे में जल, गुड़ और दूध मिलाकर इसे वट वृक्ष पर अर्पित करें। काले चने को भिगोकर उन्हें प्रसाद के रूप में अर्पित करें। माना जाता है कि इस दिन पूजा पाठ और व्रत करने से शिव पार्वती की असीम कृपा बरसती है और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
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Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां पौराणिक कथाओं,धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। खबर में दी जानकारी पर विश्वास व्यक्ति की अपनी सूझ-बूझ और विवेक पर निर्भर करता है।प्राइम टीवी इंडिया इस पर दावा नहीं करता है ना ही किसी बात पर सत्यता का प्रमाण देता है।